कि बात में कुछ बात हो, वो बात होनी चाहिए।
जीत होनी चाहिए या मात होनी चाहिए।
पीठ पीछे कुछ भी कहना तो बहुत आसान है।
सामने से कह सको ऐसी औकात होनी चाहिए।
मीठे झूठ से नफ़रत होनी चाहिए।
कड़वे सच को सुनने की ताकत होनी चाहिए।
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शब्द मेरी साँसे हैं।
जो बाहर से अंदर,
अंदर से बाहर अठखेलियाँ करते हैं।
ल... read more
रोज 100 का पान मसाला, 1000 की दारू।
पर दवा के लिए 20 रुपये लगते हैं भारी।
©स्वास्थायु
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लोग बीमारियों को छुपाते बहुत हैं।
जीवन भर पछताते बहुत हैं।
© स्वास्थायु
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जब चलना ठोकरों ने सिखाया।
मुझे तो रास्ते के मुसाफिरों ने उठाया।
मुझे तो रास्तों ने मजबूत बनाया।
फिर क्या क़िस्मत का साया।
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कल जिएंगे इस चाह में आज जीना छोड़ दिया।
लोगों ने हंसकर, रोकर बोलना भी छोड़ दिया।
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सब कुछ समझने की दौड़ ने मुझे दर-दर भटकाया।
पर मुझे कोई समझ ना पाया....।
जब ठोकरों ने समझाया.....
क्या है जिंदगी की असली माया।
तब से मन में बड़ा सुकून है भाया।
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क्यों डरें मौत से जब वो आनी है।
जी लो ये पल क्योंकि जिंदगी तो बहता पानी है।-
पहले के लोगों पर नहीं था मोबाईल, टीवी, कार।
फ़िर भी वो नहीं थे बेरोजगार और बेकार।
ख़ाली होते थे तो करते थे चिंतन।
कैसे सुलझाऊँ जीवन की उलझन।
आज की दुनिया मोबाइल, टीवी में हैं मस्त।
सब के सब हैं बहुत व्यस्त।
बहुत जल्दी हो जाते हैं जिंदगी से त्रस्त।
हो जाते हैं मानसिक अवसाद से ग्रस्त।
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अक़्सर दूरदर्शिता नकारात्मकता जैसी लगती।
पर समय के साथ सकारात्मकता ही नज़र आती।-
जब तक शिक्षक चिंतनशील नहीं होगा।
तब तक समाज सृजनशील नहीं हो सकता।
समाज यदि सृजनशील नहीं है इसका तात्पर्य समाज की विकासशीलता विलुप्त हो चुकी है।
अब इसका परिणाम है समाज का पतन शुरू हो चुका है। जब पतन शुरू होता है तो उसकी आग शिक्षक तक भी पहुंचती है। अत: शिक्षक भी समाज की ही इकाई है।
इसी प्रकार अभिभावकों की भी जिम्मेदारी है। बच्चों पर चिल्लाने के स्थान पर उन्हें समझाने का प्रयास अधिक किया जाए। बच्चों के पहले शिक्षक अभिभावक ही हैं।-