इक छवि नहीं मेरी मां की
दादी का दुलार , नानी का प्यार
दोनों को ही कहा यह मेरी मां
बड़ी मम्मी के संस्कार
ना सीखा तेरे मेरे का ज्ञान
मम्मी तो हर रूप में है जान
गुस्सा भी देखा तो प्रेम अपार
छुपते छुपाते हर चीज का दुलार
चाची तो मां से भी बढ़कर
जिनसे कर लो अपने मन की बात
मेरी मां की छवि एक नहीं है अपार
आज भी जब मम्मी कहती है
ये तो दादी जैसी है, होता है घमंड बेशुमार
खुद इस मोड पर है
तो याद आती है आप सबकी बहुत बार
मेरी मां के संस्कार
रगो में दौड़ते है लिए उनकी पहचान ।।-
धोरे माथे उबो म्हारो बीकाणो
इरी रज नित री सवारों
ना घणी आभा री लेख
अठे बिराजे म्हारो नगर सेठ
मां करणी रो हाथ सदा
बीकाजी सु बसायो म्हारो शहर
नित रा अवसर , नित रा त्यौहार
अठ री संस्कृति ना कहीं और
बूढ़ा हो या मोटयार, सब ने चाहिज हताई चार
लुगाइयां री शक्ति चाहे घर या बार
टाबर मस्तमौला अठ रा, पूछो एक उतर चार
हिमालय री वादियां सु बढ़कर
भेरूजी रो मेलो अठे
एक बार लगा दो बाबा री जयकार
बीकाणो पर नाज घणों
म्हाने इर पर नित रो अभिमान।।
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सारे भाइयों की खनक है बहनें
उनके घर का अभिमान है बहनें
खुद चाहे जितना सता ले
पर दुनिया में कोई आंख ना उठा ले
मेरे भाई है ही सबसे न्यारे
बचपन में शिकायत लगाने वाले
यौवन में सबसे ज्यादा चौकसी वाले
शादी की सारी जिम्मेदारी उठाने वाले
कोई कमी ना रह जाए ये सोचने वाले
हर बात बोलने से पहले समझने वाले
बच्चों को बिगाड़ने वाले
कुछ भी कहो मेरे भाई है सबसे न्यारे
त्यौहार राखी हो या भाईदूज
सबसे पहले याद आने वाले
एक कुमकुम तिलक और शगुन
भाई की आश ,और बहन का विश्वास
सब कुछ सहन कर लेती है बहनें
पर भाई का कोई नाम भी ना ले
भाई तो होते ही है बड़े प्यारे।।
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नित नव रूप में तू
नित नित निहारूं
क्या खूब है तू।।
बाल रूप में यशोमती दुलारा तू
किशोर हुआ तो किशोरी प्यारा
ज्ञान में अर्जुन की पिपासा
त्याग में देवकी का न्यारा
एक नव ऊर्जा है तू
कान्हा कितना प्यारा है तू ।।
नित नित निहारूं
क्या खूब है तू ।।
नटखट चंचल नंद किशोर
हर दिन नित नव हर भोर
सुंदर कान्हा चांद चकोर
करता है तू भाव विभोर ।।
नित नित निहारूं
क्या खूब है तू ।।
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नजर उतारूं भाई भावज री
माला उवांरु , वारी जाऊं
पीहर री गलियों में हरख मनाऊं
भाई थारे आंगण में नित रा मंगल गाऊं
नेग भी दीज्यो घणे मान स्यू
प्रेम री सौगात और मीठा बोल
बेण भाई री प्रीत ना है कोई मोल
भतीजा री मौज हुवे
इतरो ही अरदास करतार से
याद करता हीं हियों भरीजै
नज़र उतारु नित री मैं ।।
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नानाणो केवता ही हिवडो अपार हिलोरा खावे
बो घर स्यु ज्यादा भावना रो मेल करावे
दिनुग उठता ही सिरावणो, राबड़ी रोटी
नानी रो अपार हेत, घी री दो धार और चूरमो
कोई रोक टोक ना ही मां री फटकार
याद आवतां ही बचपन रील ज्यूं घूम जावे
पत्ता हो ताश रा या हो कैरम रो खेल
छुट्टियां मनाने कुल्लू मनाली स्यू ज्यादा चोखो
नानी रो घर याद आवे ।।-
सरल सरिता है जो मन से
संजीदगी और सादगी भरे तन से
त्याग और समर्पण है दिल से
बहुत सुन्दर है विचारों से
संतोष नाम ही परिभाषा है जीवन की
नही आता इसे बहुत अलंकृत समझाना
पर वास्तविक मूल्य बताती है मन से
जो कर्तव्य पथ पर रहती अडिग है
मेरी मां की खूबसूरती शब्दों में नहीं
पर व्यक्तित्व की एक झलक है इस कलम से !!-
नारायण की गूंज , गूंजती है रगो में
आज भी पीपल की टहनी निहारती है वजूद आपका
दिव्यता गायत्री मंत्र की देती है सुकून आपका
बाखल की रज में महक है देदीप्यता की
ओझल होकर भी हर देव है आप
याद कहूं या अहसास होता है परिवार में
बहुत सींचा था आपने जिसे फलित है आशीर्वाद
आज भी भाईजी की धुन देती है अपार विश्वास
बांधती है एक डोर आपके नाम से
भाईजी की गूंज गूंजती है हर जन में ।।-
शुभ है मंगल है , जब सब साथ है।
रौनक है दीपों की , खनक है दीपोत्सव की
मिठास है रिश्तों की,चौक है आंगन का
हर दिन दिवाली हो प्रेम हो परिवार में
शुभ हो , हर्ष रहे अपार
दीप से झिलमिल रहे खुशियां रहे अपार
मंगल कामना है दिल से
शुभ रहे हर दीपावली का त्यौहार।।
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कुछ अल्फाज अधूरे रह गए
कुछ बाते अधूरी रह गई
जाने कुछ रह सा गया
मंजिल ने मुकाम तक पहुंचाया
पर आपके किस्से कहानी बन गए
रहेगी ये यादें सदा जीवन संग
नव ऊर्जा , नव उमंग खिले
हम ना मिले पर नई डोर मिले
काश कभी इस नव मंजिल के डगर
कभी हम मिले ......-