गुल समझ हम कांटो पे सोए है
हस्ते हुए होठों से गमों को छुपाए रोए है।
जिसे मान चुके सब कुछ अपना हम
अभी पूरी तरह कहा उसी के होए है।-
ये सारी दुनिया पापों से भरी पड़ी है
यूं ही नहीं..........
गंगा किनारे इतनी भीड़ खड़ी है।-
निकले थे खोज मे सुकून के हम ।
राह मे हमने तुमको पा लिया
तलाश में लम्हा-ऐ-इत्मीनान ।
पाकर तुम्हे मानो सारा......
जहान पा लिया.........
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उसके दूर जाने का ख़्याल भी मुझे
अक्सर............
........बीमार रखता है।-
दर्द.........
सबके दिल में हो रहा होता है
बस फ़र्क तो इतना है।
कोई लिख रहा होता है....
....कोई पढ़ रहा होता है...
तो कोई रो रहा होता है।-
चांदनी रात हो , सामने केदारनाथ हो........
मैं तुम्हे निहारू तो, तुम मे शिव का आभास हो।-
कभी तस्वीरों से निकल कर
सामने भी आया करो
यूं बस ख्वाबों मे आकर ऐसे
तड़पाया भी ना करो
मिलने को तुमसे तड़पता है ये..
मन यू बस यादों मे आकर
वक्त ज़ाया ना करो
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मैं तुम्हें चांद कह दू ,
ये तो मुमकिन है।
मगर लोग तुम्हें, रातभर देखे
ये मुझे गवारा नहीं।-