चलो ज़िंदगी को थोड़ा अलग करते है,
कुछ तुम बदलो कुछ हम बदलते है।-
क्या इश्क काहू मैं उसे जो अकेले में बैठ कर याद आए,
मुर्शद इश्क वो है जब याद उसकी महफ़िल में सताए।-
ये बाला क्या इश्क़ है के सितम किए जा रही है,
मोहब्बत है भी और नहीं भी है मगर हुए जा रही है,
ये उसके कुछ निशान है मुझ पर कुछ नही भी है,
कुछ मिट भी गए है कुछ छिपाए जा रहे है,
वो यूं इश्क का सितम भी कुछ यू किए जा रहे है
मेरे शहर आए भी है और वो दूर भी जा रहे है,
कैसे याद धुंली पड़ने लगी हैं उनकी,
बेवफ़ा वो नही तो क्या हम खुद से किए जा रहे है
क्या इश्क के सितम बस हम पर किए जा रहे है-
तेरा मुझे यू अपना बताना और,
फिर भरी महफ़िल में यू मुकर जाना,
क्या यही होता है इश्क जताना,-
मालूम ना था कुछ पलों में बिक जायेगा इश्क मेरा,
नीलामी होगी भरे बाज़ार खरीदा जायेगा इश्क़ मेरा,
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क्या वजह कुछ और तो नहीं
तेरे यू जल्दी चले जाने की,
ये हिजर की रात थी क्या,
तुम उसकी बहाओ के घेरे में रहोगी
रुको ये मेरी आखिरी सांस है क्या।
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क्या ही शिकायत करू मैं तुझे उसकी ए खुदा,
कुछ सोच कर ही तूने उसे ज़िंदगी मेरी बनाया होगा।-
क्या उसे पसंद है उसकी बाहों का घेरा जो उसके करीब है,
ये उसे यू देख कर मुझे क्यों सांस आता नहीं।-
वो काली गहरी ठंडी रातें फिर तेरी यादों को आना,
अरे मै तो इनमे डूबने ही लगा,
लो इन रातों से भी मुझे इश्क बेशुमार होने लगा।-
मुर्शद तूझे याद किया तो क्या गलत किया,
एक तू है के मिलने आता भी नहीं।
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