Dr Usha jaiswal   (ऊषा)
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ऊषा
Joined 28 August 2018


ऊषा
Joined 28 August 2018
20 OCT 2022 AT 19:28

प्रकृति की सौम्यता में तेरा अभिनंदन है
हे नंदन/नंदिनी तेरा वंदन-अभिनंदन है
हर जीवांश तेरे आगमन की मिठास में कौतूहलित है
हर संस्कार,सभ्य-संस्कृति सुसज्जित है
हर आस,हर सांस में तेरे आगमन को श्वासमयी है
हर सगा क्षण और मन अति आनंदित है।

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11 OCT 2022 AT 11:07

जब तप है जीवन का हर क्षण
तो सरलमयी क्या व्याख्यान करें
जब डूबे नईया दरिया के बीचों-बीच
तो लहरों का क्या गुणगान करें।

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30 AUG 2022 AT 13:31

प्रेम से ये जीवन मधुमय है
तो है ये हृदय हर्ष का मधुशाला
प्रेम का विस्तार अनन्त है इस जीवन में
हर युग, शास्त्र है ये साक्ष्य स्वीकारा।





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4 AUG 2022 AT 23:08

जिंदगी को भी बेशुमार घावों को सहने की ताकत होती है।
पंख कटने पर भी हौसलों में उड़ने की साहस होती है।
बिन घावों के ये दवाएं भी असहाय होती।
इरादों के जज़्बात और ताकत भी धुमिल होती।
ना पट्टी की जरूरत होती ना वैद्य का सहारा होता।
मन के किसी भी इरादें की ना कोई सिलवट ना किनारा होता।
नब्ज़ और गीत की पंक्तियां भी बेसहाय और आवारा होतीं।
हर उड़ान की एक मसरूफ कहानी होती है।
हर बुलन्दी की एक मजबूत निशानी होती है।
पत्थरों में भी मूरत बनने की ताकत कहां होती
जो उनमें हथियारों के धारों से लड़ने की साहस ना होती।
वक्त-वक्त पर इन घावों को बनते रहना चाहिए।
हर मांझी को मझधार से उबरते रहना चाहिए।।





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29 JUL 2022 AT 8:33

मेरे शब्दों को कभी लज्जित न करना
मेरे आचरण को कभी धुमिल मत करना
मेरे संस्कारों को कभी दूषित मत करना
अहंकारों को कभी मेरे तन-मन को न भेदने देना
जीवन की हर परिस्थिति में ईश्वर में विश्वास बनाए रखना
मुझे मेरे माता-पिता का दास बनाए रखना
मेरे मित्रता का हर शाख बचाए रखना
मेरी पवित्रता की खुश्बू से मुझे सर्वदा सुगन्धित करना
मेरी मिट्टी की कश्तूरी मुझमें महकने देना
आकाश की ऊंचाइयों तक मुझे चहकने देना
मेरे इमानदारी का मुझमें सांख्यिकी करना
मुझसे लोभ के हर कण को काटना।
मानवता से परिपूर्ण रखना....🙏

-Usha

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27 JUL 2022 AT 9:46

रचना तुम संस्कृति के स्वभाव में
ढलना तुम विधि के विधान में
चलना तुम सर्वदा कीर्ति-यश के छाव में
चमकना तुम सूर्य के प्रकाश-सा
मृदुल मय बनना चंद्रमा के भाव-सा
हर्ष का हर कण समेटना
शीतलता रखना नदियों के बहाव-सा
प्रकृति-प्रेम का दीप बनना
सित-असित के हर रंग में खिलना
सौम्यता की हर छवि में ढलना
करुणा का भौसार बनना।
मानवता का सार बनना...!!

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20 JUL 2022 AT 18:59

बारिश की छतरी में और जीवन की छतरी में असमानताएं बहुत हैं,पर एहसासों की भाव में समानताएं बहुत हैं।

एक परिस्थितियों की जरूरत है तो दूसरी उपलब्धियों की मुद्दत है।

एक में ठहराव भी है,पर दूसरे में निरंतर प्रवाह ही है।

एक मौसमी बुखारों के दुष्प्रभाव से बचाता है तो दूसरा निरंतर हमारा पहचान बढ़ाता है।

छोड़ देता है एक कुछ वक्त के लिए साथ हमारा तो दूसरा अपने ठहराव का निरंतर मार्ग सजाता है।

घर-परिवार करते हैं कभी तेरे ठहरने का इंतजार, तो करते हैं दुआएं हजार सर्वदा तेरे आगे बढ़ने का।

तू रुप के जाने कितने रंग में सजता है,तू बिना रुप-रंग आकार के ही जंचता है।

तू भौतिकता का अधम प्रयास है, तो तू मेहनत और दृढ़ता का असीम साक्षात्कार है।

तू बाजारी वस्तु है आसानी से बिक जाएगा, तेरे कीमत अमूल्य है हर पैसा हार जायेगा।

असमानताओं की ये लकीरें कभी न मिट पायेंगी।

उपलब्धियों का ताज अपना परचम सर्वदा फहरायेगा....!!

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17 JUL 2022 AT 20:48

वक्त का संदेश है
सब शुभ-शुभ है।
संशय केवल विस्मय में है,
अब उसको भी
वास्तविकता में उतारते हैं।
अपनी परिस्थितियों को
किंचित भूल कर
अपनी भावों को सदाचार
से भरकर
‌ थोड़ा दुलारते हैं तुम्हें...!!

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16 JUL 2022 AT 22:40

तुम्हें प्यार लिखूं ,दूलार लिखूं।
या खुशियों की छम-छम बौछार लिखूं?
ऊं की धुन लिखूं या वीणा की तार लिखूं?
विश्णु की कृपा लिखूं या ब्रह्मा का उपकार लिखूं?
तुम्हारे परिकल्पनाओं का क्या-क्या सार लिखूं?
तुम्हें प्रकृति लिखूं या संस्कार लिखूं या वक्त का दिया हुआ अद्भुत उपहार लिखूं?
तुम्हें दुआओं की पोटली या इच्छाओं का सार लिखूं,
या खुशियों की असीमित आधार लिखूं?
तुम्हारे परिकल्पनाओं का क्या-क्या सार लिखूं...?

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30 JUN 2022 AT 14:00

अभी अर्चन है कुछ वक्त के हिसाब में
अभी अर्चन है कुछ तबियत के मिजाज में
आषाढ़ की वो आखिरी तारीख जाने को है
इंतज़ार है उस मौसम की जो खुशियों का
पैगाम लाने को है।

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