मैं चलूँ तो कोई साथ दे
मैं रुकूँ तो वहाँ कोई हाथ दे
मेरा कारवाँ कहीं बिछड़ गया
मुझे हमसफ़र की तलाश है......-
चरागों से मैं मुतासिर नहीं, मैं जुगनुओं क... read more
मैं उस दिन मारा गया था जब उसने साड़ी पहन कर बिंदी लगाई थी,
अपनी ज़ुल्फ़ें खोलते हुए मेरी नजरों से अपनी नजरें मिलाई थी
एक पल को साँस रुक गई मेरी जब वो मेरी तरफ़ देख कर मुस्कुराई थी,
दिल की धड़कनें रुक गईं जब उसने हाथों में चूड़ियाँ खनकाई थीं
मै उस पल से उसका हो गया जब उसने अपनी मांग मेरे नाम से भर दुनिया से छुपाई थी।-
जो बन-संवर के सामने आ बैठ गई है वो,
मैं अपनी धड़कनें गिनूं या उसकी चूड़ियाँ गिनुँ।
ज़ुल्फ़ इस अन्दाज़ में बिखरा कर बैठ गई है वो,
मैं अपनी उलझनें संभालूं या उसके गेसुओं को बुनूं।
दुपट्टा तो उसका फिसल कर सीने से ढल गया,
मैं ईमान अपना बचाऊं या बस उसे देखता रहूंl-
"लबों से जांघों तक"
वो लम्हा...
जब उँगलियाँ मेरे बदन के नक़्श पढ़ने लगती हैं,
और साँसें हर मोड़ पे
एक नया मोर्चा बन जाती हैं।
तेरी हथेलियों की गर्मी
जैसे मेरे वजूद में
आग के हल्के से फंदे कसे,
और मैं...
रूह नहीं, बस जिस्म बन जाऊँ
तेरे लफ़्ज़ों की तरह बेक़रार।
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बदलते तुम और थमता मैं ....
कभी तुमने खुद को बदला, कभी हालात ने तुमको ढाला,
मैं रहा वही का वही, हमेशा तुमको चाहने वाला।
तेरे रंग में रंगने की ख्वाहिश आज भी बाकी है,
तेरे हर फ़ैसले पे चुप रहकर तुझमें ढलने वाला।
वो लम्हे जब तू खफा था, हम खुद से भी डरते थे,
तेरे लब पे मुस्कान रहे, बस यही सोचने वाला।
तू चाहे बदल जाए, मैं अपनी रूह नहीं बदल सकता,
तू है मेरी दुनिया, मेरा खुदा, मेरा उजाला।
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वो किसी तहज़ीब की तस्वीर लगती है,
साड़ी में लिपटी हुई तासीर लगती है।
लब हिले तो जैसे शायरी बुनने लगे,
ख़ामुशी भी खुद कोई तहरीर लगती है।
पलकों पे रख लूँ या दिल में छुपा लूँ उसे,
वो तो हर इक सज़्दा-ए-तक़दीर लगती है।
ज़ुल्फ़ों में उसकी है शामों की रवानी भी,
रात की गहराई की ताबीर लगती है।
कंगन की छन छन में रस का समुंदर है,
हर अदा उसकी मुझे ताज़ीर लगती है।
अब उसी की सूरतें हैं नींद में भी ताबिश,
हर घड़ी आँखों में बस तसवीर लगती है।
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तेरे लफ़्ज़ों की तपिश ने दिल जला डाला,
बिन चिंगारी के भी दिल राख हो गया आला।
हर तसव्वुर में बसी है तेरो सी सूरत,
तेरा होना भी नहीं, फिर भी है क्या हाला।
हर साँसों में तेरा नाम ही गूँजा अब तक,
तेरा असर है या कोई रूह का उजाला।
ना समझ पाए कभी, ये इश्क़ था या तूफ़ाँ,
हर तरफ़ फैला वही, हर सिम्त था जोशाला।
तू गया तो रह गईं खामोशियाँ वीराँ,
बोलने वाली ज़ुबाँ, अब बन गई ताला।
"ताबिश" को ना मिला सुकून उस दीदार में,
जिस नज़र ने छू लिया और क़हर ढा डाला।-
"वो तेरी टूटी हुई चूड़ी का टुकड़ा है,
जो आसमान में चाँद बन कर चमकता है।
हर रात मेरी तन्हाई में वो झिलमिलाता है,
जैसे तू दूर होकर भी मेरे पास आने तड़पता है।"
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"ज़ुल्फ़ों में घुला मेरा इज़हार"
तेरी ज़ुल्फ़ें…
जब मेरे खड़े हुए हिस्से पर गिरती हैं,
तो ऐसा लगता है
जैसे रात की नमी
सुबह की तलब को छू रही हो।
मैं उन लटों को पकड़ता हूँ,
धीरे-धीरे लपेटता हूँ
अपने उसी हिस्से के इर्द-गिर्द
जो अब तेरे लम्स से थरथरा रहा है....
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"तेरा सामना"
वो आई—
ढीली-सी शर्ट में,
जिसके नीचे कुछ नहीं था
सिवाय उसके नर्म, नुकीले इरादों के।
मैं खड़ा था…
सिर्फ़ जिस्म से नहीं,
ख़्वाहिश से भी..
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