होती है सुबह हर रोज़
हर रोज़ शाम होती है।
तू होती है, मैं होता हूं,
तेरी, मुझसे और मेरी तुझसे
मगर, अब बात नहीं होती है।
खुलती है सुबह आंख हर रोज़
पर वो पहले वाली बात नहीं होती है।
लोगों से तो ऊब ही गया हूं, मगर
मेरी अब ख़ुद से भी बात नहीं होती है।
होती है सुबह हर रोज़
हर रोज़ शाम होती है।
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