Dr.Nikhil Dasondhi   (Nikhil Dasondhi*)
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Medical student
Joined 15 October 2018


Medical student
Joined 15 October 2018
22 JUN 2020 AT 17:28

ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा
मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा

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22 JUN 2020 AT 17:19

ये सारा जिस्म झुक कर बोझ से दुहरा हुआ होगा
मैं सजदे में नहीं था आपको धोखा हुआ होगा
यहाँ तक आते-आते सूख जाती हैं कई नदियाँ
मुझे मालूम है पानी कहाँ ठहरा हुआ होगा
ग़ज़ब ये है कि अपनी मौत की आहट नहीं सुनते
वो सब के सब परीशाँ हैं वहाँ पर क्या हुआ होगा
तुम्हारे शहर में ये शोर सुन-सुन कर तो लगता है
कि इंसानों के जंगल में कोई हाँका हुआ होगा
कई फ़ाक़े बिता कर मर गया जो उसके बारे में
वो सब कहते हैं अब, ऐसा नहीं,ऐसा हुआ होगा
यहाँ तो सिर्फ़ गूँगे और बहरे लोग बसते हैं
ख़ुदा जाने वहाँ पर किस तरह जलसा हुआ होगा
चलो, अब यादगारों की अँधेरी कोठरी खोलें
कम-अज-कम एक वो चेहरा तो पहचाना हुआ होगा

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20 JUN 2020 AT 23:31

मैं प्रेमी,पागल,कवि;
जिसकी जैसी नज़र*
वैसी मेरी छवि।*

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20 JUN 2020 AT 18:06

कभी,कभी तारीफ़ का पहर, तो
कभी बुराईयों का कहर.... फिर भी चलते जाना
आगे बढ़ते जाना अपने गंतव्य की ओर, शायद!
शायद किसी की इसी चहल पहल को आशाओं से भरा जीवन कहते हैं।

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8 APR 2020 AT 9:09

"राम' जैसा चाहे,
वह, वैसा हो जाता हैं।
तिनका वज्र, तो
वज्र, तिनका हो जाता हैं।।
हम तो एक निमित्त मात्र...
राम भरोसे
जय श्री राम🚩

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6 APR 2020 AT 0:33

पुजा तो हमने भी कलाम और अशफाककुल्लाह खां को, लेकिन
हम नहीं पुज सकते अफ़ज़ल और कसाव को।

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6 APR 2020 AT 0:26

"हम देश पहले, फिर धर्म समझते हैं,
फिर क्यों न हम गद्दार कहे उन्हें'
जो *वंदे-मातरम्,इंकलाब'को दूसरा धर्म समझते हैं।"

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5 APR 2020 AT 22:58

"कह दो आज अंधेरे से; चले जाए कही ओर,
आज मेरे देश में फिर रोशनी का सैलाव आया हैं।
कह दो उन पत्थरबाजों से; चले जाए कही ओर,
आज मेरे देश में फिर हिंदुत्व छाया हैं।
हम देश पहले, फिर धर्म समझते हैं,
फिर क्यों न हम गद्दार कहे उन्हें'
जो *वंदे-मातरम्,इंकलाब'को दूसरा धर्म समझते हैं।
पुजा तो हमने भी कलाम और अशफाककुल्लाह खां को, लेकिन हम नहीं पुज सकते अफ़ज़ल और कसाव को।
सोचा न था कभी हिन्दू-मुस्लिम पर बात करेंगे:
लेकिन कुछ गद्दारों ने देश का नमक खाकर,
माँ भारती के जख्मों पर फिर नमक लगाया हैं।
कह दो चाइना और पाकिस्तान से,
कही कमज़ोर न समझ बैठे हमें;
मेरे देश में फिर तिरंगा और केसरिया साथ आया हैं।
कह दो उन लड़खड़ाते पथिको से, घबराएं नहीं,
आज फिर कोई देशभक्त, मसीहा बनकर आया हैं।
आज फिर कोई देशभक्त मसीहा बनकर आया हैं।"

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19 MAR 2020 AT 9:10

"कोई हिन्दुत्व जगाने में लगा,
कोई इस्लाम जमाने में।
कोई सरकार बनाने में तो,
कोई कोरोंना भगाने में।
मानव को मानव बनाने की फ़रियाद करेंगे,
हम मनुष्यत्व जगाने का प्रयास करेंगे।।"🔥

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18 MAR 2020 AT 17:54

पग-पग चल,हथेली पकड़,चलना सिखाया,
खुद तप,अंधियारों में मुझे दीपक-सा जलना सिखाया।
भीषण घनघोर बादलों की गरजना में मुझे संभलना सिखाया,
मुझ जैसे नालायक को पड़ना सिखाया।
मेरी जिद्द के सामने वो हार गए मैं सोचा वो हार गए,लेकिन
वो हार नहीं, प्यार था,दिलदार था।
जो खिलौना मांगा वो मान गये।।
मेरी असफलताओं की झड़ियों में भी,
वो खुशियों का मेघ बनकर बरश गए।
मैंने अपने स्कूल में सुना था; माँ को सुनते हुए,
निखिल* पढ़ाई में कमज़ोर हैं!
मैंने घर में सुना था: माँ को सुनते हुए,
पढ़ाई में कमज़ोर तो काम-धंधे से लगा दो।लेकिन,
वो जिद्दी माँ क्या मानेगी,
जिसके कदमों में भाग्य और हथेलियों में परिश्रम की चमक हो। वो जिद्दी पिता क्या मानेगा,
दृढ़ निश्चय, ईमानदारी और विनम्रता जिसका आभूषण हों।
फिर क्या..
कतरा-कतरा कर समंदर बनाया मुझे,सिर्फ पढ़ाई नहीं,जिंदगी का भी असली धुलंदर बनाया मुझे।
पग-पग चल,हथेली पकड़,चलना सिखाया,
खुद तप,अंधियारों में मुझे दीपक-सा जलना सिखाया।
मैं कृतज्ञ हूँ,कि मैं उनका बेटा हूँ।लेकिन
संकल्प की मुट्ठी मैंने भी बांधी हैं,
एक दिन वो कृतज्ञ हो,कि मैं उनका बेटा हूँ।।
पग पग चल,हथेली पकड़,चलना सिखाया,
खुद तप अंधियारों में मुझे दीपक-सा जलना सिखाया।
चलना सिखाया,चलना सिखाया,
दीपक-सा जलना सिखाया।
अब नहीं रुकूंगा मैं,अब नहीं झुकूंगा मैं,
आखिर चलना किसने सिखाया।
"अग्निपथ, विजयपथ, विजयभव*🔥

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