Ekta Agrawal  
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Joined 25 November 2017


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Joined 25 November 2017
11 HOURS AGO

कैसे कहूँ!
कशमकश में नहीं हूँ.....मैं निश्चित प्रेम में हूँ.....
हाँ... स्वीकार्य है मुझे ....अथाह प्रेम है तुमसे!!

आंखों में लाज़ है .....होंठों पे राज़
कंठ में कंपन.......हृदय में स्पंदन.....
पुष्प अर्पित करूं .....या स्वयं को समर्पित करूं,
बावरी भई पिया के प्रेम में मैं....
अश्रुओं से जीवन सुसज्जित करूं .....हर्षित करूं!!

सुनो पवन!
ये सुगंध उनकी देह की
मेरे नेह से संबंध बनाने को आतुर है निरी....
यूं बेमौसम बहार बनकर ना आया करो.....
सावन की काली घटाओ
यूं मुझ पर प्रीत की बौछार ना बरसाओ.......
मरूस्थल बंजर धरा सी मैं....
ना नीर अपना बेवजह ज़ाया करो.....

गुलाबी कोंपलें खिलें ना खिलें
कांटों का वजूद हमेशा रहता ही है.....
प्रेम के बदले में प्रेम मिले ना मिले
प्रेम का एहसास हमेशा बहता ही है.....

मैं इज़हार करके प्रेम प्रदर्शित करने के पक्ष में नहीं,
मैं प्रेम करते हुए उपेक्षा और अपेक्षा से परे रहना चाहती हूँ!
हाँ.... मैं तुम्हें बताए बिना ही
हाँ..... मैं तुम्हें पाए बिना भी....
सदियों तलक बस प्रेम करते रहना चाहती हूँ....
मिलन और दीदार के इंतजार के बिना भी
खुश और प्रफुल्लित जीवन जीना चाहती हूँ......

क्योंकि
प्रेम जब पूर्णता को प्राप्त कर लेता है!
निश्चित ही वो प्रारंभिक सी ललक और कसक समाप्त कर लेता है!!
और मैं..... मैं अपने प्रेम को चिरस्थाई देखना चाहती हूँ!!!!

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11 HOURS AGO

मगर कैसे!
कितनों के चेहरे उतर जाएंगे
कितनों से रिश्ते बिगड़ जाएंगे.....

सब कहते हैं.... मगर सहते नहीं!
और सहने वाले बेचारे कभी कुछ कहते नहीं!!

सच बड़ा चुप रहने लगा है आजकल
झूठ पांव पसारे फल-फूल जो रहा है,
सच मेरी तरह अकेला अंधेरे में रह रहा है......

एक दिन आएगा.....जब सच ही सच छाएगा,
इंतज़ार लम्बा हो चुका है... वक्त कैसे कट पाएगा....

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11 HOURS AGO

मेरे प्रति
प्रेम और दुआओं से,
ममता की छांव और
आजादी की हवाओं से.....
दामन खाली है मेरा
खुशियों की फिजाओं से.....

कोने भीगे हैं आंसुओं से
या सिकुड़े हैं कमर में घोंसे रखने से....

*तसल्ली है .....तो बस यही
कि कहने को सही......दामन तो मेरा ही है!*

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11 HOURS AGO

सोचता हूँ
शून्य में ताकते हुए....
तुम ना होतीं.... तो क्या होता !
शायद मुझे आकर्षण और खिंचाव का अंतर महसूस ना होता.....

तुम मेरे जीवन में ना आतीं
तो बिना देह के सच्चे मिलन का एहसास ना होता...

तुम मेरे हृदय में ना समातीं
तो निःस्वार्थ और निराले प्रेम का अनुभव ना होता....

और तुम मेरी किस्मत की लकीरों में साथ होतीं
तो मुझे मेरे दर्द का आभास ना होता ....
मेरा हर अश्क़ सूखा और उदास ना होता ......

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12 HOURS AGO

ना केवल कटु संस्मरण,
वरन् प्रफुल्लित स्मृतियां भी!
वज़ह
कड़वे अनुभव
सोचने-समझने की शक्ति दे जाते हैं,
किंतु
मीठी यादें अक्सर अवसाद से भर देतीं हैं.....

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27 APR AT 0:49

मुआ मेरा दुश्मन
आज फिर पूरे जोर पर है....
चांदनी रात में
इसका शौर्य
कभी बादलों के बीच से
तो कभी जलतरंगों के मध्य
अठखेलियां करता हुआ अपने शबाब पर है....
हां मैं जानती हूँ
पूनम की रात इसकी नज़ाकत कम नहीं होती,
और अमावस की रात इसे हज़म नहीं होती.....
मेरा क्या
मैं तो तिमिर हूँ!
मुझे तो हर हाल में इसके संग रहना है!!
पूर्णिमा हो या अमावस्या.... चुपचाप सहना है!!!

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27 APR AT 0:40

मैंने आंसुओं को लफ्ज़ों में ढाला है.....

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25 APR AT 12:27

तूफान में भी कश्ती चलाने का दम है
दु:ख तो है, मगर शायद औरों से कम है...
लोगों से खैर क्या उम्मीद करते हम
भगवान नहीं सुनता इस बात का ग़म है.....

कौन कहता है मैं प्रसिद्ध होना चाहती हूँ!
एकता हूँ.... एकता ही सिद्ध होना चाहती हूँ!!

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25 APR AT 0:40

अस्तित्व
ख़तरे में है मेरा,
मुझे मुझसे मिले हुए
एक अरसा हो गया....

मेरी
मुझे ही ढूंढने की कोशिश
निष्काम हो चली,
मैं ख़ुद को ही छोड़ आई हूँ
गुमनाम सी गली....

दूर मुहाने पर टिकी नज़र
मुस्तैद थी मगर,
पांव कोमल थे
कमबख़्त इरादे भी उनकी गिरफ़्त में आ गए!

अब मैं
और मेरा बिखरा वजूद
दोनों सोच में हैं..... लेकिन साथ नहीं!

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25 APR AT 0:26

"मलहम" में नमक मिला था,
जायज़ है
घाव का रिसते रहना.....

"मरहम" भी भला कैसे मददगार होगा
मीठे शब्दों में छुरियां जो चलाईं जातीं हैं.....

कि अब तलब नहीं सुकूं की ज़ालिम 'क़िस्मत'
एक तेरी चाह पे मेरी हर आह कुर्बान जो है!

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