किसी ने सदा ही ज़िम्मेदारी का पालन किया।
किसी ने हर बार ज़िम्मेदारी से पलायन किया।
प्रकृती ने पुरुष को पिता बना तो दिया मगर,
कितनों ने खुद को संतान के लिये प्रणम्य किया?-
आशीर्वाद में तेरे बाप के हाथ ना हो
तो दहेज औ असबाब कहाँ से आयेगा?
अगर अन्य दूल्हों से कम में बिक जाउँ
तो समाज में रुआब कहाँ से आयेगा!-
"Friends,at last I have found my true love ...
This is final.. seriously" ..-
ये शबाब में सुर्खी-ए-रुखसार का
राज़-ए-निहाँ ज़रूर है,
शर्माते, मुस्कुराते लब-ए-मय-गूँ से
मुझपर छाया सुरूर है!-
मैं भी बदलता रहता हूँ वक्त के साथ हर मायने में।
मुझसा एक ही शक्स मिला, वो अक्स है आईने में!-
तराशकर हसरत इबारत में अहल-ए-सुखन बन गये।
मगर तेरा दिल जीतने का अहल-ए-फ़न न बन सके।-
ऐ सफीर-ए-इश्क़! तुझे ताखीर क्यों हुई आने में,
क्या मुद्दत लग गई मेरे महबूब का शुबा मिटाने में?-
हमको किताबी तालीम मिली, फक़त जितना निसाब है।
शागिर्द बनो तजुर्बा-ए-ज़ीस्त का, वही अज़ीम उस्ताद है।-
हिचकियाँ तो बेवफा ही होती हैं,
चल जाती एक घूँट पानी के साथ!
खिज़ा की पत्तियों सी बिखरी यादें
क्या बुहार पाती तेरी यादाश्त ?-