आरज़ू है मेरी ये एहसास बनकर ख़ुशबू फ़ज़ा में बिखर जाये ,
मै उतरू एक रोज़ तेरी आंखो में ख्वाब बनकर और ये शाम गुजर जाए।
कोई लफ्ज़ ना गिरे तेरे लबों से फूल बनकर तेरी सांसे क़ुर्बतों मे बिखर जाए,
थाम लू तेरा हाथ मै किनारा बनकर लहरें तेज़ है तू कहीं खो ना जाए ।
- दुष्यंत कुमार
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इन्सान तन्हाई में भी तन्हा नहीं रहता
मोहब्ब्त के दर्द की ख़ुशबू हमेशा उसके साथ रहती है
तकलीफों ने कब अकेला छोड़ा है मुझे
हम - साया होकर मेरे घर के पास रहती है,
ना उम्मीदी का आलम गवारा तो नहीं मुझे
वापसी के खयाल में वो दीया घर में जलाए रहती है,
हम तो कायल है तेरे इस हुनर के भी ए जाने जां
तू मुझे मरने भी नहीं देती और जलाती भी रहती है,
उन आंखो में आखिर कब तलाशोगे खुद को
वो आंखो अब सोती नहीं जिन्हे तुम जगाएं रहती हो
बहुत भूल से भी तो कैसे भूल सकोगे मुझको तुम *दुष्यन्त
कुछ एक बाते बहुत याद से याद रहती है
- दुष्यन्त कुमार-
बहुत कुछ है कहने को तुमसे
कभी फुरसत से तू मिल तो सही,
बातें तो अक्सर करते हो तुम ,
कभी जज्बात जाहिर करते क्यूं नहीं,
मै वही हूं जो हुआ करता था
तुम अब पहले जैसे लगते क्यूं नहीं,
उसी सड़क पर जहां कभी मिले थे हम तुम,
मै वहीं हूं ,,,,तुम लौटकर कर तो आओ
कभी मिलो तो सही
तेरी मंज़िल तो मै नहीं हूं शायद ,
पर तू कुछ देर साथ चल तो सही,
मै शायद हमसफ़र तो नहीं तेरा ,
पर तू मेरा हमराही बन तो सही,
हर लम्हा तुझे ही पुकारता है ये दिल मेरा
मेरे सीने पर सर रख मेरी धड़कन
महसूस कर तो सही
तू आ मेरे पास आ मुखातिब हो मुझे ,
ये दिल तेरे बगैर कहीं अब लगता भी तो नहीं,
ये लिखावट मेरी जज्बात है मेरे ,
*दुष्यन्त मेरी ये लिखावट बोल उठेगी,
तू कभी महसूस तो कर कभी सुन तो सही........-
....... ख़ामोश सवालात .......
क्या आज कुछ पल आ सकोगे क्या ?
मेरे विरह में तपते दिल पे राहत - ए - वस्ल
की बरसात कर सकोगे क्या ?
तुम मुझसे परेशानी कहो और मेरे दुख सुन सकोगे क्या?
मै तुम्हे निहारता हूं मेरी मुस्कुराहट बनोगे क्या,
सुकून एक पल को नहीं है ,
*दुष्यन्त की ये उलझन समझ सकोगे क्या ?
तेरी उल्फत , तेरी फ़ुर्क़त झकझोर देती है मुझे,
ये बात आसान तो नहीं पर तुम समझ सकोगे क्या?-
....... बेनियाजी - ए - मोहब्बत
तेरा तर्क - ए - ताल्लुक .......
कहां चला जाऊ,
किसे दिखाऊं ये ज़ख्म - ए - दिल,
कहां चला जाऊ,
किसे कह सुनाऊ ये दर्द - ए - हिजरत,
कहां चला जाऊ,
किसे बयां करू ये खल्वत - ए - गमो की दास्तां,
कहां चला जाऊ ,
आखिर कहां करार पाए *दुष्यन्त,
कहां को रुख - ए - जीस्त मोड़ चले
जिस एक नाम को पुकारा था कुछ एक खुशी की खातिर,
रेत पर लिखावट थी सो अब मिट चले,
यहां बसना कब था उन पंछीयो को,
मौसमो की चाह थी सो अब उड़ चले,
ये रूखसती जान ले जाती रही,
ये आंधियां तबाह करती रही,
*दुष्यन्त तो शजर थे सो बस बर्बादी देखते रहे,
यहां तो कभी दवा खाने हुआ करते थे,
मरहम के सौदागर अब तुम कहां रहे
बदल गया सब कुछ ही हाल - ए - दिल जानने वाले अब नहीं रहे,
जिस एक हकीम से वाकिफ था मै
जाने कब खंजर उठा लिया उसने चीर के दिल - ए - *दुष्यन्त,के
कहा अब वो मौसम वो रुत नहीं रहे,
वो राहत के दर अब वीरान है वो हकीम दवा खाने बढ़ा के चले गए,
-
....... बख़्शिश - ए - सनम .......
भूल के भी याद ना किया तुमने,
मैंने तेरी चाहत में सब कुछ ही भुला दिया
किसी एक लम्हे तक में मेरा जिक्र नहीं,
मैंने एक पल को तुम्हें जुदा नहीं किया,
जाने कैसा इज़्तिराब है....?
चाहता हूं तुमसे मुलाकात करता रहूं ,
सिर्फ तुमसे ही बात करता रहूं,
ये दूरियां दरमियां - ए - दिल बहुत खलती हैं मुझे,
जाहिरा दूरियों का मैंने जिक्र तक नहीं किया,
शिकायते करे भी तो *दुष्यन्त कैसे...?
लगता है जैसे तू अब मेरा नहीं रहा,
क्यूं कुछ बदल से गए तुम,
क्यूं मुझसे कभी कोई गिला नहीं किया,
बेकरार हूं अभी तक.... बेहद चाहता हूं...
मानो की खुद में कहीं समा लू तुम्हें ,
कहीं जाने ही ना दू अपने दिल में बसा लू तुम्हें ,
तेरा हर पल ही फासले बनाना यू ही तो नहीं है
लगता है कि तेरा दिल कही दिल तो नहीं भर गया ???
अपना सब कुछ ही तो माना तुम्हे,
हां पर कभी मिलकियत का दावा नहीं किया,
हम तो तुम शिला को जी भर के चाहते रहे *दुष्यन्त,
मेरी इन बेहद चाहतो का तूने सिला क्यूं नहीं दिया ?
एक चुभन और बढ़ जाएगी इस दिल में ,
गिला भी तो नहीं कर सकता...... *दुष्यन्त,
कभी दिल से मुझे मोहब्बत या प्यार क्यूं नहीं किया?
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तुम्हारे बगैर ये लम्हे तो वैसे ही
बरस लगते हैं,
और एक ये तुम्हारी थोड़ी देर जान
ले जा रही है मेरी....-
ये मौसम इतना खुशनुमा जो है,
राज क्या है ?
तुम जो इतने प्यारे लग रहे हो,
आगाज़ क्या है ?
दिल तो चुरा लिया तुमने,
अब आगे इरादा क्या है,
सब कुछ ही तो वार दे *दुष्यन्त तुझपे,
एक इशारा तो कर,
इतंजार क्या हैं ?
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....... आरज़ू - ए - क़ुर्बत .......
तेरी आंखे है या मय के प्याले,
मेरी नज़रे तो है अब तेरे हवाले,
बेकरारी बढ़ रही है कुछ इस कदर,
अब तो नजर आए हर पल
बस तेरे ही नजारे
तुझसे दूरियों में जितने पल गुजारे,
पल भी अरसा लगे इस दिल को हमारे,
गम - ए - अश्क से तो,
वाकिफ है दुष्यन्त,
नमी जाती है नहीं मेरी जान बिना तुम्हारे,
हमारी आंखो से भी खुशी के अश्क बहाने,
तू मिलने आ ना कभी चाहे कभी भी....
किसी भी बहाने....-
....... खयाली आशियाना .......
तुम ने किया न याद कभी भूल कर हमें
हम ने तुम्हारी याद में सब कुछ भुला दिया
मेरी हर धड़कन में तुम धड़कते थे
मेरे हर लम्हे में तू जाहिर था,
ये अब तेरे ख्यालों में कौन है ?
तुमने ये किसे अपनी यादों में बसा लिया.....?
एक तू ही मेरे दिल में था,
मन में तुझे ही बसाया था
मै तुम्हे भूल भी ना पाया ,
तुमने जहां ही दूसरा बसा लिया
तेरा गम यहां मुझे खाए जा रहा है
तू बेफिक्री में जी भर के मुस्करा लिया
हम उम्र भर घर की छतों को संवरते रहे
एक तूफान ने सब आशियाना ही मिटा दिया
तेरी आंखे तो कभी नमी से वाकिफ ना हुई,
हमने अश्को का सैलाब बहा दिया,
तुझे क्या ही खबर *दुष्यन्त पर क्या गुजरी
जब तूने जानकर भी दुनिया को मुझे अनजान बता दिया.......-