कभी दूर जाओ कभी पास आओ
कभी राधा तो कभी रूक्मणी बन जाओ-
जिंदा हम हो जाते
चाहे कुछ पल के लिए सही
एक ओर जिंदगी हम गुजार जाते-
कुछ पल का हमसे वास्ता तो कर
फिर मुबहम हो जाएगा सहर तक
वक्त पे ज़ख्म पर मरहम तो कर
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ना खुशी है ना गम
यार जिस हाल में रखे है वो अदम
वही साकी वही शीशा वही बादा
जहां आसू का कतरा भी कहे कहा आ गए हम-
वक्त पर
वरना दम तोड़ेंगे तेरे दर पर
पुराने सवालों का वजूद नहीं रहा
आ फिर से रख ले सर, मेरे कांधे पर
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मेरे सिवा नजर आया है कोई?
और यह जमाने की परवाह छोड़
चल संग मेरे तारों के शहर में कभी
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भूले से ना करना ज़िक्र तहलील करने की
अलामत है मेरी पेशानी पर इख़्तिलात की-
रास्ता कर दिया खुद को मैंने
अब तू है और तेरी मंजिल है
मौत कर दिया खुद को मैंने-
कम कीमत है जज्बात की इस ज़माने में
अमीर हो गए लोग जिस्म की खरीदारी में-