बादल में छुपा ,चाँद सा है वो
मैं जो बेसब्र तो, इत्मीनान सा है वो
प्रेम सागर में उमड़ा, सैलाब सा है वो
राधा मैं जो बनूँ ,तो श्याम सा है वो
दर्द भरे दिन में ,सुकून की शाम सा है वो
बेख़ौफ़ परिंदा जो मैं,खुले आसमान सा है वो
साँसों में घुला ,इश्क़ इत्र सा है वो
मासूम दिल का मेरे ,इकलौता अरमान सा है वो
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