पग-पग चल,हथेली पकड़,चलना सिखाया,
खुद तप,अंधियारों में मुझे दीपक-सा जलना सिखाया।
भीषण घनघोर बादलों की गरजना में मुझे संभलना सिखाया,
मुझ जैसे नालायक को पड़ना सिखाया।
मेरी जिद्द के सामने वो हार गए मैं सोचा वो हार गए,लेकिन
वो हार नहीं, प्यार था,दिलदार था।
जो खिलौना मांगा वो मान गये।।
मेरी असफलताओं की झड़ियों में भी,
वो खुशियों का मेघ बनकर बरश गए।
मैंने अपने स्कूल में सुना था; माँ को सुनते हुए,
निखिल* पढ़ाई में कमज़ोर हैं!
मैंने घर में सुना था: माँ को सुनते हुए,
पढ़ाई में कमज़ोर तो काम-धंधे से लगा दो।लेकिन,
वो जिद्दी माँ क्या मानेगी,
जिसके कदमों में भाग्य और हथेलियों में परिश्रम की चमक हो। वो जिद्दी पिता क्या मानेगा,
दृढ़ निश्चय, ईमानदारी और विनम्रता जिसका आभूषण हों।
फिर क्या..
कतरा-कतरा कर समंदर बनाया मुझे,सिर्फ पढ़ाई नहीं,जिंदगी का भी असली धुलंदर बनाया मुझे।
पग-पग चल,हथेली पकड़,चलना सिखाया,
खुद तप,अंधियारों में मुझे दीपक-सा जलना सिखाया।
मैं कृतज्ञ हूँ,कि मैं उनका बेटा हूँ।लेकिन
संकल्प की मुट्ठी मैंने भी बांधी हैं,
एक दिन वो कृतज्ञ हो,कि मैं उनका बेटा हूँ।।
पग पग चल,हथेली पकड़,चलना सिखाया,
खुद तप अंधियारों में मुझे दीपक-सा जलना सिखाया।
चलना सिखाया,चलना सिखाया,
दीपक-सा जलना सिखाया।
अब नहीं रुकूंगा मैं,अब नहीं झुकूंगा मैं,
आखिर चलना किसने सिखाया।
"अग्निपथ, विजयपथ, विजयभव*🔥
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