Dr. Rajesh Shakya   (राजेश शाक्य)
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Doctor by profession
Navodayan
Poet by heart
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Joined 13 November 2017


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30 JUL 2021 AT 2:29

शराफ़त, कयामत, हिमाकत, जज़्बात को पढ़ा है
ज़ाहिर ना हो जो लफ़्ज़ों से, उस बात को पढ़ा है

तमन्नाओं के तेरे इस हसीं समंदर से पूछ,
अच्छी बुरी जैसी भी है, इस कायनात को पढ़ा है..

हैं कुछ भ्रम अनकहे, खुदगर्ज़ किस्सों की तरह,
उन्ही किस्सों की भाँति इस काली रात को पढ़ा है

तेरा साया मुझे सम्बल-सहारा खूब ही देता रहा
साया रहित होकर भ्रमित, हर लात को पढ़ा है..

ख्वाबों वाली, उस हसीं बरसात को पढ़ा है...
चलो देर से सही, मैंने मेरी औकात को पढ़ा है...

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7 MAY 2021 AT 13:21

वफ़ा कर इस तरह से, खुद को भी दिखाई ना दे..
ग़म-ए-ज़िन्दगी जी, हंस के, बस सफ़ाई ना दे..

अश्क़ गिराओ जी भर के, घर के अंदर अपने,
कोई और सुने तो, सिसकियाँ सुनाई ना दे..

हैं करते खूब रोशन आशियां, चिराग रातों में,
तले उसके अंधेरा, इस कदर, कुछ दिखाई ना दे..

था पाया मैंने खुद को भी, उसी चिराग की भांति,
खड़ा था सामने रोशन, मगर उसको दिखाई ना दे..

लगा सब दांव पे मेरा, मेरी इज़्ज़त, गुरुर-ए-इश्क़,
ऐ खुदा, दरख़्वास्त ऐसी, गजब खुदाई ना दे..

ना कोई इल्तिज़ा, ना चाह, ना उम्मीद उससे है,
मुझे दे दो पनाह, उस पार,जहां बस वो दिखाई ना दे..

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27 APR 2021 AT 9:38

Talk to some,
Trust a few,
& Never love anyone..

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27 APR 2021 AT 4:56

हुआ एक रोज ज़िरह, उसको मुझे हर बार नहीं करना..
उसी पत्थर से आंखें चार, मुझे, इस बार नहीं करना....

बदला ले भी लें, गर कत्ल करके आज फितरत का..
मलाल-ए-इश्क़ ले कर के, मुझे अब वार नहीं करना..

मशक्कत कर भी लूँ खुद से फ़क़त, तो हर्ज़ क्या है..
मशक्कत तुझसे करके अब, मुझे हद पार नहीं करना..

तकल्लुफ खूब की है आपने, इस शख्श की खातिर,
सुनो,बस बात इतनी सी, अब तुमसे प्यार नहीं करना..!!

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27 APR 2021 AT 3:53

मिठाई में भी कब, कड़वा कौर आएगा...
हमने सोचा भी न था, कि ये दौर आएगा..

जत्था-ए-उम्मीद कब तक सम्भालेगा दिल,
आज ये आये हैं, कल कोई और आएगा...

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11 APR 2021 AT 22:14

तू माने, तो तेरा, वरना पराया हूँ मैं...
घोर अंधेरे में भी, तेरा साया हूँ मैं...
तरजीह की हद, कुछ यूं समझ तू..
खुदा के रहते, तेरे पास आया हूँ मैं..!!

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6 MAR 2021 AT 6:20

एक पल को लगा, वो हर बात समझते होंगे..
अनकहे, अनसुने, जज़्बात, समझते होंगे...

सर्दी, गर्मी, वसंत बहार, सब शून्य पड़े थे
मुझे लगा, वो शायद, बरसात समझते होंगे.

चलो हम गैर ठहरे, नासमझ, गुस्ताख़ से..
है, कोई तो, जिसे वो खास समझते होंगे..

माना मयस्सर नहीं, अब दौर-ए-शराफत....
पर किसी को तो महरम-ए-हमराज़ समझते होंगे.

सिलसिला गलतफहमियों का कुछ यूं हो गया है..
कि तूफान के आने में भी, मेरा हाथ समझते होंगे...!!

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3 FEB 2021 AT 10:03

हर झूलती लट को तूने, नज़ाकत से संवारा है..
ख्वाबों में ही सही एक बार, तूने मुझे पुकारा है..

होगे कई मशहूर शख्श, बेतरतीब जमाने में..
दीदार तेरा गर हो जाये, फिर और क्या गवारा है..

हैं बहुतेरे जमाने में, पिलाने वाले आंखों से..
फ़क़त वो आंख तेरी थी, मुझे कई बार उतारा है...

है अब तो चाँद भी नाराज़ मुझसे, क्या कहूँ..
हर शाम उससे पहले भी, तुमको पुकारा है...

मयस्सर जब तलक थी तू, सुकून-ओ-चैन था...
मयस्सर अब नहीं, फिर भी मुझे तेरा सहारा है..!!

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21 DEC 2020 AT 10:48

मुद्दत बाद ही सही, मैं रफा हो गया,
तुझसे ही नहीं मैं खुद से खफा हो गया...

किये है खूब तूने जुल्म-ए-रंजिश कई दफा,
कहे जो चंद अल्फ़ाज़, तो मैं जफ़ा हो गया..

थी नीरस और खुदगर्ज़ी की तू भाषा मधुर,
चलो खुश हूँ, तेरी दुनिया से मैं दफा हो गया...

रखा दुनिया की नज़रों में वफ़ा को ताक पर,
तेरे कहने तलक से क्या, मैं बेवफा हो गया..???

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6 DEC 2020 AT 11:17

तबस्सुम से बोलो, आप मैं सुन लूंगा..
जो गुजरे पल, उन्हीं का ख्वाब बुन लूंगा..
बिखेरो, तुम खुशी, जहां में बेतरतीब भी,
तेरी हर इक खुशी को, मैं फ़क़त चुन लूंगा..

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