अपना होने की शिकायत जो करते हैं हमसे
दर हकीकत हमें अपना वो मानते नहीं
दिन-रात करते हैं अपनी महफिल में बुराई मेरी
उनको लगता है उनकी साजिशें हम जानते नहीं
लब हैं जुबां है अल्फाज भी हैं पास
मेरी खामोशी मेरा जर्फ है वो पहचानते नहीं
- कैफ तहसीन-
#Missyoumaa
तुमने इस जिंदगी को हर तरह से सुख दिए
बदले में हमने तुम्हें हर कदम पे दुख दिए
जब से दुनिया को तू अलविदा है कह गई
ऐसा लगता है जिंदगी मेरी कहीं पे रह गई
खुशियों के लम्हे भी मुझको दर्द देतें हैं हजार
दिल तुम्हारी याद में रहता सदा है बेक़रार
जाने क्यों दुनिया है लगती अब मुझे अंजानी सी
अपनी हर एक चीज भी लगती है अब बेगानी सी
सिर पे बेटे के तेरे जब से तेरा हाथ नहीं
ऐसा लगता मेरा साया भी मेरे अब साथ नहीं
तेरे बाद अब मेरी प्यारी मां करुं हाल किससे मैं बयां
मैं तड़प रहा हूं रात दिन मेरा दर्दे दिल कोई जाने ना
है ये एक मेरी दुआ, करे मगफिरत तेरी खुदा
और तुम्हारी कब्र पर, बरसाए वो रहमत सदा
-कैफ तहसीन-
किसी को भूल जाना यूँ नहीं आसान होता है
कभी ठोकर भी लगती है वो चेहरा याद आता है
-कैफ तहसीन-
किसी के जाने का वो गम मुझे हर पल सताता है
बिना उनके मुझे ये ज़िन्दगी अच्छी नहीं लगती
-कैफ तहसीन-
ये दिलकश नजारे ये चमकते सितारे
बिना आपके न भाएं दिल को हमारे
-कैफ तहसीन-
टूटे दिल के हर टुकड़े से याद तुम्हारी आती है
याद तुम्हारी आने से आँखों में नमी आ जाती है
कुछ ऐसी कैफियत मनसूब हुई अब मुझसे
तुम बिन मिली हर ख़ुशी मुझको फ़क़त रुलाती है
-कैफ तहसीन-
ये ईद ये लिबास ये रौनक ये खुशियाँ
बिना आपके सब बेरंगी हैं
-कैफ तहसीन-
अपनी विलादत को मनाते हो अहले नसारा को देखकर
और मोहम्मदﷺकी विलादत पे तुम्हें बिदअत आती है नजर
- कैफ तहसीन-
Part 2
भेजा तुमको अशरफ बनाकर खुदा ने
क्या दीगर मखलूख तुमने न देखी जहाँ में
अच्छी सूरत और जिस्म अता है किया
कभी माजूर लोगों को देखो जरा
झुग्गियों में जाकर के देखो कभी
वहाँ भी बसर करती हैं जिंदगी
तंग गलियों में शहरों की जब जाओगे तुम
फुटपाथ पर लेटा लोगों को पाओगे तुम
तुम हबीबे खुदाﷺ के हो उम्मती
जिनके सदके में सारी दुनिया बनी
तुम मुकद्दर हो मिल्लत के ऐ नाज़नीं
ऐसा बन जाओ की नाज़ करे ये जमीं
शुक्र करते रहो बस खुदा का सदा
सोच से तेरी बढ़कर वो करेगा अता
-कैफ तहसीन-
Part 1
क्या जमाना है तुझसे रूठा हुआ
'कैफ' क्यों है तू इतना टूटा हुआ
इतने बेबस नहीं थे ज़माने में तुम
आज डिप्रेशन के हो दहाने पे तुम
क्या गुरबत ने तुम पे किए हैं सितम
या माँ की जुदाई का रहता है गम
या काबिलियत पे अपनी भरोसा नहीं
अपनी तारीख़ कहीं भूल गए तो नहीं
-कैफ तहसीन-