...उस वक़्त तुम्हारे मुँह से निकलता हुआ हर एक शब्द
सीने को छलनी करते हुए मानो
सीधे दिल पर ज़ख्म कर रहा था जैसे
जो हिस्सा तुम्हारा, दिल में मेरे महफूज़ था
तुम्हारे चीख़ते हर एक शब्द से
वो हिस्सा थरथरा रहा था, अंदर ही अंदर
कई टुकडों में बट गयी थी मैं
मैं चुप थी, क्योंकि वाकिफ़ थी तुम्हारे हाव्-भाव से
वाकिफ थी इस बात से, की जो आज सामने खड़ा है
वो अब और अपना नही है, खो गया है वो अपना कहीं
तुम्हारी वो मोहित कर देने वाली आवाज,
जो कानो को कभी सुकुन देती थी
आज कानों तले गुजर कर, मन के सारे ख़्वाबों को चकनाचूर कर रही थी
तुम वजह गिनवा रहे थे उधर जुदा होने की
इधर मैं अभी भी बीते कल को देखे जा रही थी
नासमझ थी मैं, जो तुम्हारे छोड़ जाने के इरादे को
मजाक समझती रही, लग रहा था जैसे हर बार की तरह
ये सिर्फ एक छोटा सा मजाक हो जैसे
मगर आखिर में, वो हाथ झटक कर छोड़ जाना तुम्हारा
सारी कसर पूरी कर गया
जो दिल में, बे-इन्तेहा प्यार था तुम्हारे लिए
आंखों से छलक छलक कर
दिल को कतरा कतरा खाली कर गया।
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