Diary.....
Everyone, at some point, gets hurt by someone's words. It's normal for others' words to hurt, but not being able to express those feelings, not being able to share your pain with anyone, and bearing the burden alone is what makes it unbearable.
Words can pierce the heart, and it's natural to feel hurt. Yet, when we can't convey our emotions, when we can't share our sorrow, and when we're left to endure the pain alone, that's when it becomes overwhelming.
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हाल ये दिल बता रही निगाहें उसकी
मामला जरा गंभीर मालूम पड़ता है
कत्ल तो बरसों पहले हुआ था
लहू न जाने अब क्यों बहता है
बनकर स्याही जो आज मेरे कोरे कागज भरता है
मेरे ख्याल ए दोस्त बनकर वो मेरे आंखों में बसता है
मैं नाजुक थी कोमल , एकता पर्दा नशी तो नहीं
गुरबत में ना घबराई सख्त थी जान तन्हा न हुई
निगाहें बात रहीं जगी हुई है रातें कई
डरती हूं कि अब वो खता न हो
उस बेदर्द से दर्द-आश्ना न हो
जो था दफन हो जाए राज बनकर
जरा दिल संभाल लूं
मैं निगाहों में उसे अपना पस-ए-दीवार बनकर
-Ekta #एकसोचा
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if a million loved you,
I am one of them, and if one loved you,
it was me, if no one loved you then know that I am dead......-
शौक है ये तुम्हारा इशेतिहार ए मोहब्बत
उस नज़र में आओ कभी
जिस नज़र का कोई असर न हो
फिर तुम भी कभी मेरे आशुओं से हारा करो
आते हो ये जो तुम रोज़ उजाले में
अंधेरे का शिकायत लेकर
रंजिश में ही सही
बिना स्याही के खत तुम लिखा करो
यूं मासूम निगाह से
न तुम मुझे देर तक ताका करो
नज़दीक आकर भी रंजिश में ही सही
हमारे बीच दुरियों का जायज़ा लिया करो
-Ekta #एकसोच
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जी उठी ती हूं हर सुबह तुम्हारी आवाज सुन कर
फिर अगर तुम न मिलो
तो बे-असर है मेरी हर सुब्ह-ओ-शाम
खुद को जाना जुदा जमाने से ...
यही होता है क्या मोहब्बत कर गुज़र जाने में
ओह मेरे नसीम-ए-बहार उम्मीदें रखीं है तुमसे
इसमें कोई नुकसान है तो बता
पिंदार-ए-मोहब्बत हो
तुमसे ही तो राहत-ए-जाँ है
फिर यू तुम मुझसे बार बार खफा होते क्यों हो
कभी हम रूठे कभी तुम रूठे तो क्या
इशारतों से ही सही ओ सनम गुफ़्तुगू के लिए तो आ
ओ मेरे सुब्ह-ओ-शाम तुम्हे मालूम नहीं क्या
जी उठती हूं तुमसे ही ओ मेरे राहत-ए-जाँ ....
-Ekta #एकसोच
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चीख उठती है उम्र जिम्मेदारियों की बोझ से
साल नया हो या पुराना कहां फर्क पड़ता है
आज भी परिस्थिति वही है जो कल थी ...
नया साल है नई उमंग है
इस सोच के साथ फिर आगे बढ़ते हैं
की आने वाला कल बीते हुए कल से बेहतर होगा
Happy 2025 ...☺️
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घर से दूर कोई अपना सा लगे या न लगे ....
पर एक कप चाय कभी बेगानी सी नहीं लगती...— % &....— % &-
बेशक वो हमदर्द है हमारे
तो कहां हम बगावत कर रहे हैं
हुकूमत तो नहीं है उनकी
बस इतनी ही तो हम वजाहत कर रहे हैं
हद से ज्यादा तो कुछ भी अच्छा नहीं
शायद तभी दिल का मोल घटाना पड़ा हमें
वास्ता रहा हमारा वो इकरार- ये- वादा
जिसे शोर मचा जागना पड़ा हमें
बेशक वो हमदर्द हैं हमारे
तभी तो हर हाल में रिश्ता निभाना पड़ा है हमें
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