हे वासुदेव हे नारायण हे जग के पालन करता॥ क्या छुपाऊँ अपना दर्द तुमसें आप तो ज्ञाता हो सर्वदाता हों॥देते हो सभीं को उसके कर्तव्य अनुसार फल अब मेरा भी उद्धार करो॥ मैं सकारात्मक कर्तव्य निभाता हूँ सारा फल आप पर छोड़ जाता हूँ॥जितना देते हों ख़ुश हो जाता हूँ ना देते फिर भी खुश रह जाता हूँ॥ बस मुझे इतना तो देना प्रभु मैं भी भूखा ना रहूँ कोई साधु भूखा ना जाए॥ ॐ नमों भगवते वासुदेवाय ,वासुदेवाय ,वासुदेवाय🙏🏼
मन हल्का हो जाता है कुछ सुन्दर रचना लिख जाने से ॥ दिल को भी राहत मिल जाता है थोड़ा तेज़ धड़कने से॥ मन तो फिर भी शांति से निन्द्रा का आनंद के लेता हैं कुछ चिंतन को कमने से॥ मगर दिल तो दिल ही है इसे कभी आनंद नहीं आता कुछ भी मंथन कम करने से॥ जब लक्ष्य मिल जाती है स्वयम् के करमों से फिर थोड़ी से दिल को राहत मिल जाता है अधिक धड़कने से॥
स्वयम् पर विश्वास रख ग़ैर से कभी आस ना रख॥ यही है कलियुग के रीत प्यारे सतयुग जैसा प्यास ना रख॥ तुम अपना कर्तव्य निभाना सतयुग ही जैसा, बस आस तो मिलेगा हमेशा कायुग जैसा॥ चिंता की कोई बात नहीं तुम्हें अपने आप ईश्वर की असीम कृपा मिलेगा सतयुग जैसा॥ मंगल हो आपके जीवन में यह डॉक्टर साहब का विनम्र विनती है मेरा क्या है मैं पहले भी वैसा ही था जाते समय भी वैसा ही रहूँगा।😍😍
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हर लम्हे बिता दूँ बिन तेरे हर ग़म को सहन कर जाऊँ बिन तेरे॥ स्वार्थी लोग बहुत है साहब जो स्वार्थ के लिए बन्धन रख जाता॥ ग़म दुःख में कभी साथ ना निभाता सुखद पल में नया रिश्तेदार बन जाता॥ कलियुग का युग है साहब हर कदम सोच कर ही निभाए दुःखी पल के ही समय सब ज्ञात हो जाए॥
भुला दो उन दुश्मनी को जो जीवन में आया था दरकिनार कर दो उन मनमुटाव को जो कुछ पल के लिए सताया हैं॥ आती रहती है जीवन में ऐसी परिस्थितिया जिसे हमें मिलकर मिलनसार बनाना हैं॥ होली हैं मिलनसार भाईचारा का प्रतीक इसमें ख़ुशिया मनाए॥ आओ सभी मिलकर इस रंगीले त्यौहार को रंगों से एक दूसरे को रंगीला कर जाए॥ मैं और मेरे स्किन केयर परिवार के तरफ़ सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ॥
ग़म को सहन कर जाऊँ किंतु तुम्हें नहीं॥ काँटे भरे लम्हे दिया है तुमने जो दर्द अभी भी है॥ भले तुम भूल जाओ हमें तो वह पल ही रुलाती है॥ सुन्दर था जीवन अकेला ही सहारा ही बेसहारा बनाया॥
आज के युग में सम्मान वही पाता है जो स्वयम् के जीवन को गुणवान बनाता है॥ इस धरती पर है केवल दो तरह के प्राणी जो बुद्धिजीवी कहलाते है॥ मिलियनों के जनसंख्या में कुछ ही लोगों पूजे जाते हैं॥ क्यों नहीं बनतें कुछ लोगो में से तुम जो मिलियन में से ही निकलकर आते है॥ माना कि सब बुद्धिजीवी बन नहीं सकते मगर स्वयम् को ज्ञानवंतित बनाकर अपना जीवन सहित दूसरे का भी जीवन खुशहाल बनाते है॥ वही प्राणी आज के युग में सम्मान का भागीदार बन जाते हैं॥ सद्भाव विचार बस डॉक्टर साहब के रचना के साथ॥