“ये पेड़ों के पत्ते अब जो झड़ से गये हैं…
सच में बहुत खूबसूरत लगते हैं॥”
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“किताबें रूठी हुई हैं हमसे ।
शिक़ायत है कि …
अरसे बाद हमारी मुलाक़ात हुई ॥”
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ख़ुश हो लो
आज तुमने फ़िर से मेरा एक दिन बर्बाद किया,
शुक्र है ये रात संभल गई है।
यादें बदलें ना बदलें पर ज़िंदगी …
बहुत …,,बहुत बदल गई है॥-
भय अच्छा,
अज्ञानता अच्छी,
कमज़ोरी का एहसास अच्छा,
दुःख अच्छा, रोना अच्छा….
और अगर आप इन सारी चीजों के प्रति जागरूक हैं
तो वो सर्वोपरि ।
जीवन को उसकी व्यापकता में जियें….
रोज़ जियें…
जागरूक बनें…
ख़ुश रहें-
दो अक्श मेरे ....ख़ुद ही लड़ पड़े ...
जब मेरे अतीत के अक्श ने आज के अक्श को
पहचानने से इंकार कर दिया l
और एक “मैं” हूँ कि .....
इन दोनों ही के वजूद पर मुस्कराई
और आगे बढ़ गई ll
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वक़्त उसे भुला रहा है धीरे धीरे।
ख़ुद अपने बनाये निशाँ मिटा रहा है धीरे -धीरे ॥
किसी की बिसात कहाँ कि वो मुझको मात दे ।
वक़्त का पहिया ही है जो मुझको घुमा रहा है धीरे धीरे॥
ग़ुरबत…..शोहरत …..नफ़रत ….मुहब्बत तौबा -तौबा ।
क्या जाने कौन कौन से जज़्बात सिखा रहा है ….
मगर धीरे धीरे॥-
जो गिरा…. बिखरा….
वो सत्य नहीं था,
वो तो विश्वास था !
और वो जो गिरा और टूटा …
फ़िर जुड़ ना सका !!-