drparidhi Saini   (Dr pari)
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Writer
Joined 21 November 2018


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Joined 21 November 2018
12 MAR AT 22:30

मेरे हुस्न को मैखाना कहने वाले
मेरे दिल को तहख़ाना कहने वाले
मेरे अश्कों से वाक़िफ़ ही नहीं
मेरी आँखों को पैमाना कहने वाले

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14 FEB AT 1:11

सुलग रही थी मेरे दिल में इक अरसे से मोहब्बत
मैं राख हो गया…धुआँ अब तो तुझे पहुँचे

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23 JUL 2023 AT 14:37

उसने महज़ सूरत पे खो दिया..उस शख़्स को
जो शख़्स उसे हर सूरत चाहता था

-Aadi

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23 JUL 2023 AT 14:35

उसने महज़ सूरत पे खो दिया..उस शख़्स को
जो शख़्स उसे हर सूरत चाहता था

-Aadi

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4 JUL 2023 AT 15:19


जब भी वार हो तुम्हारी स्वतंत्रता पर,तुम्हारे सपनों पर,
जो भी आए तुम्हारे सपनों के बीच,
उसे छोड़कर, मिटाकर, कुचलकर तुम आगे बढ़ जाना…
और छीन लेना क़िस्मत से अपने हिस्से के सपने

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2 JUL 2023 AT 10:32

हमने तुम्हें सरकार क्या कहा ,तुमने तो हुकूमत ही समझ ली
फिर क्या,तुमने नज़रिया बदला और हमने सरकार बदल दी

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15 JUN 2023 AT 14:42


उस हसीं मुलाक़ात को क्यूँ राज़ रखा जाए
चलो इस कहानी को अब बयां किया जाए

कविता लिखूँ इसे, नज़्म या ग़ज़ल कहूँ
या हर्फ़-ब-हर्फ़ बस सुना दिया जाए

वो इतनी ख़ूबसूरती से तक रहा था चेहरा मेरा
दिल किया कि बस इसे तकने दिया जाए

बोलती निगाहें,ख़ामोश लब,मासूम चेहरा
उस सादगी को दिल कैसे न दिया जाए

धड़कने थम गयीं थीं इक पल को मेरी
इसे इश्क़ नहीं तो फिर क्या कहा जाए

इतनी नज़ाकत से रोका था उसने मुझे
कि तय हुआ,रात यहीं बसर किया जाए

जिस अन्दाज़ में थामा था उसने हाथ मेरा
दिल चाहा अब उसे ख़ुदा किया जाए

साहिल पे,ढलती रात में ये फ़ैसला हुआ
सागर सी निगाहों में दिल को डूबने दिया जाए

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11 JUN 2023 AT 11:34

ज़िंदगी से मेरी कोई हसरत ही नहीं
पर मौत आए तो मुझे कुछ खास चाहिए

इक हाथ में कलम हो मेरी,शायरी लिखे
इक हाथ में सफ़ेद वो लिबास चाहिए

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29 MAY 2023 AT 17:01

अपने लिए मैं इक ज़माना चाहती हूँ
ज़िंदगी को आज़माना चाहती हूँ

रस्मों की बंदिश मैं सारी खोल कर,
ख़्वाहिशों के पर लगाना चाहती हूँ

सर्द गर्मी बारिशों के भी अलावा,
इक मौसम मैं शायराना चाहती हूँ

बाद मेरे भी मेरी कविताएँ गूंजे,
मौत पर मैं फ़तह पाना चाहती हूँ

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20 MAY 2023 AT 18:05

तनहा हैं रातें तनहा सहर है, मैं देखूँ जहां तक है बस तन्हाई
चाय की प्याली से कश के धुएं तक बिखरी हुई है फ़क़त तन्हाई
रातों से रूठ गये ख़्वाब मेरे, अब मुझको डँसती बस तन्हाई
महबूब इक क्या नहीं ज़िंदगी में , तनहा सी लगती है अब तन्हाई

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