वो होता सिर्फ मेरा, तो मुझे और कोई मलाल ना था,
पर उस जैसा इश्क़ का कोई और दलाल ना था,
उसके लिए मोहब्बत सिर्फ एक दौलत की तराजू थी,
फिर भी ना जाने क्यों मुझे उससे चाहत की आरज़ू थी,
ना जाने कौन से इश्क़ का पर्दा इन आँखों में पड़ा था,
वो करता रहा बेवफाइयाँ मेरी ही नज़रों के सामने, और ये दिल फिर भी मौन खड़ा था,
मैं हर बार कहती ये खुद से, कि शायद उसकी ये गलती अब आखिरी होगी,
पर वो तो उसकी गलतियों का एक शुरुआती सिलसिला था,
पर कब तक बांधती, तेरे झूठ की पट्टी अपनी इन आँखों पर
इन आँखों को कभी ना कभी तो खुलना था,
चढ़ा था जो तेरे झूठे इश्क़ का खुमार मुझ पर, वो भी तो एक दिन उतरना था
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