मुझ पर तेरा इतना भरोसा
जितना खुद पर खुद मैंने नहीं किया
बातें तो तुझमें कई सुन्दर है
पर उन सबमे यही है सबसे अच्छी बात तुम्हारी-
पथरीला है पथ चहुओर घौर अन्धेरा
एक एक डग भरता हैं डरा सा मन मेरा
आकाश में सांझ का मद्धम उजियारा
पर दिल में है उम्मीद,आएगा मेरा सवेरा
बढ़ता चल , धीरे ही सही बस आगे बढ़
कोहरा है घना ,रास्ता है तनिक धुंधला
छोटा सा राह में टिमटिमाता दिया दिख जाएगा
कदमकदम बढ़ मंज़िल का निशां मिल जाएगा-
ज़माना हुआ ,आईने में खड़े इस शख्स के गले लगे हुए
इससे बतियाये,बेखौफ ठिठोली किये हुए
शिक़वे शिकायतें तारीफें खुद की ख़ुद से किये हुए
यारा एक अरसा हुआ मुझे ख़ुद से मिले हुए-
कुछ तरसते है की कोई एक नज़र जी भर प्यार से देख ले
कुछ नाशुक्रे उस प्यार भरी नज़र को एक नज़र नहीं देखते-
बस इतना सा ही मिला है तू मुझे
शिद्दत से महसूस करने को
ख़ुद में शामिल करने को
तेरे बहुत थोड़े से मिले हुए' तुम 'का
" मैं "मेरा हर हिस्सा बहुत अच्छे से
ख़याल रखते हैं न
तेरे छुए हुए मेरे हर पल
हर लम्हें में
मैं ख़ुद ही ख़ुद में सम्पूर्ण हो जाती हूँ
तू क्या है कौन है
ये लिखकर बोलकर बतला कर
जता कर समझा कर
कभी शायद कह ही न पाऊँगी
तुम्हारे लिख देने भर से
समझती हूँ की कितनी फ़िक्र करते हो मेरी
कभी लगता है कभी कहूं ही न तुम्हें
बस दर्ज़ कर दूँ सब अपने मन पर
तुम्हारा जो ये थोड़ा सा हिस्सा
तुम्हारे मन का ,तुम्हारी आत्मा का
जो मुझे अब जाकर मिला है
यकीं करना दर्द ये भी देता है
मुझे सम्पूर्ण क्यों न मिले
तुम्हारे मेरे होने का हर क्षण
एक उत्सव मनाती
तुम बिना मुझे मिला
तुम्हारा समय, तुम्हारा मन
तुम्हारे होने का आभास
तुम्हारी देह ,तुम्हारा अस्तित्व
कहीं तो मेरे भीतर दर्द भर देता है
वहाँ बारिश है ,यहाँ कोई बूँद भर को तरसता है-
हमउम्रों की आदतें अमूमन हूबहू रहती हैं
सालों के फ़ासलों से जरूरतें ,ख़्वाहिशें बदलतीं हैं
अब जो मुख़्तसर सी दोस्ती किसी से की जाये
तो क्या आगाज़ ही में सवाल उम्र का दागा जाये ?-
तब्दीली
जो थी मैं कभी
वो रही नहीं अभी
और जो हूँ मैं आज
वो समझा न पाऊँगी कभी-
तब्दीली
जो थी मैं कभी
वो रही नहीं अभी
और जो हूँ मैं आज
वो समझा न पाऊँगी कभी-