Dr. Vineet Kumar Goswami   (©Dr. Vineet Kr. Goswami)
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Joined 4 May 2018


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Joined 4 May 2018

जिस चौखट पर बचपन गुजरा,
आज वहाँ बस सन्नाटे ही बिखरे है।
फिर भी साझा आँगन कायम रखने को,
हमने खून जलाया वर्षों तक,
तब जा कर हम निखरे है।
परिवारों को जोड़ने वाले,
अक्सर अंदर-अंदर बिखरे है।

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YESTERDAY AT 1:01

घर में हूँ घर ढूँढ़ रहा हूँ,
मैं कुछ बेहतर ढूँढ़ रहा हूँ।
घर की दीवारों के नीचे,
बुजुर्ग लगा कर चले गये,
वो नीवं का पत्थर ढूँढ़ रहा हूँ।
अपनों के बेगाने पन से,
कभी ना झीनी हो जो,
ऐसी चादर ढूँढ़ रहा हूँ।
मैं कुछ बेहतर ढूँढ़ रहा हूँ।
बोझल है अब तन-मन सब,
थकती काया के पैबंदों को,
छांव का पीपल ढूँढ़ रहा हूँ।
मैं कुछ बेहतर ढूँढ़ रहा हूँ।

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14 SEP AT 20:49

यादों की चौखट पर जब,
गुजरे लम्हें दस्तक़ देते हैं।
नीदं- चैन सब खो जाता है,
खोये-खाये हम रहते है।
भूख प्यास सब मिट जाती है,
क्या इश्क़ इसी को कहते है।
यादों के दरवाजों पर अब,
बिखरे- बिखरे लम्हें रहते है।
आँखों के दरिया में भी अब,
गुजरे लम्हे बहते है।
नासुकूँ की जिंदगी में भी,
सुकूँ से अब हम रहते है।
क्या इश्क़ इसी को कहते है।

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Life is reflection of our thoughts and deeds thereof.
एक दिन तुम्हारे ही कर्म तुमसे मिलने ज़रूर आएंगे, बस उस दिन हैरान मत होना।

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29 AUG AT 14:39

शादी-ब्याह, सब फ़ुर्सत की बात है, कई बार जिम्मेदारियाँ जवानी को खा जाती है। जब भी तुम मिले मैं जिम्मेदारियों से घिरा था, फ़ुर्सत में मिले होते तो शायद कुछ और बात होती।

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29 AUG AT 14:32

जिनको मैं नही मिला उनकी
बात नही, मुद्दा ये है कि
जिनको मैं हासिल था
वो भी मुझे संभाल कर
नही रख पाये...

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25 AUG AT 13:10

तेज अब भी सूरज सा बाकी है मुझमें,
मैं वक़्त की गर्द में कहीं छुप सा गया हूँ,
मैं वो खज़ाना हूँ हकदार जिसकी दुनियाँ है,
मेरी तलाश में कोई तो निकलो यारों।
सिक्का नदी में फेंकने से कीमत कम नही होती,
गोताखोर बीन कर वही सिक्का,
अपना घर चलाता है।
सिक्का, सिक्का है,
डूबने पर भी काम आता है।
किसी की रोज़ी चलाता है,
किसी का चूल्हा जलाता है।
फैक देना या गिर जाना,
जब सिक्के की कीमत नही घटा सकता।
आदमी तो आदमी है,
फिर कैसे मान लूँ मै,
टूटा हुआ आदमी किसी के काम नही आ सकता।
मेरे लिये नही, अपने लिये ही सही,
कोई तो मुझे उपयोगी बना लो यारों,
मैं अंधेरे में हूँ,
कोई तो मुझे मेरे अँधेरों से निकालो यारो।

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22 AUG AT 16:51

आसान नही यूँ ही बेवज़ह दुनियाँ का मोह त्यागना, मेरे किस्से के अधिकतर किरदार या तो बेवफ़ा निकले या फिर गद्दार निकले...

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22 AUG AT 12:34

संस्कार विहीन व्यक्ति के हाथ में पैसा-संपत्ति कुछ ऐसे है जैसे बंदर के हाथ मे उस्तरा। मूल्यविहीन अमूल्य जीवन दरिद्रता और पतन का एकमात्र कारण है।

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22 AUG AT 11:49

प्रेम और मोह एक छलावा है, एक बाधा है। सारे सांसारिक, भौतिक और शारिरिक विकारों की जड़ है प्रेम। निष्प्रेम और निर्मोही रह कर जीवन पथ में कर्तव्य मार्ग पर डटे रखना की सच्ची ईश्वर भक्ति है और मोक्ष का मार्ग है। निष्प्रेम और निश्वार्थ कर्म ही मोक्ष का द्वार है। अपनी पात्रता सुनिश्चित करें, ईश्वर ज़रूर मिलेंगे।

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