तू भी माटी मैं भी माटी
माटी सकल जहान
माटी से माटी कहे
किसका करूं गुमान
किसका करूं गुमान यहाँ
सब माटी माटी दिखता है
माटी को माटी बेचता
माटी से माटी बिकता है
माटी से माटी बिकता है
तो माटी का मोल कौन करे
माटी को सोना करदे तब
माटी से माटी जनम तरे
-एमन दास
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जिंदगी की भट्ठी में
डबकते आंसू और चुरते मन
जब पिघलकर गीरती है
करेजे पर
सांसों का हर अणु थम जाता है
और मिट जाती देह की पीरा
यही पूर्णता है जीवन की
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प्रथम वन्दो सदगुरू चरण
जिन अगम की गम लखाईयाँ ।
अकह मूर्ती अमीय सुर्ती
तहा जाई समाईया ।
गुरू ज्ञान दिप प्रकाश करि
पट खोल दरस दिखाईयाँ ।
जिही कारणे सिध्दा पचे
सो गुरूकृपा से पाईयाँ ।
सप्रेम साहेब बंदगी साहेब
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कोन ल बिसरा के जाहूं अउ कोन सुरता म राखही,
छुटत साथ परान सबो अपने स्वारथ ल ताकही।
महल अटारी का जोरेव कतका जोरेव धन दोगानी,
जिनगी भर के अतके हिसाब भइगे अतके बानी।
टूटहा खटिया म लाद देही तह चेंदरी चढ़ाही,
जियत भर के ताय तहले कोन आही कोन जाही।
शेर तराजू मोल मया के कतका भाव लगाबे,
सर हर गे माल मलोवन जुच्छा राख धराबे।
उहिच सुरूज उहिच चंदा रात दिन सब एके ये,
उहिच बराती उहिच मेला उहिच हमर सब देखे ये।
आंखी वाले अंधरा काबर कान ल तोपे हस,
चरखी के चक्कर म तन ल आगी म झोंके हस।
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जो साथ नहीं जाएगा उसका, गुमान क्या करूं
राख मिट्टी होना है उसका, अभिमान क्या करूं
करना ही है कुछ तो, पग पग पे हारता चलुं
राह में मिले जो भी, उसका दिल जीतता चलुं-
कतको रहि ले तैं उपास रे
कतको करले पूजा पाठ
करम गति टारे नै टरय
कछू उपाय नै करय काट-
राजनीति रांड़ी रक्खी बर
कतको झिन इहां मरत खपत हे
नै पुरै पैसा नरक मा
तबले बैरी बिकट तपत हे-
पोखर की तरह ठहर कर सड़ना नहीं आता
अपने ही धारा लहरों से लड़ना नहीं आता
अवसर को खड़े खड़े ही नाप लेना है मुझे
किसी को धकेल कर आगे बड़ना नहीं आता-
मेरी रूह तो अभी भीगा ही नहीं है
ओह ये बरसात पहले सी क्यूं नहीं है-