बस इतना सा ही मिला है तू मुझे
शिद्दत से महसूस करने को
ख़ुद में शामिल करने को
तेरे बहुत थोड़े से मिले हुए' तुम 'का
" मैं "मेरा हर हिस्सा बहुत अच्छे से
ख़याल रखते हैं न
तेरे छुए हुए मेरे हर पल
हर लम्हें में
मैं ख़ुद ही ख़ुद में सम्पूर्ण हो जाती हूँ
तू क्या है कौन है
ये लिखकर बोलकर बतला कर
जता कर समझा कर
कभी शायद कह ही न पाऊँगी
तुम्हारे लिख देने भर से
समझती हूँ की कितनी फ़िक्र करते हो मेरी
कभी लगता है कभी कहूं ही न तुम्हें
बस दर्ज़ कर दूँ सब अपने मन पर
तुम्हारा जो ये थोड़ा सा हिस्सा
तुम्हारे मन का ,तुम्हारी आत्मा का
जो मुझे अब जाकर मिला है
यकीं करना दर्द ये भी देता है
मुझे सम्पूर्ण क्यों न मिले
तुम्हारे मेरे होने का हर क्षण
एक उत्सव मनाती
तुम बिना मुझे मिला
तुम्हारा समय, तुम्हारा मन
तुम्हारे होने का आभास
तुम्हारी देह ,तुम्हारा अस्तित्व
कहीं तो मेरे भीतर दर्द भर देता है
वहाँ बारिश है ,यहाँ कोई बूँद भर को तरसता है
-