घोड़ों की दौड़ में अब गधे भी दौड़ते हैं
बनने के लिए नेता न जानें किस किस की पौछते हैं
आ जाए सत्ता हाथ में तो लाने वाले को ही नोचते हैं
जनता को मंदबुद्धि खुद को होशियार समझते हैं
भूल जाते हैं की गधे हैं बस रैक ही सकते हैं
दल बदलने के बाद भी ये ढेंचू ढेंचू ही करते हैं
जनता भी गधे घोड़े में फर्क करना चाहती है नहीं
अंत इन गधों को ही अपना प्रतिनिधि बनकर
पहले खुशी में लाडू बांटती है
जब रंग उतरता है तब इन गधों को दुत्कारती है
वक्त है अब भी फर्क समझ जाओ
घोड़ों को पहचान के उनपर ही दांव लगाओ ।
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