Drx. Aizaz   (Aizaz Shahab "Zaalim")
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Joined 31 January 2019


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25 JAN 2021 AT 12:15

जो सीने में धड़कता है, उसे पत्थर बनाता चल,
नफ़रत कर सभी से और नये दुश्मन बनाता चल।

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15 SEP 2020 AT 16:08

थामा था जिसने, कभी मुश्किलों में, उसी की बदौलत, गिरे आज फ़िर से,
ज़माने से सारे, अहद तोड़ कर फ़िर, उठाई है हमने, कलम आज फ़िर से।

वही पत्थरों की सख्त रहगुजर फ़िर, सीने के बल जिसपे चलना है हमको,
जहां ज़ख़्म पहले भी खाए हैं हमने, उन्हीं मरहलों का सफ़र आज फ़िर से।।

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10 JUN 2020 AT 20:20

उसको हो जाएगी शायद नफरत मेरे किरदार से,
मैं महशर में मिलूंगा जब बगैर चेहरा-सनाशी के...

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4 JUN 2020 AT 19:45

जिसमें आ जाती है तेरी याद मुझे,
वो रात क्यूं इतनी तवील होती है..?

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2 JUN 2020 AT 16:52

कितनी मुश्किल से गुजरती हैं अब शामें,
सोचता हूं ज़िन्दगी कैसे गुज़ारी जाएगी..?

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1 JUN 2020 AT 22:55

सोचकर होती है मुझको अक्सर ही हैरत,
लोग ये कैसे इश्क़ दुबारा करतें हैं...😕

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1 JUN 2020 AT 22:09

मैं फ़िर ये चाहता हूं कि मुझको मिले फरेब मगर...
मेरी ख्वाहिश है कि इस बार भी ये तुम्हीं से मिले ।

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31 MAY 2020 AT 21:31

मुझको 'ज़ालिम' कहे है दुनिया और,
मुझमें मजलूम मर रहा है कोई...😕

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31 MAY 2020 AT 21:25

जिसकी बातों से दिल ये लगता था,
उसकी बातें अब दिल पे लगती हैं...।

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28 MAY 2020 AT 19:44

"इब्तदा-ए-मुहब्बत में जो होती है क़सक वही लज़्जत है,

हमने देखें हैं मगरूर सनम होते हुए... इज़हार के बाद..."

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