Until Death, All Defeat Is Psychological.
-
मातृभूमि,पितृभूमि,धर्म भू महान भरत भू महान है,महान है,महान॥ कैलाशकाश्मीर जिसके भालके मुकुटमणि, हैलोक में प्रसिद्ध जो अनूपरूप के धनी, हैनविश्व में महानस्थान जिनसमान, यहाँ विशाल जाह्नवी,सरस्वतीवगोमती,कौशिकी,कावेरी,युमना,ताप्ती,इरावती, ब्रह्म,सिन्धु,नर्मदा,गोदावरीमहान,
ये रूद्रज्योतिर्लिंग जिसकी दिव्यता के दीपहैं, अनेक शक्तिपीठ जिसकी शक्ति के प्रतीकहैं, बद्री,जगन,द्वारिका,रामेश जिसके धाम, यह तत्त्वदर्शियों, महामनीषियों की हैधरा, यहाँ निवास सन्तसिद्धयोगियों का हैसदा, जन-जन में वास कररहे भगवानरामश्याम, सन्यासियों भूपाल चक्रवर्तियों की जन्मभू, स्वधर्मध्वजफहरागये जोविश्वभर में दूरदूर सुनो अतीत गारहा विजयश्री के गान,भरत भू महानहै,महानहै,महान॥ 🇮🇳-
ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा
मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा
-
ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा
मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा
यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा
ग़ज़ब ये है कि अपनी मौत की आहट नहीं सुनते
वो सब के सब परीशाँ हैं वहाँ पर क्या हुआ होगा
तुम्हारे शहर में ये शोर सुन-सुन कर तो लगता है
कि इंसानों के जंगल में कोई हाँका हुआ होगा
कई फ़ाक़े बिता कर मर गया जो उसके बारे में
वो सब कहते हैं अब, ऐसा नहीं,ऐसा हुआ होगा
यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बसते हैं
ख़ुदा जाने वहाँ पर किस तरह जलसा हुआ होगा
चलो, अब यादगारों की अँधेरी कोठरी खोलें
कम-अज-कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा-
कभी,कभी तारीफ़ का पहर, तो
कभी बुराईयों का कहर.... फिर भी चलते जाना
आगे बढ़ते जाना अपने गंतव्य की ओर, शायद!
शायद किसी की इसी चहल पहल को आशाओं से भरा जीवन कहते हैं।-
"राम' जैसा चाहे,
वह, वैसा हो जाता हैं।
तिनका वज्र, तो
वज्र, तिनका हो जाता हैं।।
हम तो एक निमित्त मात्र...
राम भरोसे
जय श्री राम🚩-
पुजा तो हमने भी कलाम और अशफाककुल्लाह खां को, लेकिन
हम नहीं पुज सकते अफ़ज़ल और कसाव को।-
"हम देश पहले, फिर धर्म समझते हैं,
फिर क्यों न हम गद्दार कहे उन्हें'
जो *वंदे-मातरम्,इंकलाब'को दूसरा धर्म समझते हैं।"-
"कह दो आज अंधेरे से; चले जाए कही ओर,
आज मेरे देश में फिर रोशनी का सैलाव आया हैं।
कह दो उन पत्थरबाजों से; चले जाए कही ओर,
आज मेरे देश में फिर हिंदुत्व छाया हैं।
हम देश पहले, फिर धर्म समझते हैं,
फिर क्यों न हम गद्दार कहे उन्हें'
जो *वंदे-मातरम्,इंकलाब'को दूसरा धर्म समझते हैं।
पुजा तो हमने भी कलाम और अशफाककुल्लाह खां को, लेकिन हम नहीं पुज सकते अफ़ज़ल और कसाव को।
सोचा न था कभी हिन्दू-मुस्लिम पर बात करेंगे:
लेकिन कुछ गद्दारों ने देश का नमक खाकर,
माँ भारती के जख्मों पर फिर नमक लगाया हैं।
कह दो चाइना और पाकिस्तान से,
कही कमज़ोर न समझ बैठे हमें;
मेरे देश में फिर तिरंगा और केसरिया साथ आया हैं।
कह दो उन लड़खड़ाते पथिको से, घबराएं नहीं,
आज फिर कोई देशभक्त, मसीहा बनकर आया हैं।
आज फिर कोई देशभक्त मसीहा बनकर आया हैं।"-