टुकड़ो-टुकड़ो में रोज मुझसे,
मिलने वाली ऐ सुन।
किस्तों में बिखरता हूँ रोज,
तेरी यादों में,
कभी आ कर अपने हाथों से,
इन टुकड़ों को चुन।
टुकड़ो-टुकड़ो में रोज मुझसे,
मिलने वाली ऐ सुन।
गर मिलना मुमकिन नही,
उम्र भर के लिए,
तो फ़िर मुझ में उतर कर,
इस क़दर ख़्वाब ना बुन।
टुकड़ो-टुकड़ो में रोज मुझसे,
मिलने वाली ऐ सुन।- ©Dr. Vineet Kr. Goswami
19 JAN 2019 AT 10:59