Dr. Rajendra Prasad Singh  
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Joined 19 August 2018


Joined 19 August 2018
9 JUL 2021 AT 15:56

Once Hanumanaji was sitting in a temple in a very disturb mood. Ramchandraji came and asked him why he was so disturbed.His reply was that he had heard the world had become so bad that he now wanted Ramchandraji to take him along with him, and enquired why he had been left back on the earth. He said that earlier people who came to the temple removed shoes at the entrance, bowed reverentially and sat on the floor,. Then till some time ago,people come, not remove their shoes, offer pranam and go away.Now they say from a moving vehicle,"Hi,Hannu, he are you? see you later".

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5 JUN 2021 AT 11:02

Invisible infection Covid 19
Now dogs even under 13
No discrimination among at all
Whether very old or teen.
Cry or smile inside mask
Social distancing became task
Looking now emotional distancing
Disguise masochism growing fast.
One death is tragedy, million statistics
Graveyards weep ,laughing politics
Relationship collapsed before it's expiry
Nothing helped even updated tactics.


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3 JUN 2021 AT 15:16

मछलियाँ पानी के उपर कूदती फांदती है,इसलिए कि वह पानी से बाहर की दुनियाँ को जानना चाहती है।यानि जिग्यासा ही इच्छाशक्ति नाम का बह्मास्त्र है।अगर आप सोचते हैं कि मैं नहीं जानता,केवल तभी जानने की संभावना आपके जीवन में हकीकत बनेगी।आप जितना अधिक जानते हैं, आप में उतनी ही अधिक जिग्यासा होगी।
अगर आप बंदर के सामने केले और पैसे रख दे,ते वह केले की ओर ही लपकेगा,क्योंकि वह नहीं जानता कि पैसे से केले खरीदे जा सकते हैं।
उसी तरह अगर इंसान के सामने पैसे और ग्यान रख दें तो वह पैसे उठा लेगा,जो इससे बेखबर है कि ग्यानी इंसान उससे कहीं अधिक पैसे कमा सकता है।

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31 MAY 2021 AT 16:35

शिक्षा देना संसार अपना सबसे बड़ा कर्तब्य समझता है,किन्तु शिक्षा अपने मन की, शिष्य के मन की नहीं।क्योंकि संसार का 'आदर्श ब्यक्ति,ब्यक्ति नहीं है,एक टाइप है,जो संसार चाहता है कि सर्वप्रथम अवसर पर ही प्रत्येक व्यक्ति को ठोंक पीटकर,उसका व्यक्तित्व कुचलकर,उसे टाइप में सम्मिलित कर लिया जाये,उसे मूल रचना न रहने देकर प्रतिलिपी मात्र बना दिया जाए।
जो निर्धन होते हैं वे बचपन से ही ठुकते पीटते हैं,सर्वत्र और सबसे।सारा संसार ही उनके लिए शिक्षणालय हो जाता है ,जहाँ निरश हृदयहीनता से उन्हें शिक्षा दी जाती है।

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22 MAY 2021 AT 9:34

जिंदगी किन्हीं सिद्धांतों के हि साब से नहीं चलती।यह बड़ी अनूठी है यह रेल की पटरियों पर दौड़तीं नहीं, गंगा की तरह बहती है,उसके रास्ते पहले से तय नहीं हैं।
जब हम जिंदगी में चलते हैं,तो अज्ञात परमात्मा की तरफ से कुछ होगा,इसका हमें ख़याल नहीं होता है।अदृश्य भी बीच में उतर आएगा।और परमात्मा बिच में उतर आता है और सब उलटफेर हो जाता है।

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17 MAY 2021 AT 15:51


जिस देश में मनुष्य,मनुष्य नहीं होकर ब्रह्मण,राजपूत,कायस्थ,कूर्मी या कहार समझा जाता हो,जिस देश के लोग अपनी भक्ति और प्रेम पर पहला अधिकार अपनी जाति वालों का समझते हों और जिस देश की एक जात के लोग दूसरी जात धंके विद्वान को मूर्ख, दानी को कृपण,वली को दुर्बल,सच्चरित्र और अपनी जाति के मूर्ख को विद्वान और पापी को पुण्यात्मा समझते हों,उस देश की स्वतंत्रता और समृद्धि के विषय में यही कहा जा सकता है कि ,...रहिबे को अचरज है,गई अचम्भा कौन।

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14 MAY 2021 AT 9:04

कोरोना की दादागीरि से सभी बीमारियाँ सख्ते में पड़ गई।1920 के पहले दिल ओर सांंस की बीमारियाँ, टीबी,मलेरिया,एच आई वी जाने ले रही थी।अभी कोरोना के निरंकुश एक छत्र राज में ये सभी सांकरी गली से भाग छिपी बैठी है।फोन पर सब ठीक ठाक है तो,पूछने वाल का मतलब यही होता है कि बताएं,कितने नये लोगों को कोरोना ने दबोचा?
ईश्वर की भांति सृष्टि के कण कण में ब्यात कोरोना फटीचर और एरिस्टोक्रेट में कोई भेद नहीं करता।यह पूजनीय है,डरें नहीं,बल्कि इसका सम्मान करें।

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8 MAY 2021 AT 9:40

लूटना वा डकैती करना भी एक कला है।आज सुलताना डाकू जिन्दा होता तो वह संसद में होता।इस समय डकैती में नकाब पहनना जरुरी नहीं है,सिर्फ अवसर तलासने होते हैं जैसे बाढ़ में राहत अधिकारी ढूंढ़ते हैं।
लोकतंत्र में जनता की आशाओं,सपनों और उम्मीदों को सरे आम.लूटना अच्छे किस्म की डकैती है।इसमें हिन्दु मुसलमान नहीं देखा जाता।बिल्कुल धर्मनिरपेक्ष है।यह अवसर है कि आप निष्ठापूर्वक डकैती डालते रहें और नियमित तनख्वाह भी लेते रहें।
यूं ही कोई लूटेरा नहीं हो पाता।इसके लिये प्रतिभा अर्जित करनी पड़ती है,राजनीति ज्वाईन करनी पड़ती है।जो लूट पाट का धंधा विरासत में छोड़ कर नहीं जाते,उनहें स्वर्ग नहीं मिलता।अब लूटना दायित्व बोध हो गया और जिम्मेवारी भी।

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5 MAY 2021 AT 7:11

मुझे पतझड़ की कहानियां सुना सुना के न उदास कर। नए मौसम का पता बता, जो गुजर गया , वो गुजर गया।ग्रीष्म ऋतु जितना सताएगी,वर्षा उतना ही आनंद देगी।कष्टदायी और खुशनुमा दिन अपने समय पर आते जाते रहते हैं।दुःख है तभी सुख है।सुख के दिन बेशक फुर्र से उड़ते हैं,जबकि दुःख भरे दिन घिसट घिसटकर जाते हैं।
जब चुनौतिपूर्ण हालात पैदा होते हैं, तभी इंसान अपनी सामान्य अवस्था से ऊपर उठकर बाहुत अधिक बेहतर बनाता है,निखरता है।यानि जितना बड़ा दुःख,उतना ही क्षमतावान इंसान।इसी आशा का भाव मन में सदा सहेजे रखना सकुन देता है।इसलिए सोचिये,जीवन के सबसे सुखद दिन अभी बांकी है।

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2 MAY 2021 AT 20:07

वास्तव में अच्छा आदमी जानता ही नहीं कि वह अच्छा आदमी है।केवल.बुरा आदमी ही जानता है कि वह अच्छा आदमी है।केवल एक रुग्न ब्यक्ति ही स्वस्थ्य के बारे में सोचता है।जब आप स्वस्थ हैं तो स्वस्थ हैं।आप शरीर के बारे में तभी विचार करते हैं जबकि आप बीमार हैं। इसलिए जब भी कोई स्वास्थ्य के बारे में बात करता जला जाताहै, विश्वास रखें कि वह रूग्न है।

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