फिर जमाना बचपन का जब ना कोई डर था ना कोई चिंता थी, ना कोई फिकर थी, बस था तो केवल जीवन ही जीवन और जीवन में उमंग थी खुशी थी, जीवन जीने के लिए था और हम जीवन जी रहे थे लेकिन जब हम बड़े हो गए अब डर भी लगा रहता है ,चिंता तो है ही ,और उमंग भी खत्म होता जा रहा है, अब जीवन जी नहीं रहे हैं ,जीवन को जीना पड़ रहा है।
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