DT SINGH   (DT SINGH)
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Joined 21 September 2020


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Joined 21 September 2020
28 OCT 2020 AT 14:47

हमें उनसे कितनी मोहब्बत है ,
वो प्यार जताना जरूरी था ,
और हम उनकी बेवफाई से रूबरू है ,
इस बात का एहसास कराना भी जरूरी था ।

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15 OCT 2020 AT 8:00

न सुनी होगी ऊंची आवाज हमसे कभी तुमने ,
फिर इतना गुरुर दिखाना जरूरी था क्या ,
जाना ही था तो बोल देते एक दफा ,
यूंही हमें बेवफा बताना जरूरी था क्या ।

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11 OCT 2020 AT 10:52

न की थी कदर तुमने ,
जिसे तुमने आज खोया है ,
बेशक नहीं पड़ता फर्क तुम्हें , मगर एक बार कफन उठा कर देखना तो चाहिए था ,
के तुम्हारी याद में वो कितना रोया है ।

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9 OCT 2020 AT 8:35

प्यार तो बहुत है लोगों में ,
पर किसी को करने की चाहत नहीं दिखती,
ठीक उसी तरह जिस तरह,
इंसान तो बहुत है यहां पर मगर कहीं इंसानियत नहीं दिखती ।

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22 DEC 2021 AT 10:48

गुजरती है , गुजरने दो , ठहराती है , ठहरने दो ,
वो यादें है , मैं धीरज हु , मैं सुनता हु , तो कहने दो ,
उन्हें तुम आज मत रोको , जो कुछ है साफ कहने दो ,

उन्हें तुम आज मत रोको , जो जैसा है वो रहने दो ,
कभी हमने कहा होगा , हमे भी आज सहने दो ,

मैं दिल को हार कर बैठा , वो जीते दिल की बाजी थी ,
मैं नामंजूर कर देता , वो हर लहजे में राजी थी ,
मोहोब्बत को वो अक्सर मौसमों में बाट देती थी ,
वो सावन दिल लगाती है , मुझे पतझड़ में रहने दो ,

उन्हें तुम आज मत रोको , जो जैसा है वो रहने दो ,
कभी हमने कहा होगा , हमे भी आज सहने दो ,

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20 NOV 2021 AT 18:18

एक तेरा साथ हो , फिर तो क्या बात हो ,
हो वो मौसम सुहाना या बरसात हो....

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21 SEP 2021 AT 7:39

खुद से ही खुद में जाने कहा खो रहा हूं मैं ,
जाने कैसे अपनो से अलग हो रहा हूं मैं ,
एक अरसा गुजारा है , हंस कर साथ सभी के,
फिर मायूसी में आज क्यों अकेला रो रहा हूं मैं ।

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16 AUG 2021 AT 9:59

अपने हक में लिखी आज एक कहानी कहते है ,
आपबीती पर है , अपनी ही ज़ुबानी कहते है ,

याद रहते हैं जो लम्हे जिंदगी में खूबसूरत ,
शायद उन्हें ही मोहब्बत-ए-रवानी कहते है ,

एक मोहतरमा से कर बैठे थे इश्क़ इकतरफा ,
जिन्हें आज लोग मेरी दीवानी कहते है ,

जिस जोश मे आकर कर बैठे थे ये खता ,
सायद उसे ही जिंदगी मे जवानी केहते है,

अपने हक में लिखी आज एक कहानी कहते है ,
आपबीती पर है , अपनी ही ज़ुबानी कहते है ।

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27 JUL 2021 AT 7:25

मेरा सुनना गलत है , मेरा गाना गलत है ,
मेरा बेफिक्र हो लिखपाना गलत है ,
जाने कितनो ने टोका और अपनों ने रोका ,
यहां मैं गलत हूं, या फिर ये जमाना गलत है ।

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7 JUL 2021 AT 9:29

अब कहां है मेरे पास वो ,
किसी जमाने में जो मेरे पास हुआ करती थी ,

मुझे छोड़ा मुझसे बेहतर की तलाश में ,
किसी जमाने में जिसे सिर्फ मेरी तलाश हुआ करती थी
मेरे दिल का चैन मेरे ज़हन का सुकून ,
मेरे जीने की एक आखरी आस हुआ करती थी ,

उसे लफ्ज़ो में बयां करना इतना आसान नहीं है ,
आखिरकार वहीं तो मेरे लफ्ज़ो का एकलौता एहसास हुआ करती थी ।

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