Ekansh Gupta   (एकांश गुप्ता)
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An engineer under construction
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Joined 8 January 2017


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14 SEP 2021 AT 10:50

जब पूछता है कोई,
"यार कभी-कभी बात तो सही कहते हो,
लेकिन दोस्त हिंदी में क्यों लिखते हो?"
मैं कहता हूं तपाक से उससे,
"कहना तुम्हारा भी ठीक ही है।
लेकिन, तुमने क्यों नहीं कहा इसे अंग्रेजी में,
यह बात भी अपने में एक सीख ही है।।"
वह चला जाता है अक्सर आगे,
छोड़ कर मेरे मन में सवालों का बवंडर।
जिस से जूझता रहता हूं मैं,
एक अरसे तक थामे उसे अपने अंदर।।
फिर याद आते हैं कुछ दृश्य अपने बीते कल के,
और पाता हूं खुद को रोता हुआ, टीचर की मार से,
क्योंकि मुझे ABCD लिखना नहीं आता है।
फिर अगले ही पल,
मुझे मुस्कुराते हुए मां का चेहरा याद आता है,
वह खुश है क्योंकि मैंने पहली बार हिंदी में 'मां' बोला है।।
और फिर सोचता हूं,
यार पहली बार प्रेम पत्र भी तो,
हिंदी में ही लिखा था।
और कितनी भी अंग्रेजी आ जाए,
गाली बकना तो हिंदी में ही सीखा था।।
और फिर मन संतुष्ट हो जाता है,
यह समझकर
यार हम अपना हर सुख दुख हिंदी में ही तो कहते हैं।
जैसी भी हो जिंदगानी,
अच्छी या बुरी उसे हिंदी में ही सहते हैं।।
लेकिन फिर मन उदास हो जाता है,
कि क्यों,
मन की भाषा को जुबान तक लाने में देर हो जाती है?
अंग्रेजी पढ़े लिखो की,
और हिंदी पिछड़ों की भाषा हो जाती है??

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27 NOV 2018 AT 0:18

जब भी बचपन में,
देखता था किसी को मकान बदलते हुए।
मुझे लगता था,
यह कितना असहनीय दुख है,
कि हम एक झटके में,
छोड़ आते हैं वह सारी यादें।
जो हमने बनाई, एक छत के नीचे।।
एक उम्र बिता कर।
और पहुंचते हैं,
किसी नए बसेरे में,
बनाने को कुछ और यादें,
किसी पराई छत के नीचे।।
मगर हां,
कुछ लोग ऐसे ही घरों की छत होते हैं।।

लेकिन,
मुझे किसी का आसमान बनना है।

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18 NOV 2018 AT 17:28

किसी वार्तालाप के मध्य में,
जब हम सुलझा रहे होंगे,
सारी अनकही लड़ाइयां।
जो अपने साथ ले आती हैं,
बिना बताए एक शुन्य।
तब उठूंगा मैं पूरे वेग के साथ,
खुद को समेटे,
और जाऊंगा ना आने के लिए।
बिना कहे आखरी 'अलविदा',
क्योंकि सारी आखरी चीजें मुश्किल होती हैं,
तब जब पता हो वह आखरी हैं।
जैसे कॉलेज का आखरी दिन।

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21 OCT 2018 AT 23:17

दुखों के नितांत स्वर ने,
एक मधुरिम गीत गाया,
जिसमें अनुभूति हुई सुख की।

ऊपर नहीं लिखी है,
दुनिया की सबसे छोटी प्रेम कहानी।
क्योंकि कहानियों को शुरू करने से ज्यादा मुश्किल है,
उन्हें देना एक अंत अपनी इच्छा अनुसार।

इसीलिए,
मेरी सारी कहानियां रह गई अधूरी,
किरदार हो गए गुमराह।
उन्होंने किया विद्रोह मेरे खिलाफ,
और मैं,
हर रिश्ता अधूरा बुन कर छोड़ आया।।

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16 NOV 2017 AT 2:58

जब बोलकर 'कुछ नहीं' या 'यूं ही',
हम बना देते हैं एक शून्य,
असीम संभावनाओं का, अपनी खामोशी से
किसी भी वार्तालाप में।
उस खामोशी के अल्पविरामो में,
'बहुत कुछ' अपना अस्तित्व रखता है।
उस 'कुछ नहीं' में 'बहुत कुछ',
ढूंढना ही कविता है।।

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24 APR 2020 AT 0:29

मैंने एक किताब उठाई है इन दिनों,
अनायास ही हाथ आ गई थी वह मेरे।
जब मैं बुक स्टोर पर दुखी हो रहा था,
क्योंकि वहां वह किताब नहीं थी,
जो मुझे चाहिए थी।।
मैं रोज 4-5 पन्ने पढ़ता हूं इस किताब से,
या किसी रोज ज्यादा भी।
उतना ही पढ़ पाता हूं जितना समझता हूं।
जैसे मानो किताब कह रही हो,
आज के लिए बस इतना ही।
मुझे यकीन हो गया है,
यह मात्र नहीं है कागज पर छपे हुए कुछ शब्दों का संग्रह।।
इसमें संग्रह है,
अनगिनत किरदारों का।
हर रोज किसी नए से वाकिफ होता हूं मैं।।
मैं रोज अब कम पढ़ता हूं इसे,
ज्यादा सोचता हूं,
कि क्या यह वही किताब है,
जिसे शुरू किया था मैंने ?

मानो भूल गया हूं बीच में कहीं,
की किताब पढ़ रहा हूं या इंसान कोई ?

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9 MAY 2019 AT 20:31

फेयरवेल
ताकि मुस्कुरा कर अलविदा कह सकें,
हर उस चीज को जो कभी ना कभी
खत्म हो जाती है।।
जैसे जीवन में जिंदगी थी,
जो 4 बरस की बस।
अब सांझ हुई तो दूर क्षितिज पर,
ढलने को आती है।।
घर छोड़कर आए थे,
जब हम इस नई दुनिया,
की पनाहों में।
तब सोचा ना था,
मिलना होगा, इन यारों से मंजिल
की इन राहों में।।
साथ जो कुछ लोग बैठे हैं,
इन्हें भले ही FB की कवर फोटो
या लैपटॉप के बैकग्राउंड,
पर सेव कर लेना।
मगर इनकी यादों की तस्वीरों को,
दिल के किसी कोने में
अपलोड कर लेना।।
ताकि जिंदगी की मसरूफियत में
जब तुम खुद को भूल जाओ,
उन यादों के किस्सों का एक एपिसोड,
दिल से दिमाग में
डाउनलोड कर लेना।।
युं जब घड़ी मयस्सर है बिछड़ने की,
तब यह बात जबान पर आ ही जाएगी।
कि जब भी जिंदगी में सुकून की तलाश की जाएगी।
तो हे जमशेदपुर तेरी बहुत याद आएगी।।

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5 MAY 2019 AT 1:23

क्या कुछ बदल जाएगा,
अगर पता हो,
कि आखरी बार मिल रहे हैं अब ?
हां शायद,
जैसे पूछ सकते हैं "कैसे हो" ?,
से बेहतर सवाल उस दिन।
या फिर,
कह सकते हैं कोई गिला शिकवा,
अब तक के सफर का।
या,
रोया जा सकता है याद करके,
कि संग कैसे हंसा करते थे ?
या,
तब मौन भी नहीं लगेगा खराब,
इतने सालों के वार्तालाप के बाद।
हां लेकिन,
आखिरी मुलाकाते छोटी होनी चाहिए।
जैसे कि बस 15 मिनट,
ताकि अगली मुलाकातों की जरूरत बनी रहे।।

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2 MAY 2019 AT 0:23

जब भी देखता हूं तुमको,
तो ख्याल आता है की,
तुम तुम नहीं हो।
तुम में,
सम्मिलित है वह सारी खामोशियां,
उन ड्रंक कॉल्स की,
जो मैंने कभी नहीं की।
तुम में,
भरा हुआ है गुस्सा,
हर उस गलती का,
जो जाने अनजाने में हुई।
फिर अचानक लगता है,
तुम में,
दबी हुई है आवाज है,
उन कविताओं की,
जो तुम्हारे लिए लिखी है मैंने।
तुम में,
ढेर सारी खुशियां है,
उन लम्हों की,
जिन्हें साथ जिया है हमने।
तुम में,
एकत्रित है वह सारी प्रतिक्रियाएं,
उन क्रियाओं की जिनमें में,
कहना चाहता था,
कि तुम से प्रेम करता हूं।।

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1 MAY 2019 AT 2:07

वह सारी बातें उन रास्तों की,
अब बेमतलब लगती हैं।
वह सारे प्रयास उन राहों में,
उस मंजिल तक पहुंचने के लिए,
अब अनर्थक लगते हैं।
हर उस मुसाफिर को,
जिसे बहुत दूर जाने के बाद,
यह मालूम चला कि जहां जाना था,
वह एक मृगतृष्णा सिवा और कुछ भी नहीं।

वापस लौटते हुए,
वह नहीं पूछते हैं पानी का कोई और स्रोत।
या यह,
कि यहां से बाहर निकलने का कोई रास्ता है क्या ?
बस खामोशी से,
पी जाते हैं अपनी ही प्यास को।
क्योंकि उन्हें पता है,
यह एक रेगिस्तान है।
यहां से निकलना मुमकिन नहीं।।

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