Ekta Mishra   (एkतA मिshra)
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Joined 22 April 2019


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10 JUL 2021 AT 0:41

तू बन जा कृष्ण
तो मैं राधा बन जाऊँ,
की जब पुकारा तुझे जाये
तो मैं भी पुकारी जाऊँ |

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10 JUL 2021 AT 0:35

मोहब्बत मिटा देती हैं
दुनियाँ भर के रंज-ओ-ग़म
सुना हमसफर निभा दे तो
काँटे भी नहीं चुभते

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10 JUL 2021 AT 0:32

इश्क़ अगर पाक हो तो
खुदा भी सर झुकता हैं,
जहाँ मतलब की बात हो
वहाँ खुदा भी रूठ जाता हैं |

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2 JUL 2021 AT 0:01

मैं स्त्री हूँ

मैं स्त्री हूँ
सहती हूँ तभी गर्व हैं तुम्हें अपने पुरुष होने पे

झुकाती हूँ
तभी तो ऊंचा उठता हैं...
तुम्हारे अहंकार का आकाश

मैं मर्यादित हूँ
तभी तुम लांघ लेते हो अपनी सारी सीमाएं

मैं नम्रता को धारण करती हूँ
तो पलता हैं तुम्हारा पौरुष

मैं समर्पित हूँ इसलिए
करते हो तुम तिरस्कार

त्याग देती हूँ अपना स्वाभिमान
ताकि आहत ना हो तुम्हारा अभिमान

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17 JUN 2021 AT 15:53

कुछ झलकी हैं यादें, कुछ धुंधली सी हैं -

बेजान वो ग़ुलाब कुछ यादें आज भी संजोए हुए हैं
वो पहली मुलाक़ात कि कहानी पिरोये हुए हैं,

ख़त में आज भी तेरी खुशबू बरकरार हैं
वो निशां आँसू का कोने में दो-चार हैं,

सूखे पत्ते पे दो नाम जड़े हुए हैं आज भी
साथ रहने के वादे से जुड़े थे जो कभी,

वो रैपर चॉक्लेट का पन्नों में आज भी रखा हैं
उसपर बने चित्र ने, यादों को ताज़ा कर रखा हैं,

ढाई अक्षर नैपकिन पे आज भी स्पष्ट हैं
पर विश्वास कि वो जड़ हो चुकी अब नष्ट हैं,

वो तेरा दिया झुमका, एक गुम हैं कहीं
नम मेरी आंखें ढूढ़े तुझे उस वक़्त में वहीँ,

चूड़ी के वो टुकड़े चुभ गए हाथों में मेरे
यादों के जाल में फंस के रह गई मैं तेरे |

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27 MAY 2021 AT 0:49

गुज़र रही हैं ज़िन्दगी,
कि अब मलाल ही क्या हैं
जो कभी था फलक पे
आज क़िताब-ए-ज़ेहन में दफ़न हैं कहीं....

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27 MAY 2021 AT 0:10

जिनका हर दुआ हैं क़बुल हमें
जो हैं हमारे आँखो का नूर
कहते हैं हम इन्हें माँ
हैं ये हमारे बगिया की एक प्यारी सी फूल

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27 MAY 2021 AT 0:04

कभी-कभी किसी पे इतना ऐतबार होता हैं
फिर अजनबी वो शख्स यार होता हैं,
कहते हैं खूबियों से सदा होती हैं मोहब्बत
पर तब क्या जब कोई खूबियों का भंडार होता हैं,


सुनो पल दो पल की रिश्तेदारी नहीं अपनी
ये दोस्ती तो उम्र भर का फ़साना हैं,
ये फूल है जिन्दगी की राहों को महकाने का
और ये वो फ़र्ज है जो उम्र भर निभाने हैं |

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25 APR 2021 AT 20:28

कोरोना, तन्हाई और एक आस

बैठ कर झरोंके से निहारु में हर एक गली
खौफ़नाक मंज़र दिख रहा...
मनहूसियत ने घर हैं बसाया,
वो एम्बुलेंस की आवाज़ ने हर नज़ब को रुलाया....

हर वक़्त अपनों को खोने का डर हैं ज़हन में जारी
एक वायरस ने दुनिया को किया धराशायी

आज इस मंज़र के गवाह हम हो बैठे
कल का क्या पता... मौत के सईया पे हम हैं लेते....

आज परिंदे गगन में झूम रहे मगन होकर....
और घर के चरदीवारी में उड़ान भरने को हम हैं आज़ाद,
सोच के देखो क्या इस दौर के हम खुद हैं ज़िम्मेदार

कहते फिरते हैं हम अक्सर की, डर के आगे जीत हैं
फिर आज क्यों मन ये भयभीत हैं...

चलो मुश्किल जहाँ होती हैं, हाल भी वही होती हैं...
धेर और संयम के पल ज़रा लम्बे होती हैं...
ज़िन्दगी की परीक्षा के इम्तिहाम को जीतेगे हम....
ठहरी ज़िन्दगी, मौत के सिलसिले को पीछे छोड़ेगे हम.

धन्यवाद 🙏




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23 APR 2021 AT 23:11

हम हैं, कल नहीं
लोग हैं, कल नहीं
चार दिन की ज़िन्दगी में....
दो दिन हैं या नहीं,

थाम के हाथ अपनों का.....
ज़ी लो हर लम्हें को ज़ी भर के
जिस नाम से ज़ी रहे हो....
वो आज हैं कल नहीं

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