शुभ जन्मदिन "वृंदा"
आती हो तुम सौ सौ स्वागत,
काल के भाल पर चरण धर तुम आईं।
कोमल कली सी खिल आई,
कितनी पीड़ झेली इससे अनजान आई।
भोले शिशु सी कोमल तुम,
मृदु आलोक किरण सी आह्नाद लिये आई।
स्नेहभरी ज्योति सम आई,
अपनी दुनिया आप सँवारने तुम आई।
अंक पली कमल कली सी,
व्यथा न कभी घेरे उज्ज्वल आभा हो जीवन।
ईश्वर का आशीर्वाद मिले,
सूर्य ज्योति सा प्रकाशित सुदीप्त हो जीवन।-
शब्द कठिन है।
सवाल निकट है।
फिर भी करता हूं मनमानी।
जलते हुए शोले पर कोई फेंक रह... read more
वो भी क्या दिन, क्या ज़माना था
तेरी गलियों में मेरा आना जाना था।
सजा करता था चाँद तब मेरा दरीचे में
तेरी यादों का सुबह शाम ताना बाना था।
कभी दरवाज़े की घंटी तो फेंके कभी कंकड़
वो किताबों, रिसाले तो बस एक बहाना था।
तेरी फुर्क़त मेरी जान लेती थी
तेरी कुर्बत का मैं दीवाना था।-
बड़े प्यारे हैं लब तेरे, दीवाने हो गए सब तेरे
फूलों का नूर ले कर, यौवन भरपूर ले कर,
सुर्ख लाल शहद के प्याले, कोई कैसे खुद को सम्भाले,
ये महकते गुलाब से, इक नशीली #शराब से।
चैन उड़ा ले गए मेरे, बड़े प्यारे हैं लब तेरे।
दांतों में इनको दबाओ ना, बेखबर शर्माओ ना,
पंखुड़ियां फड़फड़ाओ ना, यू बेचैनियां बढ़ाओ ना,
बन गए हैं कातिल ये मेरे बड़े प्यारे हैं लब तेरे।
बाहों में भर कर झूमने का है मन मेरा,
इन लबों को चूमने का है मन मेरा,
अपने लबों से इन लबों को गीला कर दूँ,
इन रसीली कोंपलों को और भी रसीला कर दूं।
बारिश में भीगना तो इक बहाना है,
लबों पे तेरे जो पड़ी उन पानी की बूंदों को,
लबों से अपने मुझको तो उठाना है।
अरमां ये दिल में है मेरे. बड़े प्यारे हैं लब तेरे।-
कहने को मैं शायर हूं, मगर #शराब नहीं पीता,
पीता हूं निगाहों से मगर बेहिसाब नही पीता।
हां, मयकश हूं मय से सरोबर रहता हूं यारों,
पर होता हूं मैं जब हाल-ए-खराब नहीं पीता।
तलब ऐसी की समंदर भी कम पड़ जाए यारों,
मगर किसी प्यासे का छीन के #आब नही पीता।
बाज़ार की हर चीज़ की कीमत होती है जनाब,
किसी मुफलिस की आंखों का ख़्वाब नही पीता।
यूं तो पी सकता हूं सागर सारे जमाने का मगर,
तलब-ओ-बेताबी में उठ कर हिजाब नही पीता।
दीवाना हूं बज्म-ए-रिंदाना मगर तौबा तौबा,
मेहबूब जा सामने हो "सरोज" नही पीता।-
तुम औरतें न जाने क्या- क्या उम्मीद लगाती हो
एक मर्द से वो सिर्फ़ एक महफूज़ आँचल तलाशता है तुम में...
आँधी का हाथ पकड कर चलता है बंदा थकी रीढ लिए,
उस शख्स को अपनी वामा से चंद पल गुटरगूँ करने दो...
दिन के गम उसे नमकिन लगते हैं, हसीन शाम के साये में एक कोना
मीठे पानी के झरने सा ढूँढता है तुम्हारी आगोश में सर
रखते...
देखो कहीं टूट न जाए कांच के ख़्वाब है बिखरे हुए है।
उसके ख़्वाबगाह की ज़मीं पर,
समेट लो अपनी हंसी में चाहत की धनक भर कर...
इस वक्त शिकायतों का कोई सफ़ा मत पलटो,
ऊँगली फेरते एक झपकी से गुज़रने दो सूखा फूल महक उठेगा...
चिंताओं की ख़ाल उथेड़कर रख दी है तुम्हारी गोद में
सनम ने,
उर की #खिड़कियां खोल दो और बसने दो पूरे शहर सा खुद में।-
आँखों की बात है, आँखों में रहने दो
कुछ देर ही सही, आँखों को कहने दो।
के ख्वाबों में ही मेरा हक है उस पे
जहां में न सही, कुछ देर हमें ख़्वाबों में रहने दो।
माना के उसके जज्बातों से वाक़िफ़ हूं मैं, और एकतरफा है सफर मेरा।
जज्बातों में न सही उसकी बातों में रहने दो
कुछ देर ही सही आँखों में रहने दो।
खबर ना पूछो, मुझे खुद कि खबर नहीं।
उसके ख्यालों से सुकूँ है मुझे,
मुझे इन्हीं हालातों में रहने दो
कुछ देर ही सही, उसकी बातें में रहने दो।
लकीरों में कहीं तो शामिल हूं उसके कहीं तो है ज़िक्र मेरा।
उसकी बांहों में न सही, उसके हाथों में रहने दो
कुछ देर ही सही, उसकी बातों में रहने दो।
के सवेरा है उसके आगे,
और अँधेरा उसकी याद में,
मुझे इन्हीं रातों में रहने दो।
कुछ देर ही सही उसकी बातों में रहने दो।-
तबाही से सना कोई लहर गया।
मानो वक्त जैसे कोई ठहर गया।
लिखने बैठा था ग़ज़ल मोहब्बत की।
ख्याल से उसके मिसरा बिखर गया।
इक रोज काटा था नफरत ने मुझे।
तेरे छुने से उतर सारा ज़हर गया।
बसाने गया था आशियाना मोहब्बत का।
देखा तो लगा उजड़ सारा शहर गया।।
तुझसे बिछड़कर बिखर गया था मैं ।
नुजूल-ए-रहमत से गुजर मुश्किल पहर गया।-
फसल ए गजल बोया मैने
अपनी नींदों को अपने हाथो गवाया मैंने
कहते सुना था नींद सो जाती है नज़्म उकेर
आज हकीकत में अपने आँखों में बेसुध पड़ा देखा मैंने
लाल से हो चलें है ये नवजात आंख मेरी
बिन नींद विरासत ढोता तौहमते बन रहा आगे का मैं
इल्म नहीं क्या करूू इस मसले में
दर्द ही तो बयां किया था क्या गुनाह कर दिया मैंने
हाँ गलती मेरी मैंने हर्फ को उभारा
इतने भी खुश ना हो ऐ जालिम तुमने भी तो कत्ल मेरा
कर डाला।
अब जो हो बस लिखता ही रह जाऊंगा
ऐ तन्हा रात बिन नींद के मैं गजल तेरे पहलू में बोता चला जाऊंगा।-
चिड़िया...
हर दिन की भाति आज भी
नीले अनंत के चमकीले
धब्बे की मुस्कराहट
हँसी में तब्दील हो रही थी।
मैंने नीले अनंत की ओर देख
अपना मुँह बनाया
क्योंकि उसकी
बीती रात की करतूत से,
जंगल की हर जड़ तर थी
मेरे शरीर में तेज #कम्पन
उसके मकसद को
असफल करने की पहली जरूरत है।
कुछ तेज़ कम्पन के पश्वात
मेरे पर परवाज़ को तैयार हैं।
और देखते ही देखते
मेरी नज़रों के सामने सब सतह है।-
मैंने छोड़ दिया है, भावों को...
शब्दों में पिरोना।
क्योंकि छोड दिया है, लोगों ने...
भावों को महसूस करना।
शायद आप इसे हार समझे...
या फिर यूँ कहें कि उब गया #पथिक...
हयात के झंझावातों से,
लेकिन... यह कितना सच है?
सच! इसे बयाँ करना.... बेहद कठिन है,
बेहद कठिन
उतना कठिन कि जितना,
तुम समझते हो काव्यरुपी भावों को।
हाँ इसी लिये....
मैंने छोड़ दिया है, भावों को शब्दों में पिरोना।।-