मुझे लगता है अपने प्रेम को व्यक्त करने से पहले व्यक्ति के मन में जो भावनाएं होती हैं वह सबसे ज्यादा पवित्र और सुंदर होती है। इस अवस्था में व्यक्ति बिना किसी आशा के बस प्रेम करते रहता है। जिनसे प्रेम हों ,जब सामने होते हैं, वो बस उन्हें निहारता रहता है, और जब आंखों के सामने ना हों, बस उन्हीं के बारे में सोचता रहता है, पर जैसी भी हो यह उसके मन की भावनाएं होती हैं, जिसमें उसे कोई पीड़ा नहीं होती, वो बस अपने प्रेम को देखता है और खुश रहता है। इसके विपरीत जब वही व्यक्ति अपना प्रेम व्यक्त कर देता है, दो चीज़ें होती हैं, या तो उसके प्रेम को स्वीकृति मिल जाती है या फिर नहीं मिलती, अगर प्रेम को स्वीकृति नहीं मिलती, तो वह दुखी हो जाता है, वह पहले की तरह अपने प्रेम को निहार भी नहीं पाता, उसके मन में झिझक आ जाती है, पहले की तरह वह खुलकर अपने प्रेम से बात भी नहीं कर पाता, और अगर उसके प्रेम को स्वीकृति मिल जाती है, तो उसकी आशाएं भी बढ़ जाती है, और इन्हीं बढ़ती आशाओं की वजह से उनका प्रेम कभी-कभी मुझे छोड़ कर चला जाता है।
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