जज बनी बैठी है हमारी मोहतरमा ,
बात बात पे इश्क़ का सबूत माँगती है-
नए सफर में एकांत को चुना है मैंने,
क्योंकि
बिना गलती के बहुत कुछ सुना है मैने...!😒❤️-
छोटी छोटी बातों पर उखड़ जाती हो,
तुम लड़की हो या मेरे गांव की सड़क...!-
कैसे हो ?
मैं ठीक हूं ! तुम कैसी हो?
मैं भी ठीक हूं !
ऊपर की तीन लाइनों का सिटी स्कैन किया जाय तो हजारों ग़म,लाखों ख्वाहिशें और बेहिसाब अंत किए हुए सपने मिलेंगे और इन सब पर " मैं ठीक हूं " की ओढ़ाई हुई चादर मिलेगी..!! .....-
प्रेम_आध्यात्म_स्वयं_बह्ममांड
शाश्वत_निराकार_प्रकृती_संगीत_निसंग
दिव्य_नाद_अस्तित्व_जीवन_दर्शन
स्वयं को मिटा देने की प्रक्रिया है प्रेम! व्यक्त हो तो ब्रह्मांड बन जाए! अव्यक्त हो तो निराकार हो जाए! देह से जुड़ा प्रेम वास्तविक स्वरूप नहीं!
साकार रुप तभी शाश्वत है जब निराकार में व्याप्त हो!
प्रकृती का संगीत निसंग बह रहा हो! अपने निराकार को
साकार करता दिव्य नाद बज रहा हो और दिव्यता धारण
कर आध्यात्मिकता की ओर उन्मुख होता है!
प्रेम स्वयं को पहेचान ने की पहली सीढ़ी है जब स्वयं के
अध्ययन की ओर कदम बढ़ते हैं तब जीवन दर्शन होता है!
खुद का अस्तित्व और प्रेम एक ही रुप में समाहित हो जाता है!
जहाँ प्रेम की सीढ़ी पर कदम रखते आध्यात्मिक उन्नति के
द्वार खुल जाते है विचार बोध से ज्ञान की प्राप्ति होती है!
आत्मतत्व का अवलोकन होता है प्रेम और आध्यात्म अलग नहीं है स्व स्वरूप ही नज़र आता है!
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❝में लिखूंगा तुम्हे और बेहिसाब लिखूंगा
कुछ पंक्तियां नहीं पूरी एक किताब लिखूंगा
तुम जो ये सोचते हो की मे भूल जाऊंगा तुम्हें
माना सीधा सादा लड़का हूं, लडूंगा नहीं पर
इश्क में मिले हर दर्द का हिसाब लिखूंगा ❞
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दो नावों पर सवार थी उसकी जिंदगी
हमने अपनी नाव डुबाकर उसका
सफ़र आसान कर दिया
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"किसी का एक होकर रहना सीखो,
हजारों से बातें करना इश्क़ नहीं होता...❤️-
ब्याज भरती रहेंगी.. ताउम्र भर मेरी आँखें
तुझे देखने का उधार जो कर रखीं हैं आंखें.-
मैं तेरे हिस्से के बलाएं भी अपने सिर ले लूं ,
तुम मुझे हर हाल में महफूज चाहिए♥️-