Ejaz Ahmad   (Ejaz Ahmad "Pagal")
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PhD, IITD
Joined 11 February 2017


PhD, IITD
Joined 11 February 2017
11 JUL 2020 AT 10:40

इनकी मक्कारी, फरेबी मिज़ाज, तुम क्या जानो
कितने कमज़र्फ हैं ये इंसान, तुम क्या जानो

कैसे समझाऊँ मेरी जान, मेरे हालात हैं क्या
कैसे काटी गयी है मेरी ज़ुबान, तुम क्या जानो

ईजाज़ अहमद "पागल"

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12 FEB 2020 AT 22:49

सर्दी का बुखार और तुम

"सब कुछ ठीक हो जाएगा"

ईजाज़ अहमद "पागल"

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27 SEP 2019 AT 2:14

दर ओ दीवार, खिड़कियां और दरीचे तो साफ़ रक्खे हैं
मगर हमने अपनी आस्तीन में ही साँप पाल रक्खे हैं

क्या ख़बर है के कौन माँगता हुआ मिल जाये
हमने सबके हिस्से के सिक्के निकाल रक्खे हैं

अभी से क्या गिला करें, अजीजो को क्यूँ रुसवा करें
हश्र के दिन के लिये, सारे दर्द सम्भाल रक्खे हैं

ये जिंदगी है या कोई, जादू नगरी का है रास्ता
हर कदम हर मोड़ पर, नये नये बवाल रक्खे हैं

तुम पूछती हो मुझसे, यूँ चुप चाप सा क्यूँ रहता हूँ मैं
तुम्हें क्या बताऊँ ऐ दिलरुबा, ख़ामोशियों में जो सवाल रक्खे हैं

कठपुतलियों सी जिंदगी, किसी के इशारों पर है नाचती
जिसने उरुज बख्शा है, उसी ने जवाल रक्खे हैं

यहाँ "पागल" बन्दरों की भीड़ है ,और अंधे बहरे नाचते
कुछ भी हो मियां, तुमने हर इक जानवर कमाल रक्खे हैं

इजाज़ अहमद "पागल"

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9 SEP 2019 AT 14:13

यूँही रोते रहने से कुछ नहीं बदलेगा
चलो जाओ, अब जाकर सो जाओ
नहीं तो उठो हक़ की आवाज बनकर
और राह ए हुसैन हो जाओ
इजाज़ अहमद "पागल"

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25 AUG 2019 AT 2:07

अभी पूरी तरह टूटा नहीं हूँ मैं महज़ थोड़ा झूक गया हूँ
ऐ आँधियों सुनो, अभी औक़ात में रहो

इजाज़ अहमद "पागल"

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21 MAY 2019 AT 15:40

मैंने जो भी किया वो मेरी वफ़ादारी का सबूत है
तुम समझते हो कि "पागल" बिल्कुल बेवकूफ़ है

मै हुक्म बजाता रहा, मगर तुम मुझे गिराते ही रहे
मेरी इबादतों सिला दिया तुमने भी, क्या खूब है

मैं वो सोना हूँ जो सदा चमकता ही रहा है
तुम वो गिरगिट हो जिसके कई रंग रूप हैं

हाथ जब भी उठा है मेरा, कुछ दे कर ही गया है
तुम ना समझो कि तुम्हारे दम से, मेरा वजूद है

गर तक़दीर में है, तो कहीं छाँव मिल ही जाएगी
वर्ना क़र्बला की प्यास से भी ज्यादा, क्या ये धूप है

इजाज़ अहमद "पागल"

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14 SEP 2018 AT 3:02

सुनो मेरी क़ौम के नौनिहालों, सफ़र की आज़माइशों से थक कर ना कहीं सो जाना
भूख और प्यास की शिद्दत में भी नेज़ों का बिस्तर, इतना आसान नहीं है हुसैन हो जाना

इजाज़ अहमद "पागल"

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11 JUL 2018 AT 2:00

ख़ालिक भी वही है मालिक भी वही है
इक उस ख़ुदा के जैसा कोई दूसरा नहीं है

उस से दूर जाकर कोई मंज़िल ना पा सकेगा
दिखाया जिसको उसने वही रास्ता सही है

फक़ीर हो या क़लन्दर, छोटा हो या बड़ा हो
उसके लिये सब एक हैं, कोई जुदा नहीं है

बड़ा रहीम ओ क़रिम है, मेरे ग़म भी दूर कर देगा
सब जानता है वो, उस से कुछ भी छुपा नहीं है

क्यूँ और कहाँ पियो शराब, ये बहस फीज़ूल है क्यूँ की
कम होता है ग़म पीने से, ऐसा कहीं भी लिखा नहीं है

बेशक पैदा किया है जिसने, "पागल" के फ़न में जादू
मेरा ख़ुदा वही है, मेरा ख़ुदा वही है

ईजाज़ अहमद "पागल"

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24 JUN 2018 AT 22:53

गर जुर्म है मोहब्बत, तो फिर ऐसा क़ानून बनाया जाए
सबसे पहले आदम (a.s) और (b) हव्वा को सूली पे चढ़ाया जाए

लौटायी जाये ज़ुलेखा को उसके पाक दामनी का मे्‍यआर
एक बार फिर सरे बाज़ार यूसुफ (a.s.)को बिकवाया जाए

क़यस को लैला ना दिखे ऐसी कोई तदबीर करें
जो लिखा था लौहए क़लम पर उसे बदलवाया जाए

गर मुमकिन नहीं सोनी महिवाल की तक़दीर बदलना
डूब गए जिसमे, उस दरिया को सुखाया जाए

क्यूँ कोई फरहाद तोड़े पत्थर किसी शीरीं के लिए
वादा ए 'खुसरो' भी नहीं निभाया जाए

जिसे ना हो किसी भी रिश्ते नाते का अहसास
ऐसे शख्स को भी "पागल" ना बुलाया जाए
ईजाज़ अहमद "पागल"

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19 MAY 2018 AT 1:16

ना उतारो अभी तिरंगा मेरे छत से
अभी मेरे अंदर वतन का पास बाकी है

मैं भी शामिल हूँ अवाम ए हिंदुस्तान में
अभी मेरे घर में एक ज़िंदा लाश बाकी है

ईजाज़ अहमद "पागल"

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