कुछ नया सा हुआ है ज़िन्दगी में,
समझने की कोशिश करूं तो लगता है
मानो किसी की दुआएं मुकम्मल हुई हों।
वो दरख़्त अब फिर से हरे हो रहे हैं,
उनमें एक नयी सी जान आगयी है।
कुदरत का कहऱ भी तो अजीब है,
कुछ जानें बेजान हो गईं तो कुछ
बेजुबानों में फिर से जान आगयी है।
वो आसमां जो बेवजह अपने
दामन पर दाग़ लिये रखता था।
ज़मीं के खुदगर्ज परिंदों के खातिर,
वो बे-गरज़ रो दिया करता था।
एक आंख उठाकर देखूं तो लगता
है जैसे उसकी शान वापस आगयी हो।
वो बेजुबान जो अपने ही आशियानों
से दर-बदर होते चले गये थे।
अब उन्हें फिर से लौटता देखता हूं,
तो लगता है जैसे अपने ही घर में
कुछ नये मेहमान आ गये हों।
इन हकीक़त को महसूस करना
चाहूं तो ऐसा लगता है दानिश यहां,
कोई नहीं चाहता ये बेवजह की हिजरतें,
पर करें भी क्या जब इंसान ही बेईमान हो गये!
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