dream saler   (सपनों का सौदागर (Dream_S)
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Joined 15 April 2019


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30 SEP AT 6:45

रात पायल छनकनें से दुल्हन शरमा के चल रही थी
प्रियतम से प्रथम मिलन की आग में धधक रही थी
उलझ रहे थे उसके गेसू फैल गयी थी होठों की लाली
बदन पर नाखून के निशान कह रहे थे रात की कहानी

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30 AUG AT 23:49

मतला
सीने के दामन में छुपे कुछ राज़ जगाते हैं,
निगाहों के इशारे ही नशे का अंदाज़ जगाते हैं।

लब छू ले जो कलियों को तो उठता है एक एहसास,
ख़ामोश लबों से भी वो सौ पैग़ाम सुनाते हैं।

नाज़ुक सिलवटों में छुपी जो गर्म लहरें हैं,
हर कदम में बस एक अनकहा नशा जगाते हैं।

वो शरमा के जो ख़ुद फ़रमाइश-ए-राज़ करती है,
उस फ़रमाइश के लफ़्ज़ भी सारी प्यास जगाते हैं।

मक़ता
ताबिश के कलामों में छुपा है वही जुनून,
हसीन जिस्म के शेर ही मोहब्बत की आस जगाते हैं।

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28 AUG AT 23:27


उसकी ज़ुल्फ़ों का जादू ही कुछ ऐसा था,
कि परछाइयाँ भी धूप में पली जाती।

कुछ कशिश ही ऐसे थी उसके चेहरे में,
जो दिल न देते तो ये जान चली जाती।

उसकी मुस्कान थी रोशनी रातों की,
वरना तो ज़िन्दगी अंधेरों में ढली जाती।

उसकी आँखों में था असर बेपनाह सा,
नज़र जो पड़ती तो रूह तक हिली जाती।

वो पास हो तो बहारें उतर आतीं,
वो दूर जाए तो साँस भी थमी जाती।

इश्क़ उसका था रहमत-ए-ख़ुदा जैसी,
मगर छुपाकर ये मोहब्बत जली जाती।

"ताबिश" ने भी लिख डाला दिल का फ़साना,
वरना ये दास्तान सीने में दफ़्न रह जाती।

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14 JUL AT 11:06

"शब्द की त्वचा पर उग आई हैं दरारें"

जैसे-जैसे दिन चुप होते जा रहे हैं,
रातें अब और भी ज़्यादा बोलने लगी हैं —
लेकिन अब वे किससे कहें?

पुरुषों की आत्माएँ अब शब्द नहीं रचतीं,
वे केवल उत्तर देती हैं।
प्रश्न पूछना, अब स्त्रियों के हिस्से रह गया है....

शेष रचना कैप्शन में 👇

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9 JUL AT 18:23

उस रात की बात न पूछ सखी,
जब चाँद भी चुप था, मौन गगन,
साजन ने बाँहों में भरकर,
छू लिया मेरा हर स्पंदन।

जलधार में भीगे थे तन,
पर मन प्यासा-सा तड़प रहा था,
उसके स्पर्श ने धीरे-धीरे,
हर बंधन को खोल दिया था।

होंठों से अधरों की बात हुई,
साँसों से साँसें मिलने लगीं,
मैं उसके आलिंगन में खोई,
और वह मुझमें ढलने लगा कहीं।

ना शब्द रहे, ना और कोई गीत,
बस देह और आत्मा एक हुई,
प्रेम की वह निश्छल धारा,
मुझसे होकर साजन तक गई।

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8 JUN AT 8:40

तेरी यादों का मौसम कुछ यूँ छा गया,
दिल भीगता रहा, पर किसी को पता न चला।

तेरे लफ़्ज़ों की खुशबू अभी तक है महकी,
वो ख़त भीग गए, मगर जज़्बात सिला न चला।

मैं तन्हा था मगर तन्हाई भी शरमा गई,
जब तेरा नाम लिया, तो कोई गिला न चला।

तू चुप रही तो मेरी साँसें भी थम सी गईं,
तेरी ख़ामोशी का दर्द, कोई दवा न चला।

तू मिल जाए फिर कुछ और न चाहूँ मैं,
तेरे बिना मेरा ताबिश कहीं चला न चला…

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24 MAY AT 23:02

मैं ज़िंदगी भर सफ़र करता रहा,
हर सड़क, हर गली, हर राह, हर मंज़िल…
बस पहुँच न सका तुम तक।

और तुम तक पहुँचने की चाह,
जाने कितना और सफ़र तय कराएगी…
पर ये वादा है खुद से —
कि मेरे क़दम रुकेंगे नहीं,
जब तक मैं न पहुँचूं तुम तक।

चाहे चलते-चलते इस ज़िंदगी की हो जाए शाम,
और आख़िरी में भले ही कुछ पल के लिए
मैं तुम्हारे ज़ानू पर अपना सर रख
चाँद बची हुई साँसे ले लूं…
रुकूँगा नहीं जब तक मै न पहुँचूं तुम तक..

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4 MAY AT 9:50

मुस्कुराता हुआ आदमी फिर वही सोमवार......

वो हँसी की चादर ओढ कर ग़म को छुपा रहा है
जिम्मेदारियों का बोझ लिए वो काम पर जा रहा है
जानता है वो कि सहना हैं वहीं तानें और ज़लालत
सबकी आशाओं के बोझ तले फिर भी मुस्कुरा रहा है

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29 APR AT 16:07


मैं चलूँ तो कोई साथ दे
मैं रुकूँ तो वहाँ कोई हाथ दे
मेरा कारवाँ कहीं बिछड़ गया
मुझे हमसफ़र की तलाश है......

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26 APR AT 23:10

मैं उस दिन मारा गया था जब उसने साड़ी पहन कर बिंदी लगाई थी,
अपनी ज़ुल्फ़ें खोलते हुए मेरी नजरों से अपनी नजरें मिलाई थी
एक पल को साँस रुक गई मेरी जब वो मेरी तरफ़ देख कर मुस्कुराई थी,
दिल की धड़कनें रुक गईं जब उसने हाथों में चूड़ियाँ खनकाई थीं
मै उस पल से उसका हो गया जब उसने अपनी मांग मेरे नाम से भर दुनिया से छुपाई थी।

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