Dr. Vijay Siwach   (Vijay Siwach)
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Joined 8 March 2021


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Joined 8 March 2021
28 APR AT 5:05

पढ़कर एक किताब ख्याल आया की वास्तव मे एक कहानी चल रही है,
किसी का बचपन, किसी का बुढ़ापा और किसी की जवानी चल रही है ।।

किसी को मासूम की भूमिका मिली है, चालबाजी की किसी को यहाँ,
क्या अजीब नही किसी पर जुल्म होना, और किसी पर मेहरबानी चल रही है ।।

बात इकरार इंकार की हजम कर गया कोई, किसी ने निकाल फेंकी है,
कहानी में कहानी कभी रानी सिपाही चल रही है, कभी राजा नौकरानी चल रही है ।।

वो जो किताब पढ़ी मैने, उस कहानी की इस कहानी में भूमिका समझूं भी तो,
वो कहानी इस कहानी में एक पात्र की कहानी में कहानी चल रही है ।।

पात्र कितने हैं इस कहानी में की कोई जान भी तो नही पाएगा कभी,
यहाँ तक पढ़कर आपको समझ आया क्या,
यहाँ कहानी आप ही की है या बेगानी चल रही है ?

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12 APR AT 2:14

साहस बताने को थी चांद तारे तोड़ने की बात,
वर्ना प्रेम है अगर तो इंसान से फूल भी ना टूटे ।।

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7 APR AT 12:30

हाँ लालसा तो बस दर्शन की है,
मुलाकात तो मुझसे नहीं होती ।।

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9 JAN AT 0:13

मुझे खुशी के आंसू भी नहीं आते,
इतना कठोर हूं,
मैं दुःख महसूस नहीं कर पाता,
इतना कमजोर हूं ।
मैं, मैं हूं,
सच मे,
मैं, कोई और हूं ।।

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7 DEC 2024 AT 4:26

चलकर जरा सा दूर फिर लौटने का ख्याल भी,
पहले की गई शिकायत, और फिर मलाल भी ।।

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8 NOV 2024 AT 5:29

आज काम से छुट्टी ली थी,
सुबह धूप में सज संवर बैठे,
पर फुर्सत के दो चार पलों में,
हम तुमको याद कर बैठे ।।

पहले स्मरण हुआ चेहरा तुम्हारा,
फिर हसीं, फिर बातें,
यूं हुआ ख्याल गहरा तुम्हारा,
और अपनी यादाश्त से उलझ बैठे,
क्यों फुर्सत के दो चार पलों में,
हम तुमको याद कर बैठे ।।

सुबह जाते जाते दोपहर भी गई,
धूप बढ़ी, चढ़ी, और उतर भी गई,
किसी ने पास में कहा की पांच बज गए,
मेरी नजरें घड़े पर ठहर ही गई,
समझ आया ही नहीं छुट्टी किधर ही गई ।।

रह तो गई कुछ बात सी,
एक और हो ऐसी ही मुलाकात सी,
एक और छुट्टी चाहिए, एक तो बर्बाद कर बैठे,
हम फुर्सत के दो चार पलों में,
जो तुमको याद कर बैठे ।।

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1 NOV 2024 AT 1:53

राम का राम हो जाना, बताया नहीं समझाया जाए,
बाहर तो ठीक है, पर अंदर भी दीप जलाया जाए ।

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30 OCT 2024 AT 18:41

@Ghar se dur.
एक मन है मन से दिपावली मनाऊ,
एक मन है अकेला रहने का,
एक मन है अपनों की सुनूं अपनी सुनाऊं,
एक मन है किसी को कुछ ना कहने का,

एक मन है पटाखे खरीद लाऊं,
एक मन है शोर से दूरी का,
एक मन है घर चला जाऊं,
एक मन है नाम दे दूं मजबूरी का ......

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22 OCT 2024 AT 19:51

पता नहीं क्या है, पर जो भी है,
बहुत गहरा सा नजर आता है,
बंद आंखों से भी उनका चेहरा सा नजर आता है ।
जब वो सामने से निकलते हैं,
बस वो चलते हैं बाकि सब ठहरा सा नजर आता है ।।

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19 OCT 2024 AT 17:26

शहर नया था, लोग पुराने लगे,
पता भी पूछा तो मुस्कुराने लगे ।।

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