15 APR AT 0:58

लिखूँ तो आयाँ हो जाये। ع

लिखूँ तो शादाब हो जाये। ش

लिखूँ तो करार हो जाये। ق

लिखूँ तो हमारा इक़रार हो जाये। عشق

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15 APR AT 0:15

सियासत के रंग में हमने रंगते देखा है।
सत्ता के नशे में हमने ढलते देखा है।।

आँखो के इशारो को समझना सीखा है।
फ़ैसलों को पल भर मे बदलते देखा है।।

होते थे जो कभी तुम्हारे साथ हर वक़्त।
बदलते वक़्त पर हमने बदलते देखा है।।

जिसकी उम्मीद ना थी साथ देगा वह।
उस शक्स को साथ में चलते देखा है।।

जिनकी की ख़ातिर हमने दुश्मनी ली थी।
लोगो को दुश्मन के साथ टहलते देखा है।।

‘शकेब’ क्या-क्या बात बताये ज़माने की।
जिसने ज़माने को हर रंग में रंगते देखा है।।




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29 MAR AT 6:03

मैं था मेरी तन्हाई थी और कुछ अधूरे ख़्वाब थे।
किताबें थी कुछ डिग्रीयाँ थी और अधूरे जवाब थे।।

आज़माइश थी वफ़ादारी थी और थी एक ज़िंदगी।
कुछ तो चेहरे साफ़ थे कुछ के तो अधूरे नक़ाब थे।।

नसीब था इल्म था और थी कुछ ग़लत फ़हमिया।
माँ है बहन है और अब्बु के कुछ अधूरे ख़िताब थे।।

चले थे ज़िंदगी की कश्ती पर साहिल की जानिब।
कठिन रास्ते थे मज़िल दूर थी,अधूरे ज़फ़र-याब थे।।






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23 MAR AT 16:38

लगा कर रंग फ़िज़ा को तुमने क्या खूब महकाया है।
दिलों के फ़ासलों को होली और रमज़ान ने क्या खूब मिटाया है ।।

हर बार की तरह इस बार भी मुहब्बत के पैग़ाम को दे कर।
हिंदुस्तान को फिर से हिंदुस्तान हम सब ने क्या खूब मनाया है।।

बस इतनी सी ही आरज़ू है हम वतनों की ए ख़ुदा।
दिलों में हो गई है दूरियाँ बस हम सब को मिल कर मिटाना है


सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ

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17 MAR AT 2:51

तुम मेरी पहली तमन्ना हो जिस पर दिल आया था।
तुम्हारी ही ख़ातिर ही मैं दिल्ली से मिलने आया था।

बाद-ओ-सबा तुमसे मिलना का करार पाया था।
रात में ही तुम्हारा,ना मिलने का मेसेज आया था।।

यह खता हमने क्यों ही कर दी ना समझी में!
मिलने का क्यों ही बोला,जब वक़्त ही ना आया था।।

मुहब्बत की बात को इतनी,दिल-जोई क्यों कर ली?
हमे जब इश्क़ का फ़लसफ़ा समझ में ही ना आया था।।

तुम से ना मिल पाना मेरे मुक़द्दर में कहा था ‘शकेब’।
बस इतनी सी बात को याद करके मुझे रोना आया था।।





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4 MAR AT 10:17

मुहब्बत के वसूलों पर आँच आ जाये तो ठहर जाना ज़रूरी है।
इश्क़ के फ़रेबों के जाल में फँस जाने से निकल जाना ज़रूरी है।।

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3 MAR AT 9:27

माशूक़ के ऐब में आशिक़ की कहानी नज़र आई।
मुहब्बत के आईने में तस्वीर-ए-इश्क़ नज़र आई।।

सलामत रखे ख़ुदा उनको भी जो हमे भूल बैठे है।
हमे उनके हर पैग़ाम में साज़िश की रवानी नज़र आई।।

सालों से इंतिज़ार में,एक दिन कह बैठे हाल ए दिल।
दिल के हर गोशे में उनके आने की निशानी नज़र आई।।






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27 FEB AT 2:59

नज़रों को नज़रों से देखना का मन करता है।
हमे तुम से ही बात करने का मन करता है।।

तुम ही हो मेरी मुहब्बत की आख़िरी ख़िवाहिश।
हमारी खुवाहिश को पूरी करने का मन करता है।।

तुम को अपनी नज़ारों में ही बसाया हूँ हमने।
बस नज़रों को नज़रों से मिलाने का मन करता है।।

वक़्त का तक़ाज़ा है की हम तुम से मिलते रहे।
तुमसे मिलने पर बिछड़ने का मन नहीं करता है।।

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27 FEB AT 2:40

मुहब्बत की किताब को छोड़ पढ़ी थी कई और किताबें।
बस इसी फ़लसफ़े को छोड़ पढ़ी थी कई और किताबें।।

जुग्राफ़िया,रियाज़ीं और फ़नी-महारत भी पढ़ लिया।
सुकून-ए-क्लब एक में था,बेकार थी कई और किताबें

सुना था उनको मुहब्बत थी इश्क़ कि किताबों से।
मेरे कमरे में इश्क़ के अलावा थी कई और किताबें।।

तन्हाई थी उलझने थी और थी कई और बीमारी।
इलाज एक में था,बाक़ी फ़ज़ूल थी कई और किताबें।।

बाज़ार में थे कई तरह के व्यापारी अपनी दुकान सजाये।
ख़रीदार एक का ही था,धूल खा रही थी कई और किताबें।।




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27 FEB AT 1:13

चुनाव भी एक क़िस्म की बीमारी होती है।
सभी को लें डूबने के निशानी होती है।।

नेता जनता को अपने मुद्दों से भटकाते है।
जनता ग़लत वोट करके खुश हो जाती है।।

लोग समझते है जनता को बहुत होशियार
मगर वह तो बहुत ही भोली- भाली होती है।।

तीर कमान को ज़रा सभाल कर रखना।
कहीं टूट ना जाये बहुत नाज़ुक होती है।।

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