उस हसीं मुलाक़ात को क्यूँ राज़ रखा जाए
चलो इस कहानी को अब बयां किया जाए
कविता लिखूँ इसे, नज़्म या ग़ज़ल कहूँ
या हर्फ़-ब-हर्फ़ बस सुना दिया जाए
वो इतनी ख़ूबसूरती से तक रहा था चेहरा मेरा
दिल किया कि बस इसे तकने दिया जाए
बोलती निगाहें,ख़ामोश लब,मासूम चेहरा
उस सादगी को दिल कैसे न दिया जाए
धड़कने थम गयीं थीं इक पल को मेरी
इसे इश्क़ नहीं तो फिर क्या कहा जाए
इतनी नज़ाकत से रोका था उसने मुझे
कि तय हुआ,रात यहीं बसर किया जाए
जिस अन्दाज़ में थामा था उसने हाथ मेरा
दिल चाहा अब उसे ख़ुदा किया जाए
साहिल पे,ढलती रात में ये फ़ैसला हुआ
सागर सी निगाहों में दिल को डूबने दिया जाए
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