Dr.Sachin Malik   (Sachin Malik “विद्यार्थी”)
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Joined 3 September 2017


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Joined 3 September 2017
23 APR AT 0:40

ना जाने कैसे अज़ाब लग गए, एक नहीं बेहिसाब लग गए..
ये गहरे ज़ख़्म कैसे हैं? अरे कुछ नहीं दो-चार टूटे हुए ख़्वाब लग गए…
अंजाम-ए-इश्क़ दर्द भरा ही रहा,
जिन्हें मिल गया महबूब, सुना है उनका इश्क़ मर गया..
और जिन्हें नहीं मिला वो पीने शराब लग गए..

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18 APR AT 20:09

ईरानी आँखें, क़लाशी हुस्न, रूसी शराब, अफ़ग़ानी रबाब..
तारों की छाओं, मेरा गाँव,और तुझसे इश्क़ बेहिसाब..
तू सिरे का फ़क़ीर “मलिक”,
हाय फिर देखने लगा ये महँगे महँगे ख़्वाब..

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16 APR AT 23:46

तन्हाई की लत लगा ली, क्या मालूम अजियत के वक़्त कोई क़रीब ना हो..
पलट कर देख ना सका मैं पीठ में ख़ंजर मारने वाले को, मुझे ख़ौफ़ था कहीं कोई शरीक ना हो..
ग़म हो, जाम हो, दर्द हो, तकलीफ़ हो हर चीज़ हो कोई गिला नहीं…
महज़ ज़िंदगी में ग़ुरबत ना हो, और जो वो ना आए तो मेरे जनाज़े में तक़रीब ना हो…
मौत से पहले मर गए हम हिज्र के वक़्त, ख़ौफ़ था क्या मालूम कल को इतनी हसीन मौत नसीब ना हो…

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14 APR AT 0:57

तेरा सब मुक्कमल, मेरी हसरतें ख़ाक..
मुझे अज़ियत-ए-हिज्र, तू अहल-ए-फ़िराक़…
मेरी हर वक़्त की ख़ुशी का राज़ ?
वो जो अरसे से चल रही ग़म की ख़ुराक…
हर शख़्स का यहाँ वही हाल है ”मलिक”
दिल तवायफ़, जिस्म पाक।।



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2 APR AT 1:14

जो मैं सोचता हूँ, वो हक़ीक़त ना हो…
ख़ुदा हम किसी की हसरत ना हों..
दिल्लगी हो हज़ार दफ़ा,
पर दूसरी बार मोहब्बत ना हो..
किसी रोज़ आए तू लौट के मेरे पास…
उस दिन मेरे पास मैं ना मिलूँ ऐसा ना हो…
रंग खूबसूरत लगते हैं बेशक,
बस किसी की फ़ितरत में ना हों…

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30 MAR AT 19:47

रंगों की मजबूरी रह गई, इस करके तस्वीर अधूरी रह गई..
तेरे इतने क़रीब रह के भी, पता नहीं कैसे दूरी रह गई…
वैसे तो बातें बहुत हुई, पर एक बात ज़रूरी रह गई..
हाथों में मेरे छाले पड़ गए, पर मेरी मजदूरी रह गई..
चलो मेरा ख़ाक ना बचा, पर तेरी बात तो पूरी रह गई..

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28 MAR AT 1:30

क्या हाल है तुझ बिन नैनों का, धुंधला मंजर,नीर बरसता है…
तेरे वस्ल को तरसे हम ऐसे, जैसे ख़ुदा के दीदार को पीर तरसता है..
जैसे लोग तरसते हैं, मुक्कमल कहानी को…
जैसे बूढ़े तरसते हैं चली गई जवानी को…
जैसे एक माँ तरसती है खोई बेटे की नादानी को,
जैसे आईने तरसते हैं किसी सूरत पुरानी को,
मैं तेरे इश्क़ को ऐसे तरसता हूँ जाना, जैसे झेलम को कश्मीर तरसता है…
क्या हाल है तुझ बिन नैनों का, धुंधला मंजर,नीर बरसता है..




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23 MAR AT 17:53

तू मुझसे दूर क्या हुआ, अब सब अज़ीज़ मेरे दिल से उतरने लगे हैं…
ख़ुदा मेरी दुआ क़ुबूल कर अब कभी ना आए वो मेरे सामने…
बड़ी मुश्क़िल से हिज्र के घाव भरने लगे हैं…
मेरे शहर के सब राँझों का ईमान मर गया, हर रोज़ नई हीर पे मरने लगे हैं..
आज कल लोग मोहब्बत नहीं करते, मोहब्बतें करने लगे हैं…


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22 MAR AT 23:47

खड़ा रहे कोई लिये मोहब्बत, मैं अब बिन देखे गुज़र जाऊँगा..
कहो उस से मेरी आँखों में ना देखे, वरना मैं किसी दिन हद से गुज़र जाऊँगा…
एक बार मुझे ढंग से बिगड़ने तो दो, ख़ुदा की क़सम मैं बाद में सुधर जाऊँगा…
मैं तो कब का मर चुका, मुझमें अब तू रहता है…
मैं तो ख़ामोश हूँ, जो कहता है तू कहता है…
अब मेरा कोई दीन-ईमान नहीं, मैं भी भरोसा तोड़ के मुकर जाऊँगा….
दिन जवानी के हैं जी भर के गुनाह करने दो, मैं अब वो शख़्स नहीं जो सज़ा से डर जाऊँगा…





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10 MAR AT 0:01

कोई उम्मीद-ए-आशक़ी नहीं अब,मेरा दिल तेरी दिल्लग़ी से भर गया है…
तेरे शहर की आज़ादी में दम घुटने लगा जब, ख़ुद को क़ैद करने वो शख़्स लौट के घर गया है…
कुछ दिल तोड़े हैं मैंने, कुछ बद्दुआएँ हैं मेरे हिस्से
तभी तो तू भी मेरे हक़ में बोलने से मुकर गया है…
ना जाने कितनी कब्र खुदेंगी इसको दफ़नाने के लिये,
ये जो मेरे अंदर एक-एक करके इतना सब कुछ मर गया है।।

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