Dr. Netra Mani Badoni   (Dr. nmbadoni (aviral))
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Joined 20 January 2018


Joined 20 January 2018
29 APR AT 22:55

जिस प्रकार
ईश्वर चराचर जगत के
समस्त जड़-चेतन में व्याप्त हैं,
जिसे न मानना सर्वथा मूढ़ता ही नहीं
अपितु अपराध है।
ठीक उसी प्रकार व्यक्ति के व्यक्तित्व
सहित मन, मस्तिष्क,
प्राण एवं आत्मा में समाये तन-मन के
स्वामी को भूलना
एवं एहसास न करना भी धृष्टता ही नहीं
बल्कि अपराध है।

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28 APR AT 22:58

दिल और दिमाग दोनो ही
अपने हैं,
लेकिन दोनों विरोधाभासी हैं।
दिल से
व्यवहार करेंगे तो,
प्रेम और विश्वास करना सिखाएगा,
दिमाग से
व्यवहार करेंगे तो
अहम और वहम की ओर ले जाएगा।

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26 APR AT 22:55

आपके
स्वस्थ और मस्त
रहने की अनुभूति ही
मेरे दिल की पहली
एवं सर्वोत्तम
खुशी है।

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25 APR AT 0:42

"Sleep & Asleep"
************
Sleep my soul,
Now sleep !
With the nods so pleasent
And abruptly so deep
With the generous heart
Amidst the cordial breast
You keep.
Where the in abandoned night
Have so merciless
And spreading the grief.
Like all the breathing taken
Apart by thieves.
But I still alive with the
Passionate love,
No lust, no harm and so calm
That my fairy gives.

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24 APR AT 23:22

" जीवन "
******
जीवन महज एक शारीरिक आकर्षण
मात्र नहीं है,
बल्कि आत्मा की वह अमिट प्यास एवं
मनुष्य रुप में ईश्वर की वह
अनुभूति है,
जिसे हमारी आत्मा ही समझती है।

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11 APR AT 23:06

कुछ मुझको
समझना है, उनको भी
कुछ समझाना है।
ये जीवन तो सिर्फ एक सपना है,
और ये दुनिया सिर्फ
कुछ पल का ठिकाना है।
क्या रखा इस दुनियादारी में.....
जब झूठा सब ताना-बाना है.....
घर, गृहस्थी, धन-दौलत
सब कुछ झूठ है!
जब ये सब यहीं छूट जाना है.....
जी भर कर लो "प्यार" अपनो से !
अगर ज़िन्दगी को यादगार
बनाना है।

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11 APR AT 22:26

"प्रेम की प्रकृति"
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जहाँ संबंध हों भक्त और भगवान की भक्ति भाव का-
वहाँ भक्त और भगवान के मध्य के संबंध निम्न
प्रक्रियाओं के माध्यम से अनवरत बने रहते हैं जैसे - श्रद्धा, भक्ति, भाव, अपराध, प्रार्थना,
क्षमा, दया, उपासना, स्मरण, आशीर्वाद एवं वरदान।
इस संबंध को अलौकिक संबंध / स्नेह कहते हैं।

जहाँ संबंध हों ह्रदय और आत्मा के लगाव का-
वहां दो प्रेमियों के मध्य माधुर्य का अनंत संचार- प्रेम, परवाह, प्रशंसा, प्रगति, सत्य, संगती, सहयोग, ह्रदयस्पर्सी भाव-भंगिमा, स्पर्श, आशक्ति एवं अनुराग के साथ जीवनपर्यन्त के लिए रहता है।

इसके अतिरिक्त वे सभी सांसारिक
स्वार्थ लोलुप प्रेम हैं- जिसमें उक्त दोनों का लेशमात्र नहीं होता है, जो छल-कपट, झूठ-फरेब, लोभ-लालच एवं तृष्णा के वशीभूत क्षणभंगुर संबंध हैं जो आए दिन बनते-बिगड़ते हैं। निश्चित ही प्रेम की प्रकृति को धूमिल करते हैं।

अतः भक्त एवं भगवान तथा ह्रदय एवं आत्मा का प्रेम ही शाश्वत है, ऐसा प्रेमी कभी दूरियां नहीं बना सकता, और उसका आराध्य परम दयालु होकर क्षमा कर गले लगा लेता है।

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9 APR AT 21:12

ये किस्मत का कोई
खेल है
या वक्त की है रुसवाई,
हकीम साहब ने
मर्ज तो खूब खोजे...
लेकिन दवा नहीं बतलाई।
क्या कहें !
जिसे इतना टूटकर चाहते हैं
वही इस-कदर तोड़ देगा
जगाकर नींद से और
यों ही छोड़ देगा।
विश्वास करना कठिन है,
लेकिन वक्त की है सच्चाई,
इसी उलझन में
दिन-रात जाग-जाग व
सोच-सोच कर कमबख़्त सी
हो गई है अच्छाई।
ये दुनिया सारी भले रुठ जाये
फिर भी कोई
तकलीफ नहीं है लेकिन
ऐसा बेरुखापन,
अपने लिए ठीक नहीं है।
कोई नहीं जैसा चाहो
वही सही है......... 🙏

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8 APR AT 21:36

जीतने की ख़्वाहिश ही
किसे है !
हार में ही जीत है।
परवाह नहीं, क्या कुछ क
उन्होने !
उनका हर शब्द मधुर संगीत है।
शिकवे-शिकायतों की परवाह
किसे !
ये जमाने की रीत है।
जिगर-जेहन में जख्म होते हैं
उसी के !
जिसे रूह से प्रीत है।

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24 MAR AT 19:32

"लाख टके की बात"
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" सही इंसान की
कभी
गलत जगह
पर
कद्र नहीं हो सकती "।

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