{6}हमारे मजहब का लड़का कॉन्वेंट से आकर भी उर्दू अरबी सीख लेता है, और हमारी धार्मिक पुस्तक पढ़ने बैठ जाता है,और आपका बच्चा न हिन्दू पाठशाला में पढ़ता है, और संस्कृत तो छोड़िये,शुद्ध हिंदी भी उसे ठीक से नहीं आती।
*{7}आपके पास तो सब कुछ था, संस्कृति, इतिहास, परंपराएं।
आपने उन सब को तथाकथित आधुनिकता की अंधी दौड़ में त्याग दिया, और हमने नहीं त्यागा बस इतना ही भेद है।
*{8}* आप लोगों को तो स्वयं ही तिलक, शिखा आदि से और आपकी महिलाओं को भी माथे पर बिंदी, हाथ में चूड़ी और गले में मंगलसूत्र इन्हें धारण करना अनावश्यक लगने लगा।
*{9}अपनी पहचान के संरक्षण हेतु जागृत रहने की भावना किसी भी सजीव समाज के लोगों के मन में स्वत:स्फूर्त होनी चाहिये, उसके लिये आपको अपने ही लोगों को कहना पड़ रहा है।
*{10}जरा विचार कीजिये कि यह कितनी बड़ी विडंबना है,यह भी विचार कीजिये कि अपनी संस्कृति के लुप्त हो जाने का भय आता कँहा से है।और असुरक्षा की भावना का वास्तविक कारण क्या है?
हम हैं क्या?
{11}आपकी समस्या यह है कि आप अपने समाज को तो जागा हुआ देखना चाहते हैं, किंतु ऐसा चाहते समय, आप स्वयं आगे बढ़कर उदाहरण प्रस्तुत करने वाला आचरण नहीं करते।
जैसे बन गए हैं, वैसे ही बने रहते हैं, आप स्वयं अपनी जड़ों से जुड़े हुए हो, ऐसा दूसरों को आप में दिखता नहीं है, और इसीलिये आपके अपने समाज में तो छोड़िये, आपके परिवार में भी कोई आपकी धार्मिक बाते सुनता नहीं, ठीक इसी प्रकार आपके समाज में अन्य सब लोग भी ऐसा ही आपके जैसा डबल स्टैंडर्ड वाला हाइपोक्रिटिकल व्यवहार (शाब्दिक पाखंड) करते हैं, इसीलिये आपके समाज में कोई भी किसी की नहीं सुनता, *क्या यह हमारी त्रुटि है?
{12}आपने अपनी दिनचर्या बदली, एक समय था, जब आपकी वेशभूषा से कोई भी बता देता था कि ये मारवाड़ी/वैश्य परिवार से है,आप लोगों ने अपनी वेशभूषा छोड़ी, आपने अपना खान-पान बदला,पिज़्ज़ा बर्गर चाऊमीन मोमोज आपके लिए आम बात हो गई,शराब व मांसाहार भी आदतें हो गईं।
कृपया इस बारे में जरा गहन चिंतन करें?
सोच बदले स्वयं के घरों से डॉ साहब के साथ-
एक मुस्लिम लेखिका ने हिन्दू समाज के लोगों के गालों पर कैसा करारा थप्पड़ मारा है,जरा पढिये
१.आपकी विवाहित महिलाओं ने माथे पर पल्लू तो छोड़िये,साड़ी पहनना तक छोड़ दिया,दुपट्टा भी गायब? किसने रोका है उन्हें? हमने तो तुम्हारा अधोपतन नहीं किया?*हम मुसलमान तो इसके जिम्मेदार नहीं हैं?
२.तिलक बिंदी तो आपकी पहचान हुआ करती थी न?
तुम लोग कोरा मस्तक और सूने कपाल को तो अशुभ,अमंगल और शोकाकुल होने का चिह्न मानते थे न?
आप लोगों ने घर से निकलने से पहले तिलक लगाना तो छोड़ा ही, आपकी महिलाओं ने भी आधुनिकता और फैशन के चक्कर में और फॉरवर्ड दिखने की होड़ में माथे पर बिंदी लगाना तक छोड़ दिया,यहाँ मुसलमान कहाँ दोषी हैं
३:आप लोग विवाह-सगाई जैसे संस्कारों में पारंपरिक परिधान छोड़कर लज्जाविहीन प्री-वेडिंग जैसी फूहड़ रस्में करने लगे,और जन्मदिवस, १जैसे अवसरों को ईसाई बर्थ-डे और एनिवर्सरी में बदल दिया॥
४.हमारे यँहा बच्चा जब चलना सीखता है, तो बाप की उंगलियां पकड़ कर इबादत/नमाज के लिए मस्जिद जाता है, और जीवन भर इबादत/नमाज को अपना फर्ज़ समझता है, आप लोगों ने तो स्वयं ही मंदिरों में जाना छोड़ दिया,जाते भी हैं तो केवल पाँच दस मिनट के लिए तब, जब भगवान से कुछ मांगना हो,अथवा किसी संकट से छुटकारा पाना हो,अब यदि आपके बच्चे ये सब नहीं जानते - करते कि मंदिर में क्यों जाना है?
ईश्वर की उपासना उनका कर्तव्य है?*तो क्या ये सब हमारा दोष है?
*{5}आपके बच्चे कान्वेंट से पढ़ने के बाद पोयम सुनाते हैं,तो आपका सर गर्व से ऊंचा होता है,जबकि होना तो यह चाहिये कि वे बच्चे नवकार मंत्र या कोई श्लोक याद कर सुनाते तो आपको गर्व होता।
इसके उलट,जब आज वे नहीं सुना पाते तो न तो आपके मन में नही इस बात पर आपको कोई दुःख खेद है।
हमारे घरों में किसी बाप का सिर तब शर्म से झुक जाता है, जब उसका बच्चा रिश्तेदारों के सामने कोई प्रार्थना नहीं सुना पाता,हमारे घरों में बच्चा बोलना सीखता है,तो हम सिखाते हैं कि बड़ों से सलाम करना सीखो, और आप लोगों ने प्रणाम और नमस्कार को हैलो हाय से बदल दिया,तो इसके दोषी क्या हम हैं?आगे भी
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मैं देख रहा हूँ शायद
तुम बदल जाओ ॥
मैं सोच रहा हूँ शायद
तुम लौट आओ ॥
उम्मीद लागा तो रखा हूँ
कहीं मैं निराश ना हो जाऊ॥
आस लगा रखा हूँ कहीं
मैं व्यास ना बन जाऊँ ॥
😊😆
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मैं कहाँ तुम्हें पाने के लिए मैं कहाँ तुम्हें खोने के लिए लिखता ॥
मैं लिखता हूँ बीतें हुए लम्हे को भुलाने के लिए ॥
अब ना उम्मीद रहा ना एतवार रहा , बस गमों का अम्बार रहा॥
वह ग़म का साया हावी ना हो, उस परछाई के लिए लिखता ॥
जो मेरा प्रयास सफल नहीं हुआ , उस नाकामी के लिए लिखता॥
शायद कमी होगी मेरी रचना में , उस त्रुटी को पिरोने के लिए लिखाता॥
सही रचनाएँ पढ़कर याद कर जाओ, उस बितें हुए लम्हें के लिए लिखता॥
था मैं इसी युग में प्रेमी तुम्हारा , उन पलों को सँवारने के लिए लिखता॥
सीख रहा हूँ झूठ लिखने का हुनर , उन बीतें लम्हें को
याद दिलाने के लिए लिखता ॥
अब मुझसे और झूठ लिखा ना जाए, सच है
मैं तुम्हें रुलाने के लिए लिखता ॥
❤️ दिल के दर्द डॉक्टर साहब के साथ 😊-
सोचा मैं सच्चाई बता दूँ दिल ❤️ की अपनी गहराई बता दूँ ॥
नाप लेना तुम मीठें शब्दों से कितना मेरा प्रेम गहरा कितना तुम्हारा ॥-
मित्र ने कहाँ मुझसे मेरा दर्द तुम हर जाओ, पीड़ा 😩 बहुत होती है यार जीने की आशा ना रही ॥
ऐसा मत सोचों ऐ मेरे मित्र अभी तो यह संसार देखना बाक़ी है , शोक 😩 ना मना किसे के जाने पर अभी तो तुम्हारे जीवन में बाहर बाक़ी है ॥-
भूल गए हम अपनापन निभान क्योकि अपनापन केवल स्वप्न बन बैठा॥
निभाया था मैंने अपनापन वह वास्तविक भी था सच्चा भी था ॥
मुझे पता ना था दुनियादारी क्योकि अब अपनापन का कोई मोल नहीं॥
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बहुत लोग कहते है आतंकी का मज़हब नहीं होता ,
लेकिन हर वार आतंकी ने अपना मज़हब
दिखया है बस हिंदू को समझाया है मगर हिंदू
कभी समझ ना पाया है ॥तुम्हें जाती में बाटने
वाला कुछ महान नेता बन जाता है जब
जब इस्लामिक आतंकी ने तुमसे क्या पूछा
तुम्हारा जातक्या है किस प्रांत के हो उसके
लिय बस यह काफी है की तुम हिंदू हो अगर
मुस्लिम हो तो कटने का सबूत दिखाओ
और क़लमा पढ़ों तुम्हें नहीं मारेंगे॥देश में रहते
है बहुत ग़द्दार जो इस्लाम के नाम पर आतंकी
को पनाह देते है अपने देश के हिंदू भाई को इस्लाम के
नाम पर जेनोसाइड करवाते है कब तक तुम हिंदू कटतें
रहोगे कब तक तुम बटतें रहोगे॥अब नहीं सम्भलोगे
तो कब सम्भलोगे मेरे भाई॥चुन चुन कर मारों उन गद्दारों
को जो इस्लाम का नाम पर आतंक फ़्लाये और मिटा दो
उसके वंश का नाम जो इस्लाम के नाम पर आतंकी बन जाए॥
एक ही मज़हब को होता है बस तुम लोग मार खाते
हो भाईचारा के नाम पर॥मैं नमन करता हूँ उन सपूतों को
जिसने मरना पसंद की मगर अपना धर्म हिंदू बताया॥
व्यर्थ नहीं जाएगा उन हिंदू भाइयों की बलिदानी,ऐसे
एक एक आतंकी को जहन्नुम पहुंचाया जाएगा और उन
गद्दारों की भी जिसने उन्हें पनाह दिया और उनके आकाओ
सैंग उसका पूरा वंश॥मुझे गर्व है अपने हिंदू होने पर
अब सोये हुए भी हिंदू जाग उठेंगे और ऐसे इस्लामिक
आतंकी को उन्हें सबक सिखायेंगे॥
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हिंदी , मराठी , गुजराती , तमिल , बंगाली कौन सी भाषा बोलते हो ये नहीं पूछा ... गुजरात , महाराष्ट्र , तमिलनाडु , कर्नाटक , बंगाल , बिहार , यूपी कहां से हो ये भी नहीं पूछा .... दलित , ब्राह्मण , जाट, ठाकुर , बनिया , यादव ,OBC क्या हो ये भी नहीं पूछा ...। सिर्फ हिन्दू थे ये उनके लिए काफी था। और हम यहां जाति , प्रांत , भाषा के लिए लड़ रहे है।
पहलगाम आतंकी हमले में शहीद हुए सभी हिंदुओं को भावपूर्ण श्रद्धांजलि 🙏🙏🙏🙏-
عید کا پیغام پیارا ہے، عید کی مٹھاس پیاری ہے۔
میٹھی سیویا، میٹھی ڈش، یہی عید کی پہچان ہے۔
سفید لباس اور سفید پوشاک پہنے سبھی لوگ عید الفطر کا تہوار ایک ساتھ مناتے ہیں۔
امن کا پیغام دینا اللہ کا حکم ہے۔ دشمن کو بھی گلے لگانا اور اسے عید مبارک۔
میں اور میری اسکن کیئر فیملی آپ کو عیدالفطر کی خوشیاں-