हाँ, ये एक रिवाज है
बीतें इन लम्हों में
आते हर एक लम्हे का जुड़ जाना
बसंत के गुजरने का
शीत के आगमन की ओर मुड़ जाना
हर तरफ चहचाहती इस उमंग का
कही शांत-सा हो जाना
इठलाती इन पत्तियों का
फिर इस बार घर छोड़ जाना।
ये एक रिवाज ही तो है
जो हर वर्ष इस प्रकार शुरू होकर
इसी प्रकार एक नये वर्ष की आश में खत्म हो जाता है
होली से दशहरा, दशहरे से दिवाली
और उस दिवाली का फिर नववर्ष हो जाना
सब एक चक्कर लगाकर लौट आते है
खुशियाँ भरने, सूनी-सी इन आँखों में
और दे जाते है, कुछ रंग-बिरंगे ख़्वाब
जो हर्फ़-दर-हर्फ़ जीवन को जीवित रखते है।
सिलसिला ये अंत और आरंभ का
तब तक चलता रहता है, जब तक
आरंभ थककर हार नहीं जाता, और
अंत में बचता है सिर्फ "अंत"।-
कितने शब्दों को पनाह दे दी।
🖤
.
.
फिर यादें कुछ उनकी भी होंगी
जो किसी रोज़ दिल के बेहद करीब होते थे
सुख हो या दुख, साथ में खड़े रहते थे
जरा नये दोस्त क्या बना लो, मुँह फुला लेते थे
पेंडिंग होमवर्क हो या कम नंबर आने का दुख
दिल से साथ देते थे
फिर मैटर चाहें बड़े हो या छोटे, सब निपटा देते थे
कुछ यार थे मेरे ऐसे, जो दिल के बेहद करीब रहते थे
इस स्टेंडर्ड के बाद सब फीखा-फीखा सा लगेगा
"भाई एक एक्स्ट्रा पेन है क्या ?" कोई नहीं पूछेगा
"इस सीट पर पहले मैं आया था" कोई नहीं कहेगा
ये सब बातें आगे रिपीट तो होंगी,
बट इन बातों में वो अपनापन-सा ना होगा
वो हैशटैग फ्रेंडशिप और फ्रेंड्स फोरएवर के मायने भी बदल जायेंगे
मिलेंगे ना यार, हर संडे को
फिर ये प्रॉमिस कहा ही पूरे हो पायेंगे
इस कमरे की ये कहानियाँ, बस यही तक रह जायेंगी
अगले सेशन में फिर से, ये दीवारें गुनगुनायेंगी
इन डेस्कों पर फिर से कुछ नए नाम होंगे
कहानियाँ तो बस वही होंगी, जो बदल जाएँगे
वो बस कुछ किरदार होंगे।-
मिलेंगे किसी रोज़ फिर
आते-जाते इन गालियों से
जिन गालियों में किसी रोज़ संग
ठहाके लगाया करते थे
डाल गले में हाथ तब
गुनगुनाया करते थे
कितने याद आयेंगे ना ये पल
जब यहां से पास आउट हो जायेंगे
वो मॉर्निंग असेंबली में हमेशा लेट आना
सीरियस किसी डिस्कशन पर बे-वजह हँस जाना
किसी टॉपिक पर अगर बुलाया जाये, तो कल का बहाना बनाना
सच में ये यादें जेहन में घर कर जायेंगी
वो चार दिवारों के बीच, गढी गई कहानियाँ
जिंदगी भर याद आयेंगी
वो नोक-झोंक के किस्से
कुछ अपनों से टूटे रिश्ते
वो यारी-दोस्ती की कसमें
अपने किसी रूठे को मनाने की रस्में
सब रह रहकर याद आयेगा...-
...उस वक़्त तुम्हारे मुँह से निकलता हुआ हर एक शब्द
सीने को छलनी करते हुए मानो
सीधे दिल पर ज़ख्म कर रहा था जैसे
जो हिस्सा तुम्हारा, दिल में मेरे महफूज़ था
तुम्हारे चीख़ते हर एक शब्द से
वो हिस्सा थरथरा रहा था, अंदर ही अंदर
कई टुकडों में बट गयी थी मैं
मैं चुप थी, क्योंकि वाकिफ़ थी तुम्हारे हाव्-भाव से
वाकिफ थी इस बात से, की जो आज सामने खड़ा है
वो अब और अपना नही है, खो गया है वो अपना कहीं
तुम्हारी वो मोहित कर देने वाली आवाज,
जो कानो को कभी सुकुन देती थी
आज कानों तले गुजर कर, मन के सारे ख़्वाबों को चकनाचूर कर रही थी
तुम वजह गिनवा रहे थे उधर जुदा होने की
इधर मैं अभी भी बीते कल को देखे जा रही थी
नासमझ थी मैं, जो तुम्हारे छोड़ जाने के इरादे को
मजाक समझती रही, लग रहा था जैसे हर बार की तरह
ये सिर्फ एक छोटा सा मजाक हो जैसे
मगर आखिर में, वो हाथ झटक कर छोड़ जाना तुम्हारा
सारी कसर पूरी कर गया
जो दिल में, बे-इन्तेहा प्यार था तुम्हारे लिए
आंखों से छलक छलक कर
दिल को कतरा कतरा खाली कर गया।
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...उस वक़्त तुम्हारे मुँह से निकलता हुआ हर एक शब्द
सीने को छलनी करते हुए मानो
सीधे दिल पर ज़ख्म कर रहा था जैसे
जो हिस्सा तुम्हारा, दिल में मेरे महफूज़ था
तुम्हारे चीख़ते हर एक शब्द से
वो हिस्सा थरथरा रहा था, अंदर ही अंदर
कई टुकडों में बट गयी थी मैं
मैं चुप थी, क्योंकि वाकिफ़ थी तुम्हारे हाव्-भाव से
वाकिफ थी इस बात से, की जो आज सामने खड़ा है
वो अब और अपना नही है, खो गया है वो अपना कहीं
तुम्हारी वो मोहित कर देने वाली आवाज,
जो कानो को कभी सुकुन देती थी
आज कानों तले गुजर कर, मन के सारे ख़्वाबों को चकनाचूर कर रही थी
तुम वजह गिनवा रहे थे उधर जुदा होने की
इधर मैं अभी भी बीते कल को देखे जा रही थी
नासमझ थी मैं, जो तुम्हारे छोड़ जाने के इरादे को
मजाक समझती रही, लग रहा था जैसे हर बार की तरह
ये सिर्फ एक छोटा सा मजाक हो जैसे
मगर आखिर में, वो हाथ झटक कर छोड़ जाना तुम्हारा
सारी कसर पूरी कर गया
जो दिल में, बे-इन्तेहा प्यार था तुम्हारे लिए
आंखों से छलक छलक कर
दिल को कतरा कतरा खाली कर गया।-
जरूरी था क्या ?
इस क़दर यूँ बीच राह में, छोड़ जाना तुम्हारा
क्या इतने मज़बूत थे तुम, की इस तरह छोड़ जाना
इतना आसान हो गया था, तुम्हारे लिए
नही पता था, की मुलाक़ात तुमसे ये आखिरी होगी
वरना झूमके से लेकर, तुमसे जुड़ी हर चीज लौटा देती तुम्हें
तुम्हें शायद ना पता हो, की
वो जो जाते वक़्त तुमने अल्फ़ाज़ कहे थे
तुम्हारे उन अल्फ़ाज़ों ने, उन सारी कसमों,
वादों और तुम्हारी प्यार भारी बातों के
बिल्कुल ही मायने बदल दिए थे
तुम्हारी कही हुई हर प्यार भरी बात
बस अब कुछ शब्दों का बनाया हुआ
जाल सी लग रही थी, और
तुम एक खेले खिलाएं खिलाड़ी...-
सुकून में इसलिए भी हूँ, क्योंकि सिर्फ धोखा खाया है मैंने
कभी दिया नहीं है। 💔-
कभी चुप रहे, तो कभी जाने दिया
शब्दों के मौन को, हालातों पर छा जाने दिया
वो उम्मीद में थे, की उनको रोका जाए
हमनें सोचा, और सोचा, और फिर जाने दिया।-
बिखरे हो, या टूटे हो
किस बात पर खुद से रूठे हो
क्या मात किसी से खायी है
या खुद की नज़रों में झूठे हो ?
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