मौत तो एक दिन सबको आनी है,
मगर दीवानगी के साथ अपनी जो मरे,
उसे मौत भी अमर कर जाती है।।
Dying while doing what you love to do with all the passion,
is the best last gift from your life.-
Instagram- lyrical_thoughts_of_mind
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कितनी अजीब बात है न,
कभी मां अपने बेटे के लिए व्रत करती है, कभी पत्नी अपने पति के लिए, अब कोई पूछेगा इसमे अजीब क्या है, है ना ??
हां शायद सबके लिए ना हो, मगर मुझे अजीब भी लगा और एक बेटी या पत्नी होने के नाते बुरा भी, सच कहूं तो बहुत बुरा... इस दुनिया में सबको सिर्फ मर्दों की ही उम्र लंबी क्यों चाहिए ??
नहीं अगर आप ये सोच रहे हैं कि मैं मर्दों से आगे रहना चाहती हूं तो आप गलत सोच रहे हैं। मैं तो उनके कांधे से कांधा मिला कर चलना चाहती हूं, मगर आज भी कई बार ये कहते हुए सुना है कि ये काम औरतें नहीं करती, मुझे किसी व्रत से या किसी मां के अपने बेटे के लिए या किसी पत्नी के उसके पति के लिए प्यार से रखे गए व्रत से कोई तकलीफ नहीं है। बस हैरान हूं कि दुनिया में औरत के लिए एक भी व्रत नहीं बना?
क्या कोई नहीं है जो औरत का साथ चाहता हो पूरी उम्र गुजा़रने के लिए,
क्या कोई नहीं है “जो बेटी परायी है” ऐसा सोचे बिना उसकी लंबी उम्र की कामना भी करे?हो सकता है किसी को मेरी बात सही न लगे, मगर सवाल मन में था तो कलम से कागज़ पर उतार दिया ।।-
नस नस में बिजुरिया थीरक गई रे
प्रेम इतना भरा मैं छलक गई रे
चढ़ती नदीयां कभी बस में होती नहीं
जाग जाए प्रीत तो कभी सोती नहीं
सौ भंवर लांघ के मेरे पग चल पड़े
भवें तन तन गई माथे पर बल पड़े
घोर संकट में है आज मर्यादाएं
मेरे सर से चुनरिया सरक गई रे
प्रेम इतना भरा मैं छलक गई रे
नैन जुड़ते ही सिद्धांत टूटे मेरे
हो गए मान अभिमान झूठे मेरे
लाओ मेरे लिए विष के प्याले भरो
प्रेम अपराध है तो क्षमा ना करो
छूट कर फिर करुंगी ये अपराध मैं
खुल गए मेरे हाथ मेरी झिझक गई रे
प्रेम इतना भरा मेैं छलक गई रे
प्रेम की आग में जल गई मैं जहां,
रंग रंग के खिले बेल बूटे वहां
तन पर मेरे अब उन नैनो की छाप है
कौन सोचे कि ये पुण्य है कि पाप है
राह सच की दिखाओ किसी और को
भटकना था मुझको भटक गई रे
प्रेम इतना भरा मैं छलक गई रे
ये कहां धर्म ग्रंथों को एहसास है
गहरी पाताल से हृदय की प्यास है
ज्ञानियों में कहां ज्ञान ऐसा जगे
पीर वही जाने तीर जिसको लगे
डोल उठा जो थरथर जिया बांवरा
कांच के जैसे मैं तो दरक गई रे
प्रेम इतना भरा मै छलक गई रे
~ मीरा बाई-
कुछ बातें अच्छी लगी तो कुछ बुरी भी,
मैंने सब अपना ली,
मेरे दिल को मंजूर थी या नामंजूर भी,
मैंने सब मान लिया,
सब अलग था सही भी और गलत भी,
मगर मैंने सब स्वीकार लिया,
भावनाएं किसी की आहत ना हो,
मान किसी का कम ना हो,
जिसने जो कहा मूक होकर करती गई,
मन में उम्मीद लिए सम्मान और प्यार की ,
चाहत थोड़ी विचारों की स्वतंत्रता की भी थी,
भाव मेरे भी समझे जाएंगे जिस दिन,
आस उस दिन की मैं मन में लिए बैठी थी,
सामना हुआ जब सच्चाई से समाज की,
भ्रम मेरा भी टूटा और दिल में टीस उठी,
हर रीत की बेड़ी मैंने पाई अपने पाँव में,
सब मर्यादाओं का बंधन था बंघा मेरे पल्लू से,
कभी उड़ती थी मैं सपनों के स्वतंत्र आसमान में,
आज हर इच्छा को अपनी मन में दबाए रहती हूं,
बस यही अंतर है मेरे मायके और ससुराल में,
मैं स्वीकार भी लूं सबकी सब बातों को,
आत्मा स्वीकृति देती नहीं किसी बंधन को,
कितना भी समझाओ मन में हलचल सी रहती है ,
स्त्री होने का बहुत अभिमान था मुझको,
आज सज्ज हूं उस का मूल्य चुकाने को...!!
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ये हालात बदल जाएंगे,
या फिर शायद मैं बिखर जाऊंगी,
मेरा सब्र टूट जाएगा,
या शायद मैं बदल जाऊंगी,
वो समझे तो मैं खुश हो जाऊंगी,
या वो समझ कर भी नासमझ निकले,
तो शायद मैं समझदार हो जाऊंगी...।।-
Maa
Mujhe ladki kehkar kbhi bandha nahi,
Aur haq jata kr bete sa beti ka mujhko samman diya,
Aur kya kya likhun mai maa k bare me,
Meri maa puri kaynat si hai,
jitna likhun utna kam hai..-
Tum me mene thoda sa Krishn
Aur thoda ram ko paya hai,
Kabhi tum krishna se natkhat ho,
Kabhi maryada purushottam ram se sehej,
Kabhi radha sa mujhko satate ho,
Kabhi sita sa prem mujhme jagate ho,
Kbhi me radha si jogan ho jaun,
Jab prem krishna sa tum mujhse krte ho,
Kbhi patni ban tumhari siya sa
sundar khudko paun,
Jab nazar se ram si mujhe tum dekhte ho,
Tum yunhi kbhi mere krishn ban jana,
Aur kabhi ram mere tum ban jana,
Mai bhi kabhi radha sa
tumhe prem se dantugi,
Kbhi siya sa prem kr tumhe
bhagwan apna manugi,
Naam mera bhi tumne sada hi
khudke nam se pehle liya hai,
Han mene tum me thoda krishn
aur thoda ram ko paya hai...-
Chahe agr koi beti jaanaki si,
Toh koi pita janak sa bhi to ho,
Chahe agr koi vadhu siya si,
Toh koi var ram sa to ho,
Chahe agr koi bahu vaidehi si,
Toh koi saas kaushalya maata si to ho,
Kare agar koi kanya daan janak sa,
Chu le per janak k daan jo paakar
bhikshuk koi dashrath sa bhi to ho,
Mata koi kumata kaikayi si ho bhi jaye,
Sahi- galat me bhed jo jane
Suputra koi bharat sa bhi to ho,
Bhai jo agar raam sa chahe,
Toh bhai koi lakshman sa bhi to ho,
Kre agar bhai koi paap ravan sa ,
Toh koi saccha vibhishan bhi to ho,
Chaho agar tum bhagwan ram sa,
Toh khud bhakt hanumaan sa to ho,
Pati agar prann lakshamn sa le jaye,
Toh sahayak koi patni urmila si bhi ho,
Maryada agar siya si kisi stri ki chaho,
Toh purush bhi koi maryada
purushottam ram sa to ho...
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मुझसे पूछा जाता है कि चुनो दो मे से किसी एक को,
एक गांव की मिट्टी है जिसने मुझे जनम दिया,
और दूजा वो शहर जिसने मुझको पाला है,
बताओ तुमको कौन सबसे प्यारा है,
तब मुझे यूं लगता जैसे,
कान्हा से कोई पूछ राहा हो,
बताओ तुमको माँ कौनसी प्यारी है,
एक देवकी माता है जिसने उनको जनम दिया,
और दूसरी यशोदा मैय्या है जिसने उनको पाला है...।।
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वो माँ का आंचल है जहां दर्द में भी सूकून है,
वो पिता का संसार है जहां आज़ादी होती है,
वो माँ- बाप ही है जिनकी डांट में भी प्यार होता है,
वो उनका जहान है जहां हमारी हर नादानी चलती है,
उनसे दूर होकर देखो तो हर पल उनकी कमी सी खलती है...।।
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