सच हो तुम ,तप हो तुम
पीड़ा में तुम ,प्रीत में तुम
जन जन की आस हो तुम
जननी के विश्वास में तुम
परम ,पराक्रमी,
अजेय हो श्रीराम ,
जिसने जैसे जपा तुमकों
वैसे दिल में बस गए तुम
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उम्मीद से ही जीवन का रंग और गहरा है
पल पल में सदियों का अजब डेरा है
सदियों का भी इन पलों से ही सुखद सवेरा है-
Not just talk about WomenEmpowerment but
Let us Accelerate Actions
To close gender gaps
And take bold steps
To curb the ailment of Inequality
And ensure the resources for her leadership opportunity
Let us Accelerate Actions to understand her challenges And biased discrimination
And Support the Supporters to set her goals in tractions
Let us Accelerate Actions to Remove all distractions for her Better education
And create
Work environment for Equitable society of all gender Perceptions
Let us accelerate actions for her decision making and health security consciousness with elevating her willing Participation and promoting her aesthetic creations
Let us Accelerate Actions for Legislative and policy reforms
And strengthen equality Attractions for her better Present and Bright future Conclusions
Let us Accelerate Actions
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कल की पीढ़ी आज की पीढ़ी से
बतिया रही है,संस्कृति मुझसे अब तुम्हारी, धरोहर बनने जा रही है
इन झुर्रियों पर मासूमियत की ये
मोहर ,भरोसे पर उम्मीद की
बुनियाद बिछा रही है,हाथों में हम दोनों के ही
कल का निर्माण और कल का निर्वाण
निर्धारित हो रहा है,
तजुर्बे को अभ्यास
की अर्जी लगाई जा रही है
दोनों ही में आज के सत्य की
संकल्पना सुदृढ़ हो रही है
कल, आज और कल की विधा
नई पीढ़ी में सृजित ,अनुपम-
सी झंकृत हो रही है।पूर्ण पुरातन ,नवनूतन का संगम ,गीत प्रेम के प्रवीन गा रही है।
लकीरें तजुर्बे की तुम्हें चेता रही हैं
कदाचित न तुम घबराना आंधियों से
हौंसलों को तुम्हारे परखने की
कवायदें अनेक लगाई जा रही हैं
पर उडान को कोई रोके इनकी
ऐसे अंकुश की साजिश ,इन झुर्रियों से मात खा रही हैं
कल की पीढ़ी आज की पीढ़ी से
बतिया रही है......
Dr.Pragya Kaushik
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हिन्दी हूं मैं वतन की
कहानी मेरे मान की है
हम सब के अभिमान की है
राज भाषा बनू या बनू मैं राष्ट्र भाषा ,बात मेरे यत्न सिंचित उन्मान की है।मैंने तो बांधा बंधु -बांधव को
एक माला के भिन्न मोती सा,
मुझसे जुड़े भारतीय सभी
एक मां की अनमोल संतति सा,फिर क्यों दंश परायों सा
देते यंहा कुछ इन्सान मुझे हैं?
क्या प्रेम में मेरे कोई कमी है,
जो मिठास इसकी जुबान में
नहीं अब तक रमी है?
परदेस में भी मिले प्यार मुझे
चाहत मेरी वंहा रफ्तार पकड़ रही है पर देस में मेरे अब तक हेय दृष्टि मुझे सहनी पड रही है।
हिन्दी हूं मैं वतन की
कहानी मेरे प्रतिमान की है।
आह्वान करूं मैं एकजुट होने का मांगू मान ,अभिमान और कमान मेरी
मुझ से रचते ,मुझमें बसते सदियों के अरमान सभी
करने हैं तय सफर अभी और भी हिन्दी हूं मैं वतन की
कहानी मेरे आयुष्मान की है।
Dr.Pragya Kaushik
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मन ,वचन और कर्म से भी ,🇮🇳🇮🇳
जो हुआ गुलाम नही,
सपने जिसके पराधीन नही ,स्वत्रंत असल में है वही
प्रेम भाईचारा और दया
जिसके कर्म का आधार रहें
नैतिकता के लिए जो हुआ अधीर ,स्वतंत्र असल में है वही
झूठ ,बेईमानी और भ्रष्टाचार का
विरोध, जिसका संघर्ष रहे
बुराइयों का जिस पर असर नहीं,स्वतन्त्र असल में है वही
आत्मनिर्भर या मिलकर जिसके
काज ,मानवता पर रहे निर्भर
जिससे नेकी भयभीत नहीं,स्वतन्त्र असल में है वही
वतन , तिरंगा और आजादी
जिसका सर्वोच्च लक्ष्य रहे
झूठ का जिस पर जोर नहीं,स्वतन्त्र असल में है वही🇮🇳🇮🇳
Dr.Pragya Kaushik
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संयम जरूरी है
संयोग से मिले रिश्तों
का संयुक्त होना जरूरी है-
चाय ही नहीं
चाह भी है ये
दिलों के करार की,
परवाह भी है ये
सिलसिले मुलाकात की,
इन्तजार भी है नतीजे
इकरार का,
चाय ही नहीं ,मरहम भी है ये
जख्में दिलों दरार का
चाय ही नहीं
साक्षी भी है ये
समय परवान की,
हम सफर भी है ये
दौरे सफर मंजिले आफताब का
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आत्मा को अपनी तुम थोडा सा जिन्दा जरूर रखना
कर लेना तुम अपनी मर्जी
जो अच्छा लगे उसे अपना लेना और जो बुरा लगे उसे ठुकरा देना
पर अच्छा लगे और अच्छा होने के फर्क को तुम समझ जरूर लेना
क्या सही ,क्या गलत के भेद को भी तुम जान लेना और अपनी आत्मा को तुम थोडा सा जिन्दा जरूर रखना।
किसी मजदूर के कर्ज को और
मजबूर के फर्ज को तुम हंसी में न उडा देना
गरीब की भूख को स्वांग का चोला न समझना,थोड़ा सा दर्द अपने दिल में उनके लिए भी रखना और अपनी आत्मा को तुम थोड़ा सा जिन्दा जरूर रखना। बचा लेना अपनी दुनियां में थोडी सी इन्सानियत और करूणा बेशुमार ,उठा लेना तुम भी इन्साफ के
लिए वो कदम जो पहले तुम्हे और फिर बदल दे तकदीर इस इन्सान की,
ऐसे हर प्रयास पर गर कोई प्रहार हो तो प्रतिष्ठा को अपनी बनाए रखना बस आत्मा को अपनी तुम थोडा सा जिन्दा जरूर रखना।गर दर्द में किसी के दिल ना तुम्हारा पसीजे और खुशी उसकी तुम्हें रास न आए
शांति से ज्यादा तुम्हे अहम ही हराये तो सुन लेना पुकार तुम आस्था की अपनी और थोड़ा सा आत्मा को अपनी तुम जिन्दा जरूर रखना।
वो आत्मा जो अजर है अमर है
न मिटती है और न मिटाई जा सकती है उस आत्मा को इस शरीर के रहते भी तुम थोड़ा सा जिन्दा जरूर रखना।
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मेरे राम ,तेरे राम
हम सबके है राम
कल भी राम,आज भी राम, और कल भी राम,ऐसे हैं श्रीराम
जिसने जैसे देखा उनको,
वैसे उसके हो गए राम।
सच है राम,तप है राम,जैसे जिसने जपा राम,वैसे दिल में बस गए राम।
शबरि के झूठे बेर में राम,अहिल्या के पत्थर में राम,लक्ष्मण रेखा में भी राम ,
भरत के तप में है राम,भक्तों के जप में राम,विभीषण के उद्धारक राम,रावण के विनाशक राम ,रामायण के मर्यादापुरूषोत्तम् श्रीराम
जिसने जैसे पूजा उनको,उसके वैसे हो गए राम।
कैकेयी के वचनों में राम,कौशल्या के सब्र में राम,हनुमान के ह्रदय में राम
जननी के विश्वास में राम,जन जन की आस में राम,जिसने जैसा चाहा उनको वैसे उसकी चाहत हो गए राम।
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