यूं तो बाइस-ए-तर्क-ए-मुलाक़ात हम ही रहेंगे, मगर मेरी जान,,
ये बोसा अगर अधूरा रह गया तो मोहब्बत बुरा मान जायेगी
तुमने क़रीब से देखा ही नहीं कभी चरागों को बुझते हुए,,
दिये इसीलिए बुझ जाते हैं कि हक़ीक़त बुरा मान जायेगी
तेरी मुकद्दस आंखों की कब तलक हिफाज़त करूंगा मैं, पर
जो ये अश्क़ों के बांध खुल गए तो क़यामत बुरा मान जायेगी
खुद के हमशक्ल से मिलना और मिलकर मुंह फेर लेना,,
ये आइना हम तोड़ तो सकते थे मगर सदाकत बुरा मान जायेगी
गर बज़्म-ए-सुख़न लिखा है मुकद्दर में तो फिर सुकूं है मुझे,,
कहीं वो हुस्न-ओ-शबाब मांग लिया तो इबादत बुरा मान जायेगी-
Doctor 🩺 at G... read more
गुस्से में भी मेरी जान ज़रा लहजा सम्हाले रखना,
तेरे लफ़्ज़ों के ज़ख्मों की चारा-साज़ी हमने सीखी नहीं-
दश्त-ए-दिल में कहीं मर चुका है वो सहरा नवर्द
अगर साथ होते भी तो बस एक सराब होते हम
उस रात चांद जमीं पर, गर जरा देर तक रहता
तो उसके कानों पर सजे हुए गुलाब होते हम
न ही हकीकत और न तसव्वुर में रह पाए हैं 'शबा'
काश के इस मकां के आखिरी असबाब होते हम
अब इस दिल में अज़ीयत के सिवा कुछ भी नहीं
और तुझसे हक़ मांगते भी तो भी ख़राब होते हम
हमारा साथ अगर इतना आसान होता ए दोस्त
तो हर मुनाफिक़ शख़्स के अहबाब होते हम
-
मुझे अपने घर का हर साज़-ओ-सामान याद आता है,
गोद में सिर रखकर वो देखना आसमान याद आता है
इस शहर में कोई इमकान है जो मुझे सम्हाले हुए है,
वरना तो इस घने जंगल में भी शमशान याद आता है
इतने सुकून से मुझे किसी ने अपने घर में जगह दी,
वगरना हर शख़्स को एक दूसरे में हैवान याद आता है
कितनी पाक़ीज़ा हैं ये दुआएं, एक मॉं के दिल की,
जो अनजान चेहरों में भी उन्हें मेहमान याद आता है
और एक तेरा दिल जो हर वक्त राएगॉं रहता है 'पारस'
पहले मॉं को देख लेता हूं, तब भगवान याद आता है-
मैंने कभी चाहा तो नहीं था, मगर अब ये होता रहेगा
मैं चांद का अहबाब बनूंगा, वो खिड़की पे रोता रहेगा
कोई सराब, कोई छलावा नहीं, यही हक़ीक़त है शबा
कि नज़र अंदाज़ करके भी मेरे करीब तो तू होता रहेगा
सब कुछ धुंधला है फक़त उस एक पल के सिवा, जब
उसने इज़हार-ए-इश्क़ में कहा था, ये सब तो होता रहेगा
पूनम के चांद में आज ज़र्फ़ रंग किसी ने घोल दिया
शब गुज़र जाएगी और एक जुगनू गैब में सोता रहेगा
गर वो मेरे साथ रहेगा भी तो एक झूठी उम्मीद के साथ,
और उसके बिना, ये 'पारस' इन पत्थरों में कहीं खोता रहेगा-
बस इतना सुकून मुझे मेरे हक़ का मिले ए खुदा,
कि आंखें बंद करते ही, ख़्याल कोई सुहाना न रहे,
हर रोज़ एक शब-ए-तवील मुझसे मिलने आती है,
इन नीम-वा आंखों में अब कोई आशियाना न रहे
तेरी बाहों से दूर जाने की मेरी कोशिशें तबाह हैं सारी
मुझे यूं मुनक़ता कर, कि अब फिर कोई बहाना न रहे
कोई गुरेज़ नहीं मुझे, न शिकवा है किसी से, मगर
अब किसी कामिल इश्क़ का कोई अफसाना न रहे
काश कि मैंने इतने गौर से ना देखा होता तुझे, अब
मेरे ज़हन में तेरे अक़्स का कोई निगार ख़ाना न रहे-
अब ये आखरी मक़ाम है मेरी अफ़्सुरदगी का,
हंसते हुए चेहरे पर कभी कोई सवाल नहीं करता,,
रात गुजरते ही, फ़िर से बेहतर हो जाऊंगा मैं,
तुलू-ए-आफताब से कभी कोई सवाल नहीं करता,,
(Full in Caption)-
बेहतर है कि लोग मुस्कुराता हुआ देखें मुझे, इश्क़ में
ख़ाक उड़ाते हुए मैं शायद, तुम्हें अच्छा नहीं लगूंगा
इस साल की आख़िरी शब-ए-अजल पे ए दोस्त
जश्न मनाते हुए मैं शायद, तुम्हें अच्छा नहीं लगूंगा
(Full in Caption)-
ये वक़्त का रुख़ हवाओं में नमी घोल दे तो अच्छा है
मेरे एकाकी मन में ज़रा कोई कुछ बोल दे तो अच्छा है
हर तूफान पीछे छोड़ जाता है एक गहरी ख़ामोशी
मेरी ख़ामोशी में गर वो इश्क़ घोल दे तो अच्छा है
अच्छा है ये भी, कि ना हो कोई, कोई सवाल न हो
पर जवाब में कोई मुस्कुराकर हाँ बोल दे तो अच्छा है
कोई गर थक जाए हमारे साथ चलते चलते कभी,
जाते जाते मेरे मन की गिरहें खोल दे तो अच्छा है
हम आंखों की नमी से पैमाना-ए-शाद बढ़ा लेते हैं
मेरी नज़र मेरे लबों के लफ्ज़ बोल दे तो अच्छा है-
रंगों से भरी तुम्हारी कमजर्फ दुनिया देखकर, ये
जो रफ्ता-रफ्ता मेरा दिल अब सफैद हो रहा है,,
आज भी इस परिंदे की रिहाई से डरता है मेरा मन,
है आजाद पर तेरे ख्यालों के कफ़स में क़ैद हो रहा है,,
इतने चराग़ रखें हैं अपने चारों जानिब हमने, कि
मेरा साया इस रोशनी के सम्त जैसे जुनैद हो रहा है,,
सब इतने ख़ुश हैं अपनी-अपनी पारसाई से यहां, कि
हर एक शख़्स ख़ुदा बनने की जिद में ज़ैद हो रहा है,,
-