रात दरख़्त के साये में
दिन सूरज के पास
कुछ लम्हें खुशी के
कुछ पल थोड़ा उदास
मैं ढूंढता हूं एक शख्स
तेरे जैसा,
जिसमें उम्मीद बहुत है
है बेहतर कल कि जिसे तलाश
होने से लगता है जिसके
घर अब दूर नहीं है ज़्यादा
सुकून यहीं पर है
आसमान में नहीं
ज़मी पर है
ढूंढ़ लो इसे
और जियो बिंदास-
मन का आँगन भरा हुआ है लेकिन जेबें खाली हैं
Budd... read more
तेरे शहर में बारिश का मौसम है फिर आज
मेरी यादों के झोकों ने जुल्फों को छुआ तो होगा-
बहता हुआ सा पानी, पत्थर नहीं हूं मैं
खोजो तो दिल में अंदर, बाहर नहीं हूं मैं
उम्मीद तुमने रक्खी है उतना कहाँ से दूँ
एक मामूली सा कतरा, सागर नहीं हूं मैं-
निकलता है तुझ से भी रस्ता, मंजिल कोई दूर नहीं है
मैं कहता हूं तू भी हीरा है, अकेला कोहिनूर नहीं है-
जितना मैं बाहर तक था उतना अंदर हो गया हूं
मैं एक दरिया तुझसे मिल कर समंदर हो गया हूं-
दुनिया ने रफ्तार है पकड़ी
सबकुछ पल-पल बदल रहा है
हर लब पर अनबोली बातें
हर सिर पर कोई टहल रहा है
मधुमक्खी के घर खाली हैं
शहद है सारी शीशी के अंदर
कछुए खरगोश कि रेस नहीं
अब जीत रहे हैं बिल्ली-बंदर
दुनिया हँसती है पल-पल और
तुमको आ जाते हैं आंसू
सबकुछ है श्मशान सरीखा
लेकिन थोड़े जिंदा हो तुम
कोई भी तो बात नहीं जो
थोड़े से संजीदा हो तुम-
सब वृक्ष सूखते जाते हैं
ऐ माली पानी दे वन को
कुछ किरणें जो दें हरियाली
तु भेज पुनः उन्हें जीवन को
जब युग है हुआ संवेदनहीन
है घूम रही उल्टी चरखा
माना तु नहीं आ सकता स्वयं
पर भेज तो सकता अर्जुन को
ना बनारस में रस है कोई
ना मक्के से कोई मशविरा
बड़ी पेंच में फस गई है दुनिया
एक बार तो आजा दर्शन को-
सभी से मिलकर सभी का होना चाहता है
अजीब शख़्स है ताउम्र रोना चाहता है-
ख़ुद का पथ उलझा भी हो पर सबको राह दिखाते चलना
सीख रहा हूँ मैं सूरज से चुप-चुप रहना भीतर जलना-
मेरा तो कभी था ये फलसफा ही नहीं
दौड़ा भी मगर मुझको वो मिला ही नहीं
लोगों को सुनाते रहे तजुर्बा रात दिन
जब खुद पे आई बात फैसला ही नहीं-