Ekta Jha   (©EMJ)
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Born to fly
Joined 4 September 2019


Born to fly
Joined 4 September 2019
5 NOV 2022 AT 1:52

हजारों सितारें हैं आसमान में,
एक हम टूट ही गए तो क्या कम है,
सुनी हैं तुमने लाखों कहानियां,
मेरा किस्सा ना ही सुनो तो क्या गम है।
बहुत सी बात होती है बयां करने के खातिर अब भी,
दबी रह जाती हैं दिल में, यह दिल भी तो ख्वाबों का एक कफन है।

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8 SEP 2022 AT 1:04

पिंजड़े में कैद है ख्वाहिशें,
और ख्वाहिशों में कैद है जिंदगी...
ना ख्वाहिशें आजाद होती हैं,
ना ज़िंदगी मुकम्मल...

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7 FEB 2022 AT 6:12

झूठ,
फरेब,
दिखावा,
धोखा,
जाने वो चेहरे कितने दिखाता है,
रुको,
ठहरो,
इंतज़ार करो
वक्त सबको बेनकाब कर जाता है। — % &

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24 DEC 2021 AT 9:53

कुछ कहानियां अधूरी होती है,
कुछ रिश्ते अधूरे होते हैं,
कुछ अधूरापन पूरा होता है,
कुछ लोग...
पूरे होकर भी अधूरे हैं...

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22 NOV 2021 AT 17:26

सब जब सो जाते हैं,
तब बस जागती हैं,
ये रातें,
और इन रातों में मैं,
और मुझमें जगते हैं,
मेरे ख्याल,
ख्वाब,
ख्वाहिशें...
बिखरे,
टूटे,
अधूरे...

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31 JUL 2021 AT 23:53

ग्रीष्म की तपती दुपहरी में,
पावस की बौछारों में,
वसंत के खिलते फूलों में,
श्वेत शरद के मेघों में,
जाड़े की ठिठुरती रातों में,
शून्य में,संपूर्णता में,
द्वेष में, प्रेम में
उसके आगे भी, सबके बाद भी...
"सदैव संग"...

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23 MAY 2021 AT 23:23

*ख्याल*
मुद्दत से दिल में कोई नया ख्याल नहीं आया,
अरसों बीते, उन खतों का जवाब नहीं आया,
बीते सालों में कई परिंदे रहे इस दरख़्त पर,
जाने क्यों कोई परिंदा इस साल नहीं आया।।

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10 MAR 2021 AT 23:50

खुद को खुद तलाशना पड़ता है,
खुद को खुद तराशना पड़ता है।
लिखा कुछ नहीं होता किस्मत के पन्नो पर
नसीब अपना खुद को खुद सवारना पड़ता है।
मैं और मेरा ईश्वर बस मेरे दो ही विश्वासपात्र हैं,
ना मेरे सफलता का कोई हकदार है,
ना मेरी विफलता का कोई भागीदार।
सफर तय किया है अब तक मेरे कदमों ने चलकर,
ना लकीरों ने चलाया मुझे, ना फकीरों ने बनाया है।
मेरी सारी जमा पूंजी मेरा आत्मविश्वास है,
ना पत्थर संजोए मैंने, ना माला ही लटकाया है।
मेरा कर्म ही मेरी पूजा, लगन धर्म है मेरा,
मेहनत के बल पे खुद को खुद के काबिल बनाया है।

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28 JAN 2021 AT 15:10

जानती हूं, बहुत मजबूर हो,
इसलिए तो आज के दिन मुझसे दूर हो,
जानती हूं दिया तुमने मेरे नाम का जलाया होगा,
बस पास मुझे अपने नहीं पाया होगा,
जानती हूं खाना आप मेरे पसंद का बनवाओगे,
बस आवाज देकर मुझे बुला ना पाओगे,
जानती हूं समाज की कुछ प्रथा है,
तभी तो दिल का टुकड़ा आज दिल से जुदा है।

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15 NOV 2020 AT 23:51

भीतर की आग तो सांसों की तपिश में है,
चेहरा तो बस मुसकाया है,
जग क्या जाने, दो आंखों ने
जग से क्या कुछ नहीं छुपाया है।

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