मैं मांगा था प्रेम
अपने परिवार के लोगों से,
उन्होंने दिया घृणा, द्वेष,
अप्रेम असीमित मात्रा में।
जीवन में न समझा
न ही समझने की कोशिश की ,
रिश्ते - नाते निरर्थक लगते हैं
अब तो इस जीवन में।
मैं उब गया इस मानव
समाज के अमानवता से
मैं "साकेत की उर्मिला"
के समान ही उपेक्षित
पात्र मात्र रह गया हूँ
इस मानव समाज में।
ये पतझड़ के समान मेरा
सारा जीवन ,
ईश्वर भी सोचता होगा
क्या? लिखूं अब इसके
जीवन में।
©दुलामणी पटेल-
समय ने बता दिया
कौन अपना कौन पराया है!
कहते तो हैं मत कहना कि
मैं अकेला हूं ,
अरे मैं सत्य कहता कि
हर जगह से धकेला हुआ हूं।
समय ने कहा एकांत में ही
चलना है इस राह पर
कोई साथ खड़ा नहीं होता
संघर्ष के इन पलो पर।
हर एक ने कहा तू कुछ नहीं
कर सकता है ,
इस लिए ही संघर्ष - परिश्रम
अभी भी जारी है।
©दुलामणी पटेल
-
मां.... मां.... यह शब्द नहीं ,
यह मंत्र है ममता और प्रेम की ।
मां के बिना यह संसार नहीं
मां ने ही आदिशक्ति बन रचना
की इस सृष्टि की ।
समस्त संसार के उत्पत्ति की,
जीवन की, जीवन के संचालन की ।
मां के चरणों में समस्त तीर्थ स्थल बसा है,
मां ने ही हमें जन्म दे सबकुछ सीखाया है।
©दुलामणी पटेल-
शिवशक्ति का लाल कहलाता
लक्ष्मीनारायण रखते हैं ख्याल,
इनकी सेवा जो करे भाई
उससे डरे काल। -२
हे पूर्णब्रह्म परमात्मा !
तुम हो लौकिक-अलौकिक ,
यहां हर कोई लगा है
पाने को संपत्ति भौतिक।
.....
(शेष अनुर्शीषक में)
© दुलामणी पटेल-
मै शिव - सा तुम शक्ति - सी।
हमारा प्रेम श्री कृष्ण के प्रति
मीरा की भक्ति सी।।
©दुलामणी पटेल
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जिस प्रकार शिव, शक्ति के बिना शव हैं,
उसी प्रकार मैं शिव के बिना शव समान हूं।
©दुलामणी पटेल-
चिल्ला कर कहता रहा
मुझे घृणा नहीं, द्वेष नहीं,
अपमान नहीं, क्रोध नहीं
अपितु प्रेम चाहिए।
बस जब अकेला हो जाऊं
असहाय हो जाऊं
जब जरूरत हो मुझे
तब साथ दे देना
थोड़ा-सा प्रेम दे देना।
परन्तु न मिला मुझे यह सब
अपितु घृणा, द्वेष, अपमान,
क्रोध ये सब प्राप्त हुए।
अब भी भटक रहा हूं प्रेम के लिए
जिसमें हो सहभागिता, विश्वास,
सहायता, मित्रता, अपनत्व, स्वतंत्रता,
समझ जो एक सच्चे प्रेम में होता है।
मुझे वह प्रेम चाहिेए
जो मुझे सिखा सके
संसार घृणा-द्वेष पर नहीं
प्रेम और सत्यता पर टिकी है।
©दुलामणी पटेल
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हरियाली , हरयाली, हरेली नामों से जाना जाने वाला पारंपरिक त्यौहार जिसे कृषक हर्ष और उल्लास के साथ अपने कृषि यंत्रों की पूजन कर, कृषि से जुड़े कई कला कृतियां बना कर परिवार के साथ एवं ग्राम वासियों के साथ मिलकर मनाते हैं ।
©दुलामणी पटेल-
मां के लिए
क्या ! कैसे ! कहां ! तक लिखूं ।
मां की निस्वार्थ
प्रेम-भाव और ममता के लिए क्या !
कौन सा ! कैसा ! शब्द निर्माण करूं ।
©दुलामणी पटेल-
मां के लिए शब्द खोजने गया
शब्द मिला नहीं !
तब समझ में आया मां के लिए
"मां" शब्द के अलावा कोई शब्द बना नही।
मैं मां के लिए उपहार लेने गया
जो मां के लिए अनमोल हो
कोई उपहार मिला नहीं ।
मां के पास जाकर मां के चरणों में
सिर झुका आया
चलो समझ में तो आया
कि मां के लिए संतान की खुशी
से बढ़कर कोई उपहार नहीं ।
© दुलामणी पटेल-