गीत
शब्द ही शृंगार मेरे, शब्द ही संधान है।
शब्द ही आधार जग के, ब्रह्म के प्रतिमान हैं।।
शब्द से ही गीत बनते, शब्द मन की साधना।
शब्द नित ही प्राण सबके, ओम नित आराधना।।
शब्द से पहचान मेरी , सिंधु अंतस प्रीत है।
है यही अनमोल हिय के , प्राण की नित जीत है।।
जो कहो वो सत्य होगा , ईश का ही मान है।
शब्द ही शृंगार मेरे , शब्द ही संधान हैं।।
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