गुजरती है , गुजरने दो , ठहराती है , ठहरने दो ,
वो यादें है , मैं धीरज हु , मैं सुनता हु , तो कहने दो ,
उन्हें तुम आज मत रोको , जो कुछ है साफ कहने दो ,
उन्हें तुम आज मत रोको , जो जैसा है वो रहने दो ,
कभी हमने कहा होगा , हमे भी आज सहने दो ,
मैं दिल को हार कर बैठा , वो जीते दिल की बाजी थी ,
मैं नामंजूर कर देता , वो हर लहजे में राजी थी ,
मोहोब्बत को वो अक्सर मौसमों में बाट देती थी ,
वो सावन दिल लगाती है , मुझे पतझड़ में रहने दो ,
उन्हें तुम आज मत रोको , जो जैसा है वो रहने दो ,
कभी हमने कहा होगा , हमे भी आज सहने दो ,
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जैसा भी है ,
और हां ,
जितना भी हैं ,
मगर शुकून इस बात का है , की ये मेरा ही हैं ।
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अब कहां है मेरे पास वो ,
किसी जमाने में जो मेरे पास हुआ करती थी ,
मुझे छोड़ा मुझसे बेहतर की तलाश में ,
किसी जमाने में जिसे सिर्फ मेरी तलाश हुआ करती थी
मेरे दिल का चैन मेरे ज़हन का सुकून ,
मेरे जीने की एक आखरी आस हुआ करती थी ,
उसे लफ्ज़ो में बयां करना इतना आसान नहीं है ,
आखिरकार वहीं तो मेरे लफ्ज़ो का एकलौता एहसास हुआ करती थी ।
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कल सुना मैंने की " जमाने के साथ बदलना पड़ता है " ,
हमेशा अपने ही नहीं , थोड़ा अपनों के हिसाब से भी चलना पड़ता है ,
यूं तो नसीहतें मिलती है हमें गैंरो से संभलने की ,
मगर इस दौर में तो गैरों से ज्यादा अपनों से संभलना पड़ता है ।-
हम रूठे उनसे , तो उन्हें मनाने की क्या जरुरत,
हम रोये अगर, तो उन्हें हँसाने की क्या जरुरत..
जिस हाल में है हम, उसी हाल में रहने दो हमें,
ये बिना मतलब का अपनापन दिखाने की क्या जरूरत ।-
हर किसी का तो नहीं मगर अपनी कहानी का एक किरदार हूं मैं ,
हां यह सच है, इस जिंदगी का एक किराएदार हूं मैं ,
एहसान मैंने भी किए हैं बोहोत और बहुतों पर मगर कभी हिसाब नहीं किया ,
कुछ इसी वजह से उन एहसानो का खुद ही कर्जदार हूं मैं ।-
कुछ पल की खुशियां और फिर वही रूशवाइ है ,
तेरे जिक्र के साथ ही कल फिर तेरी याद भी आई है ,
जाने क्यूं लगने लगी अब तेरी यादें भी मुझे पराई है ,
क्या तू भी कभी खुदको मेरी यादों में अकेला पाई है ।-
रहूं सिर्फ तस्वीरों में एक दिन , ये मुझे गवारा नहीं ,
अगर कलम उठाई है तो दिल-ए-जहन दोनों पर राज़ करना है ,
मैं नहीं तो मेरे लफ़्ज़ ही सही , दे सुकून हर जिक्र के साथ ,
कम से कम इतना तो काम करके ही मुझे मरना है ।-
इस बेवफाई के मैंखाने में , वफाई का जाम किसने मांगा है ,
ज़रा पूछनां तो सही ,
" तुम्हरा नाम क्या है ? ",
ज़ालिम जमाने से वाकिफ नहीं ,
या मोहब्बत के नशे में कुछ ज्यादा ही चूर हो ,
समझ नहीं आता तुम्हें इस वफाई से अब ,
" काम क्या है ? "-
जमाने की बराबरी में वक्त जाया मत करना
अगर तुम बराबर भी होगे तब भी ये लोग तुम्हें दो कदम पीछे ही बताएंगे ,
तुम चाहे जितना भी हंस बोल कर चलो इनके साथ
मगर मौका पड़ने पर यही लोग ,
यही लोग हैं जो तुम्हें हर मोड़ पर सताएंगे ।-
अगर अपने लफ्जों के जरिए, मैं अपना प्यार जता सकता हूं ,
तो अब क्या मैं खुद को एक शायर बता सकता हूं ?-