रेतीली जमीन
रेत बिखरी पड़ी थी और भूमि अपनी उँगली से उसमें design बना रही थी, देखते ही देखते वहाँ एक नाव आयी और उसकी design पर पानी की बूंदे छिटक गयी, वह होशियार थी, मालूम था कि नदी है और नौकविहार का मौसम है, उस जैसे कई सैलानी नदी का स्पर्श लेने और उसके साथ सुरीला समय बिताने आये हैं। कला को उकेरते सब भूल गयी थी, इस दुनिया की चीज़े, रिश्ते, चिंताएं, ज़िंदगी की दौड़, सबसे जैसे दिमाग छुट्टी ले अपनी ही धुन में दुनिया का लुफ्त उठा रहा था, कुदरत के करिश्मे को निहार रहा था, यहाँ की दुनिया को समझने में उसे कोई दिक्कत न थी, जब नाव ने उसकी नींद तोड़ दी और उसकी दुनिया बदली। घर जाने का समय हो गया था, कल से फिर वही सवारी करनी थी पर इस छुट्टी ने भूमि के भीतर कुछ सुकून की बूंदे भरी तो थी, रेत में बनाई कलाकृति को सच करने वो 'अपनी' दुनिया में निकल पड़ी थी।
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