Dr. Ramesh Prajapati   (Ramesh prajapati)
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Joined 4 June 2019


Joined 4 June 2019
4 MAR 2023 AT 2:07

जब भी कहानी सुनाई जाएगी
अपनी ग़द्दारी नही बताई जाएगी ,
जगत के सारे सच दरकिनार करके
अपनी सारी झूठी बातें सच ठहराई जाएगी ।

बार बार झूठ को सच करार दिया जाएगा
कई बार फ़र्ज़ी हमलों की दलील दी जाएगी ,
बचना मुश्किल था मेरा अगर यूँ ना होता
बस ऐसी झूठी अफ़वाफ़ फैलायी जाएगी ।

तोलेंगे ख़ुद को सोने से
अपनी आदतें सबसे अच्छी बताई जाएगी,
ख़ुद से रखेंगे ख़ुद को तराज़ू पर
ख़ुद की झूठी क़सम खायी जाएगी ।

जब भी कहानी सुनाई जाएगी
अपनी ग़द्दारी नही बताई जाएगी....

Continue...

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30 JAN 2023 AT 19:47

मुक्क़दस रिश्ते की तुम ऐसी सुकून हो,
सर्दी के मौसम में जैसे जून हो ।

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31 DEC 2022 AT 20:16

पकड़ा है सब्र का हाथ मैंने मुझे दूर तक जाना है ,
मंज़िल की परवाह नहीं मुझे दिल सफ़र का दीवाना है ।

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2 MAY 2022 AT 2:25

कल निकला जो चाँद तो देखने हम भी आएंगे,
ग़र मिली निगाहें उनसे तो ईद हम भी मनाएंगे।

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25 JUL 2021 AT 4:26

हमेशा देर कर देता हूँ मैं कुछ बात बताने में ,
कभी कुछ जताने में तो कभी कुछ छुपाने में ।

कभी तो सोचता हूँ तुम्हारे साथ बैठ कर
तुमसे ही करें तुम्हारी बातें ,
और कभी वक्त निकल जाता है
खुद से खुद को समझने में ।

हमेशा देर कर देता हूँ मैं कुछ बात बताने में ,
कभी तुमसे रूठने में तो कभी तुम्हें मनाने में ।

कभी कुछ ज़रूरी बात करनी हो ,
कभी तुमसे मुलाक़ात करनी हो ,
निभाना हो कोई वादा ,
मैं भूल जाता हूँ खुद को सुलझाने में ।

हमेशा देर कर देता हूँ मैं कुछ बात बताने में ,
कभी वादा करने में तो कभी उन्हें निभाने में ।

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1 JUN 2021 AT 21:46

तरकीब कोई ऐसा भी सुझाया जाए ,
इंसान को इंसान बनना सिखाया जाए ,
फैल रही है जिस रफ़्तार से नफ़रत ,
इसका भी कोई टिका लगाया जाए ।

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3 MAR 2021 AT 9:44

हमने मंज़िल बदली है हमने रास्ते बदले हैं,
बदल देंगे उन्हें भी जिनके वास्ते बदले हैं ।

बदलना ही फ़ितरत है इंसान की,
गलती उनकी है जो नहीं बदले हैं ।

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7 FEB 2021 AT 2:34

इश्क करने वाले आज अपने इश्क का हिसाब देंगे,
तोड़ कर किसी डाली से अपने महबूब को गुलाब देंगे।

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20 SEP 2020 AT 8:13

कब रही है ज़िंदगी अपने इख़्तियार मे,
कभी वादों तो कभी यादों मे उलझे रहे।

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11 JUL 2020 AT 23:07

जो सबके नज़र मे अच्छे हैं,
वो दिल से कहां सच्चे हैं।
जिनकी मौजूदगी कोई ज़हमत ना दे!
ऐसे मेहरबाँ कहां बचें हैं?

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